नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब में एक नेता के खिलाफ साल 1983 में दर्ज आपराधिक मामले में 36 साल बाद निचली अदालत द्वारा अभियोग निर्धारित किये जाने पर अचरज व्यक्त करते हुये गुरुवार को कहा कि अभियोजन का यह कर्तव्य है कि मुकदमे की सुनवाई तेजी से हो. शीर्ष अदालत ने सभी हाईकोर्ट्स से वर्तमान और पूर्व सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की और जानकारी मांगी है. न्यायालय को न्याय मित्र ने सूचित किया था कि 4,442 मामलों में देश के नेताओं पर मुकदमे चल रहे हैं. इनमें से 2,556 आरोपी तो वर्तमान सांसद-विधायक हैं.
जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि अब हाईकोर्ट्स को 12 सितंबर तक नेताओं के खिलाफ लंबित उन मामलों का विवरण ई-मेल के जरिये देना होगा जो भ्रष्टाचार निरोधक कानून, धन शोधन रोकथाम कानून और काला धन कानून जैसे विशेष कानूनों के तहत लंबित हैं. बेंच वर्तमान और पूर्व सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों का अवलोकन करेगी और इन मुकदमों की तेजी से सुनवाई के बारे में 16 सितंबर को हाईकोर्ट्स के चीफ जस्टिसों को आवश्यक निर्देश दे सकती है.
36 साल बाद साल 2019 में अभियोग निर्धारित हुआ
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने बेंच को वस्तुस्थिति से अवगत कराया और कहा कि उप्र और बिहार जैसे राज्यों में नेताओं के खिलाफ अनेक आपराधिक मामले तो दशकों से लंबित हैं. उन्होंने पंजाब के एक मामले का विशेष रूप से उल्लेख किया. हंसारिया द्वारा आधिवक्ता स्नेहा कालिता की सहायता से संकलित की गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में साल 1983 में एक अपराध हुआ था जिसके लिये उम्र कैद की सजा हो सकती है लेकिन इस मामले मे 36 साल बाद साल 2019 में अभियोग निर्धारित हुये हैं.
बेंच ने नाराजगी व्यक्त करते हुये कहा, ‘यह विस्मित करने वाला है. पंजाब में साल 1983 का यह मामला अभी तक क्यों लंबित है?’ इसके साथ ही बेंच ने राज्य के अधिवक्ता से इसका जवाब मांगा. यह कहे जाने पर कि यह जानकारी राज्य के हाईकोर्ट्स के दूसरे अधिवक्ता से प्राप्त की जा सकती है, बेंच ने कहा, ‘आप सरकार के वकील हैं, आपको बताना होगा कि यह मामला साल 1983 से क्यों लंबित है? क्या आप सुनवाई तेजी से कराने के लिये जिम्मेदार नहीं है?’