कारगिल विजय दिवस : इन चोटियों पर भारतीय जवानों ने दिखाया था शौर्य, जानें कैसे किया था कब्जा

Chhattisgarh Crimes

नई दिल्ली। कारगिल विजय दिवस। भारतीय सैनिकों के लिए गौरव का दिन। पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने को याद करने का दिन। इस जीत को 24 साल पूरे हो रहे हैं। 1999 में पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर कश्मीर में कई चोटियों कब्जा कर लिया था। 3 मई को चरवाहों के जरिये भारत को पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी मिली थी। आखिरकार 10 मई को पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय की शुरुआत हुई। भारतीय सेना ने कारगिल की पहाड़ियों पर चढ़ाई शुरू की। दुश्मन हजारों फीट ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाए बैठे थे। ऐसे में भारतीय सेना के लिए चुनौती काफी कठिन थी। करीब 60 दिन तक चले इस युद्ध में भारतीय जाबांजों की बहादुरी से भारत ने इस युद्ध में जीत दर्ज की। युद्ध में करीब 500 सैनिक शहीद हुए। 1300 से अधिक सैनिक जख्मी हुए थे। 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध समाप्त हुआ। जानते हैं इस जीत के दौरान कुछ प्रमुख चोटियों पर कब्जे के बारे में…

तोलोलिंग चोटी : अकेले 48 को सुलाया मौत की नींद

तोलोलिंग चोटी : अकेले 48 को सुलाया मौत की नींद

द्रास सेक्टर की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंद्र पुरी को सौंपी गई थी। भारतीय सेना की तरफ से तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने की एक कोशिश असफल हो चुकी थी। इसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल ने 2 राजपूताना राइफल्स को तोलोलिंग को जीतने की जिम्मेदारी सौंपी। भारतीय सेना ने 9 जून को बाल्टिक क्षेत्र में जब दो चौकियों पर कब्जा किया तो उनका जोश हाई हो गया। 12 जून को सीओ कर्नल रविंद्र नाथ ने तोलोलिंग फतह का प्लान बनाया। इसके बाद जवानों ने 13 जून को द्रास सेक्टर में तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। इस चोटी पर कब्जे के दौरान कोबरा दिगेंद्र सिंह ने 48 घुसपैठियों को मौत की नींद सुला दिया। इस दौरान उन्हें 5 गोलियां लगी थीं। तोलोलिंग पर कब्जे में कैप्टन विजयंत का भी अहम योगदान था।

36 घंटे की लड़ाई में टाइगर हिल पर तिरंगा

36 घंटे की लड़ाई में टाइगर हिल पर तिरंगा

भारतीय सेना ने 11 घंटे की लड़ाई के बाद सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल पर कब्जा किया था। टाइगर हिल पर कब्जा करने में सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव का अहम योगदान था। दुश्मनों से लड़ते हुए उन्हें 15 गोलियां लगी थीं। घायल होने के बावजूद उन्होंने पाकिस्तानी सेना की तरफ ग्रेनेड फेंका। इससे पाकिस्तानी सेना डर गई। उन्हें लगा कि भारतीय सेना के बैकअप के लिए कई सैनिक पहुंच चुके हैं। टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए 18 ग्रेनेडियर रेजिमेंट निकली थी। टाइगर हिल फतेह करने के लिए लेफ्टिनेंट बलवंत सिंह को भी महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

प्वाइंट 5140 : कैप्टन विक्रम बत्रा का दिल मांगे मोर

प्वाइंट 5140 : कैप्टन विक्रम बत्रा का दिल मांगे मोर

कारगिल युद्ध के हीरे कैप्टन विक्रम बत्रा का प्वाइंट 5140 की जीत की अहम योगदान था। 20 जून को कैप्टन बत्रा ने ही इस प्वाइंट को पाकिस्तानी सेना के कब्जे से मुक्त कराया था। कैप्टन विक्रम बत्रा ने इसी चोटी से ‘ये दिल मांगे मोर’ का उद्घोष किया था। इसके बाद कैप्टन विक्रम बत्रा प्वाइंट 4875 को फतह करने के लिए बढ़ गए। उन्होंने यहां 5 पाकिस्तानी जवानों को मार गिराया। इस बीच उनके एक जवान को गोली लग गई। इसके बाद वे अपने जवान को उठाने के लिए आगे बढ़े। जैसे ही उन्होंने जवान को सिर की तरफ से उठाया उन्हें दुश्मन की गोली लग गई। इस जंग में शहादत के लिए उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

बटालिक का जुबर हिल

बटालिक का जुबर हिल

टाइगर हिल के बाद भारतीय जाबांजों ने बटालिक सेक्टर के जुबर हिल पर कब्जा किया था। इसके बाद जाबाजों ने आगे बढ़ते हुए इसी सेक्टर में जुबर हिल पर कब्जे के लिए शौर्य का प्रदर्शन किया। जुबल हिल पर कब्जे में मेजर सरवनन शहीद हो गए थे। मेजर ने 29 मई को जुबर हिल्स के लिए एक प्लाटून का नेतृत्व किया था। उन्होंने दुश्मनों से दो बंकरों को अपने कब्जे में ले लिया था। युद्ध में चार दुश्मनों को मारने के बाद शहीद हो गए थे।