मेकाहारा में आंखों के सॉकेट एवं दिमाग की सतह तक पहुंचने वाले साइनस के ट्यूमर का बिना चीरे के दूरबीन पद्धति से सफल ऑपरेशन

नाक-कान-गला रोग विभाग एवं न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉक्टरों की संयुक्त टीम ने विस्तृत फंक्शनल एंडोस्कोपिक साइनस सर्जरी विधि से किया इलाज

Chhattisgarh Crimes

रायपुर। पं. जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय-डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के नाक कान गला (ईएनटी) रोग विभाग के डॉक्टरों द्वारा साइनस में होने वाले इनवर्टेड पेपिलोमा नामक बिनाइन ट्यूमर को बिना चीरे के दूरबीन पद्धति से निकालकर 75 वर्षीय मरीज के विकृत हो चुके चेहरे को ठीक किया एवं बुजुर्ग के आंखों की रोशनी जाने से बचाया।

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ईएनटी विभागाध्यक्ष डॉ. हंसा बंजारा के मार्गदर्शन में ईएनटी की डॉ. मान्या ठाकुर राय एवं टीम द्वारा ट्यूमर को विस्तृत फंक्शनल एंडोस्कोपिक साइनस सर्जरी तथा ड्राफ एवं एंडोस्कोपिक मीडियल मेजिलेक्टॉमी ( FESS + DRAF ll + Endoscopic Medial Maxillectomy ) विधि से बिना चीरे के दूरबीन पद्धति से सफलतापूर्वक निकाला गया। ऑपरेशन के दौरान दिमाग से संबंधित किसी प्रकार की कोई जटिलताएं न आये इसके लिये न्यूरो सर्जन डॉक्टर देबाब्रत साहना एवं टीम को साथ में लेकर ईएनटी के डॉक्टरों ने दूरबीन पद्धति से ट्यूमर को निकाला।

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साइनस में होने वाले इनवर्टेड पैपिलोमा ट्यूमर के कारण 75 वर्षीय मरीज को पिछले 2 साल से सांस लेने में समस्या, 6 महीने से लगातार सिरदर्द एवं 15 दिनों से आंखों में धुंधलापन की शुरुआत हो गई थी। डोंगरगढ़ निवासी इस मरीज ने कई जगह अपना उपचार कराया। अंततः अम्बेडकर अस्पताल में मरीज की बीमारी का सही उपचार मिला।

डॉ. मान्या ठाकुर के मुताबिक यह केस विशेष इसलिए है क्योंकि इस केस में सामान्यतः फ्रंटल साइनस से संपूर्ण बीमारी को हटाने के लिए कंबाइंड अप्रोच की आवश्यकता होती है, परंतु इस केस में बिना चेहरे में चीरा दिए ट्यूमर को निकाला गया। दूसरा यह बहुत दुर्लभ होता है कि इनवर्टेड पेपिलोमा पूरे दिमाग की निचली सतह एवं आंखों के सॉकेट (नेत्र कोटर अथवा नेत्र गुहा) में एक साथ जाए। ऐसे केस बहुत कम देखने को मिले हैं। अगर प्रकाशनों(पब्लिकेशन) की समीक्षा की जाए तो आंखों के सॉकेट तक जाने वाले अब तक 9 केस दर्ज हुए है एवं दिमाग की सतह तक पहुंचने वाला लगभग 19 केस दर्ज हुए हैं ।

डॉ. मान्या ठाकुर के अनुसार, इनवर्टेड पैपिलोमा एक बिनाइन ट्यूमर है जो कि कैंसर की तरह आसपास के सामान्य रचना को ध्वस्त कर देता है एवं बार-बार होता है। यह सामान्यतः मैक्सिलरी साइनस में पाया जाता है लेकिन इस केस में यह पूरा स्कल बेस यानी ब्रेन के नीचे तक फैला हुआ था एवं आंखों के सॉकेट में दबाव बना रहा था। सामान्यतः इसे दूरबीन पद्धति एवं चीरे दोनों की सहायता से निकाला जाता है ।

बुजुर्ग मरीज जब ओपीडी में आया तब सीटी स्कैन एवं बायोप्सी जांच में एक विशाल साइनोनासल इनवर्टेड पैपिलोमा की पुष्टि हुई जो पूरी नाक, पैरानासल साइनस, ऑर्बिट एवं दिमाग की निचली सतह तक फैला हुआ था। इतना विस्तृत एवं आकार में बड़ा होने के बावजूद बिना बाहरी चीरे के पूरी तरह से एंडोस्कोपिक सर्जरी के माध्यम से ट्यूमर को हटाया गया। इसमें कोई बाहरी चीरा की आवश्यकता नहीं पड़ी और ओपन सर्जरी की तुलना में रिकवरी जल्दी हो गई। ऑपरेशन के तुरंत बाद ही मरीज को दिखाई ना देने की समस्या सिर दर्द एवं सांस लेने की समस्या से निजात मिल गया। डॉक्टर मान्या ठाकुर के अनुसार, इनवर्टेड पेपिलोमा जो कि ऑर्बिट एवं दिमाग के निचली सतह तक पाए गए हैं वह पूरी दुनिया में 19 केस ही रिपोर्ट हुए हैं।

दिमाग की निचली सतह तक फैल गई थी बीमारी

मरीज को यह साइनस का इनवर्टेड पेपिलोमा दिमाग की निचली सतह जिसे स्कल बेस कहा जाता है, वहां तक फैला हुआ था जिस कारण मरीज को सिर में दर्द सांस लेने में तकलीफ एवं नाक से मस्से की समस्या उत्पन्न हो गई थी। धीरे-धीरे यह गठान आंखों के सॉकेट पर भी दबाव डालने लगा था जिसके कारण मरीज को दिखाई देने में दिक्कत की शुरुआत हो गई थी। इनवर्टेड पेपिलोमा एक तरह का बिनाइन ट्यूमर है जो कि कैंसर के जैसा फैलता है एवं आसपास की संरचना में दबाव बनाकर धीरे धीरे सामान्य शारीरिक संरचना को नष्ट कर देता है।

इनवर्टेड पेपिलोमा के लक्षण

इनवर्टेड पेपिलोमा के लक्षणों में अवरुद्ध नाक मार्ग, आमतौर पर सिर्फ एक तरफ, नाक बहना, साइनस संक्रमण, नाक से खून आना शामिल हो सकते हैं। यह बीमारी आगे जाकर 10 प्रतिशत मरीजों में कैंसर में तब्दील हो जाता है।

ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर

डॉक्टर मान्या ठाकुर एवं डॉक्टर देबाब्रता साहना।

इन्होंने सहयोग किया

डॉ. लवलेश राठौर, डॉ. प्रशांत नानवानी, डॉ. ज्योति वर्मा, नर्सिंग स्टाफ में मधुलिका, भूपेंद्र, शिल्पा वाणी, सुमन वर्मा, निश्चेतना विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. के. के. सहारे के मार्गदर्शन में डॉ. रश्मि नायक, डॉ. मंजू लता टंडन, डॉ. राजेंद्र चौधरी एवं डॉ. फिरोज शाह ने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया।