रायपुर। महात्मा गांधी के शहीदी दिवस पर छत्तीसगढ़ पुलिस ने उन्हें स्वरांजलि दी। पुलिस बैंड ने रायपुर के तेलीबांधा तालाब के किनारे गांधी जी के प्रिय भजनों के साथ राष्ट्रीय भावना से भरे धुनों की प्रस्तुति दी। प्रस्तुति का समापन “अबाइड विथ मी” से हुआ। इसको बजाने से पहले पुलिस बैंड के सभी सदस्य कुर्सी से खड़े हो गए थे।
“अबाइड विथ मी” वही भजन है, जिसे रक्षा मंत्रालय ने इस बार बीटिंग रिट्रीट समारोह से हटा दिया था। महात्मा गांधी के प्रिय भजनों में से एक रहे इस रचना को 1950 में बीटिंग रिट्रीट समारोह से जोड़ा गया था। तब से यह लगातार इस समारोह का हिस्सा रहता आया है। इस साल पहली बार ऐसा हुआ जब इसे समारोह में बजाई जाने वाली धुनों की सूची से बाहर कर दिया गया। कांग्रेस सहित सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने इसकी आलोचना की थी। इस बीच छत्तीसगढ़ सरकार ने महात्मा गांधी के बलिदान दिवस पर उनको श्रद्धांजलि के तौर पर “अबाइड विथ मी” की प्रस्तुति का फैसला किया।
पुलिस बैंड ने इस धुन का अभ्यास किया और दो दिन पहले तय हुआ कि 30 जनवरी शाम 5 बजे इसकी प्रस्तुति होगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रविवार सुबह सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बताया, आज महात्मा गांधी जी की पुण्य तिथि पर छत्तीसगढ़ पुलिस बैंड की ओर से रायपुर के मरीन ड्राइव में शाम पांच बजे एक विशेष आयोजन रखा गया है। बताया गया है कि इसमें गांधी के प्रिय भजनों के अलावा उनकी प्रिय धुन “अबाइड विथ मी” भी बजाई जाएगी। बापू को इससे अच्छी श्रद्धांजलि क्या होगी।
सबसे पहले गूंजी “अरपा पैरी के धार’
पुलिस बैंड ने प्रस्तुति की शुरुआत राज्य गीत “अरपा पैरी के धार’ से की। उसके बाद बापू की प्रिय रामधुन “रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम’ की धुन ने आयोजन को पूरी तरह बापू से जोड़ दिया। बैंड ने “ऐ वतन, ऐ वतन हमको तेरी कसम’, “सारे जहां से अच्छा’ और “दिल दिया है जान भी देंगे’ जैसे गीत बजाए। उसके बाद बैंड बापू की ओर फिर लौटा। इस बार धुन थी “वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणे रे’। अंत में “अबाइड विथ मी” की धुन के साथ प्रदर्शन पूरा हुआ।
क्यों प्रसिद्ध है “अबाइड विद मी’ भजन
दुनियाभर में मशहूर “अबाइड विद मी’ भजन को स्कॉटिश कवि हेनरी फ्रांसिस लाइट ने 1847 में लिखा था। पहले विश्व युद्ध में इसकी धुन बेहद लोकप्रिय हुई। बेल्जियम से फरार हुए ब्रिटिश सैनिकों की मदद करने वाली ब्रिटिश नर्स इडिथ कैवेल ने जर्मन सैनिकों के हाथों मरने से पहले इस गीत को गाया था। भारत में इस धुन को प्रसिद्धि तब मिली, जब महात्मा गांधी ने इसे कई जगह बजवाया। उन्होंने इस धुन को सबसे पहले साबरमती आश्रम में सुना था। वहां मैसूर पैलेस बैंड ने इसे बजाया था। इसके बाद से यह आश्रम की भजनावलि में वैष्णव जन तो, रघुपति राघव राजाराम और लीड काइंडली लाइट के साथ शामिल हो गया।