इसके अलावा क्लीन चिट देने के लिए सीजीएमएससी के सारे नियम-कायदों को दरकिनार कर दिया गया। इस संबंध में नईदुनिया ने पूरी नोटशीट पढ़ी, जिसमें साफ नजर आ रहा है कि महाप्रबंधक तकनीकी हिरेन पटेल ने कंपनी को बचाने के लिए बार-बार अलग-अलग नोट लिखे हैं। गुणवत्ता शाखा की अनुशंसा भी नजरअंदाज : दवा के बारे में लगातार शिकायतें मिलने पर सीजीएमएससी (गुणवत्ता नियंत्रण) की गुणवत्ता शाखा ने अनुशंसा की थी कि टैबलेट को जांच के लिए तीन अलग-अलग लैब में भेजा जाए, ताकि सही रिपोर्ट मिल सके। लेकिन, तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने एक लैब में जांच के आदेश दिए। इसकी रिपोर्ट तो सही आई, लेकिन अस्पतालों से घटिया गुणवत्ता की शिकायतें आती रहीं।
टेंडर के ये हैं नियम
सेंसरी टेस्ट में भी दवा की घटिया गुणवत्ता की पहचान होती है। अगर दवा की जांच होती है तो दूसरी लैब से जांच करानी चाहिए। दवा कंपनी को दो साल के लिए ब्लैक लिस्ट करने का नियम है। तीन बैच खराब होने पर गुणवत्ता जांच का नियम नहीं है। 2 मई 2024 को उप प्रबंधक गुणवत्ता नियंत्रण ने फर्म को कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए फाइल महाप्रबंधक तकनीकी को बढ़ाई। इस पर महाप्रबंधक तकनीकी ने कंपनी को बचाने के लिए दो निर्देश जारी किए। पहला, पूर्व में हुए गुणवत्ता परीक्षण में स्थिरता जांच करवाने के संबंध में जवाब मांगा गया। महासमुंद औषधि गोदाम में पदस्थ उप प्रबंधक को भौतिक परीक्षण करने के निर्देश दिए गए।