सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बदली महाराष्ट्र की सियासत:कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक से इनकार किया, आधे घंटे बाद उद्धव का इस्तीफा

Chhattisgarh Crimes

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में 22 जून को सूरत से जिस राजनीतिक नाटक की शुरुआत हुई, उसके अहम डेवलपमेंट गुवाहाटी से लेकर गोवा तक हुए, लेकिन क्लाइमैक्स सुप्रीम कोर्ट में नजर आया। बुधवार रात को सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना की याचिका खारिज करते हुए विधानसभा में फ्लोर टेस्ट पर रोक से इनकार कर दिया। इसके आधे घंटे बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

महाराष्ट्र के राज्यपाल ने 30 जून को शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था। शिवसेना इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार शाम 3 घंटे 10 मिनट तक चली सुनवाई के बाद फ्लोर टेस्ट पर रोक से इनकार कर दिया। शाम 5 बजकर 18 मिनट से 8 बजकर 28 मिनट तक सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। रात 9 बजकर 10 मिनट पर जज ने इस पर अपना फैसला सुनाया।

सिंघवी, कौल और मेहता ने रखीं दलीलें

शिवसेना ने फ्लोर टेस्ट के खिलाफ, जबकि शिंदे गुट और राज्यपाल के वकील ने फ्लोर टेस्ट के पक्ष में दलीलें पेश कीं। शिवसेना की तरफ से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी कोर्ट में पेश हुए। वहीं, शिंदे गुट की तरफ से पेश हुए एडवोकेट नीरज किशन कौल ने पैरवी की। एडवोकेट मनिंदर सिंह कौल की दलीलों का समर्थन करने खड़े हुए। आखिर में राज्यपाल की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें रखीं।

शिवसेना बोली- अयोग्य विधायक वोट कैसे देंगे

इससे पहले सिंघवी ने फ्लोर टेस्ट पर आपत्ति जताते हुए दलील दी कि 16 बागी विधायकों को 21 जून को ही अयोग्य घोषित किया जा चुका है। ऐसे में इनके वोट से बहुमत का फैसला नहीं किया जा सकता। ​​​​सिंघवी ने मांग की है कि या तो बहुमत का फैसला स्पीकर को करने दें या फिर फ्लोर टेस्ट टाल दें।

शिंदे गुट ने कहा- सरकार के साथ पार्टी भी अल्पमत में

वहीं, कौल ने कहा कि महाराष्ट्र में सरकार ही नहीं, उद्धव की पार्टी भी अल्पमत में आ चुकी है। ऐसे में हॉर्स ट्रेडिंग रोकने के लिए फ्लोर टेस्ट कराना ही सबसे बेहतर विकल्प है। इसे टाला नहीं जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि शिंदे के साथ गए विधायकों ने शिवसेना नहीं छोड़ी है। बहुमत उनके साथ है, इसलिए वही असली शिवसेना हैं।

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