पूरन मेश्राम/मैनपुर। विकासखंड मुख्यालय अंतर्गत वनांचल क्षेत्र में आज से तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य शुरुआत हो गया है।आजीविका के मुख्य स्रोत वनांचल के रहवासियो का खेती किसानी के अलावा वनोंपज पर आधारित है।
जंगलों में मिलने वाला हरा सोना तेंदूपत्ता मूल रूप से बीड़ी बनाने के काम आता है।लेकिन यहां ग्रामीणों की आय का प्रमुख जरिया भी है। पिछले वर्ष की तुलना में इस साल भाजपा सरकार ने तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए इसके समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है। पहले 400 रुपये प्रति सौ बंडल के हिसाब से भुगतान होता था, अब बढ़ाकर 550 रुपये प्रति सौ बंडल कर दिया गया है।
स्थानीय जंगल में तेंदूपत्ता तोड़ाई कर रहे कोनारी ,जिड़ार, नाउमुड़ा, जाड़ापदर, बुड़ार, सहित राजापड़ाव क्षेत्र के ग्रामीणों ने बताया कि जंगलों में सुबह 4-5 बजे से ही तेंदूपत्ता संग्रहण करने के लिए निकलते हैं।
तेंदू के पौधों से एक-एक कर पत्ता संग्रहित करते हैं। तोड़ने के बाद सभी पत्तों का गड्डी तैयार करते हैं। एक गड्डी में 50 पत्ते होते हैं। 25-25 पत्ते अलग-अलग दिशा में रखकर उन्हें एक गड्डी के रूप में रस्सी से बांधते हैं।
गड्डी तैयार होने पर शाम को फड़ में ले जाकर उसे बेचते हैं। जहां फड़ मुंशी के निरीक्षण पश्चात गड्डी को फड़ में सुखाते है।
तेंदूपत्ता फड़ मुंशी के द्वारा मजदूरों से सप्ताह भर तक पलट-पलट कर दोनों तरफ अच्छी तरह पत्ते को सुखाते हैं। गड्डी की सभी पत्तियां में सही लालिमा आने पर उन्हे एक स्थान पर एकत्रित कर हल्का पानी छिड़कते हैं। इसके बाद इसे पॉलिथीन से 3 से 4 घंटे के लिए ढँक कर रखते हैं। पॉलीथिन हटाने पर पत्ता मुलायम होता है। मुलायम होकर पत्ता पूरी तरह मुड़ जाता है। जिसे आराम से बोरी में पैक करते हैं। प्रति मानक बोरा 1000 गड्डी की भर्ती होती है।
पहले 400 रुपए सैकड़ा गड्डी के हिसाब से संग्राहकों को पैसे दिए जाते थे, जिसे बढ़ाकर नई सरकार ने इस वर्ष 550 रुपये प्रति सैकड़ा बंडल कर दिया है। जिसके चलते संग्राहक परिवारों की संख्या बढ़ गई है।