सबरीमाला की तर्ज पर भगवान अय्यपा मंदिर में निभाते हैं पूजा की परंपरा, साल में सिर्फ दो बार खुलती हैं पवित्र सीढ़ियां

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रायपुर। टाटीबंध रिंग रोड नं. दो के किनारे छत्तीसगढ़ का इकलौता भगवान अयप्पा का मंदिर है। लगभग 35 साल पुराने मंदिर में केरल की तर्ज पर ही पूजा की सभी परंपराएं निभाई जाती हैं। जिस तरह केरल के सबरीमाला मंदिर में साल में दो मर्तबा मंदिर की पवित्र सीढ़ियां खुलती हैं, उसी तरह टाटीबंध के मंदिर में भी दो ही दिन पवित्र सीढ़ियां खोली जाती हैं।

आज रविवार को श्रद्धालु पूजा करने पहुंचे थे। दर्शन करने आज सिर पर इरुमुदी रख अठारह पवित्र सीढ़ी चढ़े। इन सीढ़ियों से चढ़कर भगवान के दर्शन का लाभ केवल उन्हीं भक्तों को मिलता है, जो 41 दिनों की कठोर तपस्या करते हैं। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां साल के बाकी दिनों में भगवान के दर्शन का लाभ मंदिर के पीछे बनी सीढ़ियों से ऊपर जाकर किया जाता है।

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18 पवित्र सीढ़ियों का महत्व

एक मर्तबा मंदिर में मंडल पूजा उत्सव और दूसरी मर्तबा कर संक्रांति के दिन 18 पवित्र सीढ़ियां खोली जाती हैं। इन सीढ़ियों से जाने के लिए श्रद्धालुओं को 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन, व्रत और विविध नियमों का पालन करना पड़ता है। ऐसे श्रद्धालुओं के नाम मंदिर समिति के समक्ष लिखवाना पड़ता है।
पहली पांच सीढ़ियां हैं पांच इंद्रियां पहली पांच सीढ़ियां मनुष्य की पांच इंद्रियों से संबंधित हैं। इसके बाद वाली आठ सीढ़ियां मानवीय भावनाओं, फिर तीन सीढ़ियां मानवीय गुण और अंतिम दो सीढ़ियां ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक हैं।

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सिर पर पोटली रख आते हैं व्रतधारी

गर्भ गृह में विराजित शनिश्वर भगवान अयप्पा का दर्शन करने के लिए 41 दिनों का व्रत, नियमों का पालन करने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर आते हैं। पोटली में भगवान को अर्पित की जाने वाली मिठाई होती है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर पोटली रखकर जो भी श्रद्धालु आता है, उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

साहू समाज के दानदाता की जमीन पर बना मंदिर

टाटीबंध गांव में झगरराम सीताराम वल्द हरीराम साहू ने पचकौड़ मंडल साहू की स्मृति में करीब दो एकड़ जमीन मंदिर बनवाने दान में दी थी। उस जमीन पर भगवान अय्यपा का मंदिर 1982 में प्रतिष्ठापित हुआ।

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