रायपुर। देशभर के कवि और लेखकों ने मां पर तो अनेक कविताएं, लेख, कहानियां लिखी है परंतु पिता पर कम ही लिखा गया है। इस कमी को पूरा करने का प्रयास छत्तीसगढ़ के कवि राजेश जैन राही ने किया है। उन्होंने कुछ सालों पहले पिता को समर्पित करते हुए 365 दोहे लिखे हैं। सभी दोहों में पिता के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। पिता पर आधारित इस दोहे वाली किताब को गोल्डन बुक आफ रिकार्ड में भी दर्ज किया जा चुका है।
छत्तीसगढ़ के कवि राजेश जैन राही बताते हैं कि पिता पर लिखी दोहों वाली यह किताब छत्तीसगढ़ की एकमात्र पिता पर आधारित किताब है। यह किताब लिखने की प्रेरणा उन्हें दुनिया के सभी पिताओं से मिली है। वे अक्सर मां पर लिखी किताबें पढ़ते थे, पिता पर कुछ ही कवियों ने कविता, लेख लिखे हैं। तब मन में विचार आया कि क्यों न पिता के योगदान को लेकर एक किताब लिखी जाए।
प्राय: हर व्यक्ति के जीवन को संवारने में माता के साथ उसके पिता की भी अहम भूमिका होती है। मध्यम परिवार के पिता के जीवन संग्राम को लेकर कई परिचितों, दोस्तों से बातचीत की और फिर एक-एक कविता लिखना शुरू किया। सालाें की मेहनत के बाद 365 दोहे लिखकर उसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया था। इस पुस्तक का शीर्षक पिता छांव वट वृक्ष की रखा। इसे तीन साल पहले प्रकाशित करवाया। पिता के गहन प्रेम को दर्शाते दोहों वाली किताब को गोल्डन बुक रिकार्ड का प्रमाणपत्र मिलने पर अत्यंत खुशी हुई।
किताब के प्रमुख दोहे
सागर सा मुझको लगे, पिता आपका प्यार, उपर बेशक खार सा, अंदर रतन हजार।
रिश्तों की इस भीड़ में अपना जाने कौन, पिता हमेशा साथ हैं, दिखते बेशक मौन।
सपनों को मिलने लगा, मनचाहा विस्तार, बाबूजी के पाठ का गहरा था आधार।
कमरा सीढ़ी, छत सभी बंटने को तैयार, बोझ हुए मां-बाप ही कौन करे स्वीकार।
नौजवान भटके नहीं, हम सबका है फर्ज, याद रहे माता-पिता मातृभूमि का कर्ज।