आरबीआई ने नहीं दी आम लोगों को EMI में कोई राहत, नहीं बदलीं ब्याज दरें

गवर्नर शक्तिकांत दास ने चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत गिरावट का अनुमान जताया। दास ने कहा कि रिजर्व बैंक वित्तीय प्रणाली में जमाकर्ताओं का हित सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है और वित्तीय बाजार व्यवस्थित तरीके से काम कर रहे हैं। वाणिज्यिक बैंक 2019-20 के लिये लाभांश का भुगतान नहीं करेंगे।

सर्दियों में महंगाई दर में कमी आने की उम्मीद

आरबीआई ने मौद्रिक नीति में नरम रुख को बरकरार रखा है। सर्दियों में महंगाई दर में कमी आने की उम्मीद जताई गई है। दास ने कहा कि मौद्रिक नीति समिति के सभी सदस्यों ने मुद्रास्फीति के उच्च स्तर को देखते हुए नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में निर्णय किया है। उन्होंने कहा कि हम सुनिश्चित करेंगे कि अर्थव्यवस्था में पर्याप्त नकदी उपलब्ध हो, जरूरत पड़ने पर आवश्यक कदम उठाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में दिखे आर्थिक पुनरूद्धार के शुरूआती संकेत मिले हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति तीसरी तिमाही में 6.8 प्रतिशत, चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

आइए आसान भाषा में जानें रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर का मतलब और इससे आपके जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है..

रेपो रेट 

इसे आसान भाषा में ऐसे समझा जा सकता है। बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है। ठीक वैसे ही बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से कर्ज लेते हैं। इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं।

रेपो रेट से आम आदमी पर क्या पड़ता है प्रभाव

जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा यानी रेपो रेट कम होगा तो वो भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं। और यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे।

रिवर्स रेपो रेट

यह रेपो रेट से उलट होता है। बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद बड़ी रकम बची रह जाती है, तो उस रकम को रिजर्व बैंक में रख देते हैं। इस रकम पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है। रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

आम आदमी पर क्या पड़ता है प्रभाव

जब भी बाज़ारों में बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें। इस तरह बैंकों के कब्जे में बाजार में छोड़ने के लिए कम रकम रह जाएगी।

नकद आरक्षित अनुपात

बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है, जिसे कैश रिजर्व रेश्यो अथवा नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है। यह नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी भी वक्त किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्ताओं को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसा चुकाने से मना न कर सके।

आम आदमी पर क्या पड़ता है सीआरआर का प्रभाव

अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होगा और उनके पास कर्ज के रूप में देने के लिए कम रकम रह जाएगी। यानी आम आदमी को कर्ज देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा।  अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है।महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सीआरआर में बदलाव तभी किया जाता है, जब बाज़ार में नकदी की तरलता पर तुरंत असर न डालना हो, क्योंकि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव की तुलना में सीआरआर में किए गए बदलाव से बाज़ार पर असर ज्यादा समय में पड़ता है।