कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच स्कूलों का खुलना सरकार के लिए गले की फाँस न बन जाए

Chhattisgarh Crimes

प्रवीण खरे/ छत्तीसगढ़ क्राइम्स

रायपुर। एक ओर कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को लेकर देशभर में डर का माहौल है क्योंकि कोरोना की तीसरी लहर बच्चों के लिए काफ़ी ख़तरनाक साबित होने की आशंका विशेषज्ञों ने जताई है, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार भी कोरोना की तीसरी लहर से होने वाले संभावित ख़तरे से निपटने की तैयारी में जोर-शोर से जुटी हुई है। अभी देश में बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन भी नहीं आई है और इस बीच राज्य सरकार ने स्कूल खोल दिया है और जगह-जगह से स्कूली बच्चों के कोरोना से संक्रमित होने की खबरें भी आ रही है। ऐसे समय अगर कोई अनपेक्षित व अप्रिय समाचार आ गया (ईश्वर करे कि ऐसी खबर सामने न आए) तो सरकार के लिए स्कूल खोलने का फ़रमान गले की फाँस बनकर रह जाएगा, क्योंकि कोरोना वायरस ने कई अनपेक्षित-अप्रिय ख़बरों से साक्षात्कार कराया है। ऐसे हालात में यह प्रश्न बार-बार इसलिए भी खड़ा हो रहा है क्योंकि सरकार ने स्कूल खोलने की जो गाइडलाइन जारी की है, वह अपने आपमें कई प्रश्न खड़ा करती है।

शालाएँ खुलने के पहले दिन ही राजधानी की आरडी तिवारी स्कूल में शाला शुरू कराने प्रदेश के एक मंत्री के साथ भारी संख्या में पहुँचे कांग्रेस नेताओं पर इस बात के लिए जमकर निशाना साधा गया है कि कांग्रेस के लोग हर मौक़े को अपने लिए राजनीति का अवसर बनाने की शर्मनाक कोशिशें करके न केवल अपने ओछेपन का प्रदर्शन कर रहे हैं, अपितु कोरोना आपदा के इस भयावह काल में नौनिहालों के जीवन के साथ क्रूर खिलवाड़ भी कर रहे हैं। इस दौरान एक बार फिर कोरोना गाइडलाइन की धज्जियाँ उड़ाने को आपराधिक कृत्य बताया जा रहा है। एक ओर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामलों में इज़ाफ़ा हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ़ प्रदेश सरकार ने स्थानीय व्यवस्था के आधार पर प्राथमिक कक्षाओं, आठवीं, 10वीं और 12वीं की कक्षाओं के संचालन की अनुमति दे दी है। इधर प्रदेश के एक मंत्री का विद्यार्थियों की काफ़ी उपस्थिति के बीच पहुँचकर इस तरह के आयोजनों से प्रदेश में क्या एक बार फिर प्रदेश में कोरोना का हाहाकार नहीं मचेगा? एक तो स्कूल खोले जाने संबंधी आदेश ही विसंगतियों से भरा पड़ा है।

सबसे अहम बात तो यही है कि आदेश में यह नहीं बताया गया है कि इन कक्षाओं के विद्यार्थी स्कूल पहुँचेंगे कैसे? दूरदराज़ के विद्यार्थी सार्वजनिक वाहनों से स्कूल पहुँचेंगे तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे होगा और क्या तब कोरोना संक्रमण के फैलने की आशंका नहीं रहेगी? फिर प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों को बुलाए जाने, लेकिन माध्यमिक कक्षाओं के छात्रों को नहीं बुलाए जाने के पीछे भी प्रदेश सरकार की मंशा समझ से परे है। प्रदेश शासन के इस संबंध में जारी अज़ीब-ओ-ग़रीब आदेश ने सभी को उलझाकर रख दिया है। आख़िर कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं के दृष्टिगत एकाएक स्कूल खोलने के इस आदेश के निहितार्थ क्या हैं? फिर कक्षा पहली से 12वीं तक सिर्फ़ चार कक्षाओं के छात्रों को शाला आने से क्यों रोका जा रहा है? प्रदेश सरकार ने विद्यालयों में पढ़ाई शुरू करने का फ़रमान जारी कर बच्चों को संक्रमण से बचाने की ज़िम्मेदारी पालकों पर डाल दी है। कोरोना से बचाव की ज़िम्मेदारी पालकों पर डालने से यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या कोरोना की आशंकाओं और उसकी रोकथाम के लिए सिर्फ़ पालक ही ज़िम्मेदार हैं? बच्चों में इम्युनिटी का स्तर अच्छा होने के बाद भी इस आशंका को कैसे नज़रंदाज़ किया जा सकता है कि इन बच्चों के कारण घर के बड़े-बुजुर्गों में संक्रमण का ख़तरा बढ़ सकता है। प्रदेश सरकार के इस आदेश से छात्रों-पालकों के साथ-साथ स्कूल प्रबंधन और शिक्षकों को भी उलझन में देखा जा रहा है।

प्रदेश में 02 अगस्त से शालाएँ खुलते ही कोरोना संक्रमण का आघात शुरू हो गया है। कोरबा में 08 और बलरामपुर में 01 विद्यार्थी को कोरोना पॉज़ीटिव पाया गया है। कोरबा के विद्यार्थी मोहल्ला क्लास में पढ़ने जा रहे थे। प्रदेश में कोरोना संक्रमण के नए मामलों में भी लगातार इज़ाफ़ा होना यक़ीनन चिंताजनक है। प्रदेश सरकार ने कोरोना की तीसरी लहर और बच्चों पर इसके अधिक प्रभाव पड़ने की आशंकाओं के बावज़ूद स्कूलों को शुरू करने का फैसला तो लिया लेकिन इन स्कूलों के संचालन के नज़रिए से आवश्यक बंदोबस्त की ज़िम्मेदारी तय नहीं की।

प्रदेश सरकार ने कोरोना के फैलाव की ज़िम्मेदारी से बचने के लिए वार्ड पार्षदों, संचालन समितियों और पालकों पर स्कूल खोलने की ज़िम्मेदारी डाली और जब स्कूली बच्चों में संक्रमण के मामले सामने आए तो शासन-प्रशासन यह कहकर कि वार्ड पार्षदों, संचालन समितियों के सदस्यों व पालकों की सहमति से स्कूलें खोली गई थीं, ज़िम्मेदारी से बचने में लगे हैं। मोहल्ला क्लास और उसकी आड़ में अनेक सरकारी-ग़ैर सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई के लिए बुलाया जाना इन बच्चों के जीवन से खुला खिलवाड़ है, लेकिन प्रदेश सरकार ने इस मामले में भी मौन है। प्रदेश सरकार ने कोरोना संक्रमण के इस आपदा काल में स्कूलों को शुरू कर दिया, लेकिन उन स्कूलों, मोहल्ला क्लासेस में सेनेटाइज़िंग, मास्क और दीग़र सुरक्षा उपायों की निगरानी का कोई बेक-अप मैनेजमेंट नहीं है।

प्रदेश सरकार की गाइडलाइन में कहा गया है कि स्कूल की कक्षाओं को रोज सेनेटाइज किया जाय, यह फरमान तो जारी कर दिया गया है पर स्कूलों में सेनेटाइजेशन किया जा रहा है कि नहीं, इसको ज़मीनी स्तर पर कौन देखेगा। एकबारगी यह मान भी लिया जाए कि निजी स्कूले अपनी साख को बचाने गाइड लाइन का पालन कर भी लेती हैं, पर उन सरकारी स्कूलों का क्या होगा, जहां आजादी के इतने वर्षों में पीने के साफ पानी का इंतजाम तक नहीं है? क्या ऐसे स्कूलों में हम कोरोना के वायरस को रोकने रोज सेनेटाइजेशन करने का इंतजाम कर पाएंगे यह एक महत्त्वपूर्ण सवाल है? दूसरी बात सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन भी परोसा जाएगा, तब ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या रसोइया स्टाफ सहित शिक्षकीय कार्य में लगे कर्मियों का वैक्सिनेशन हो गया? यह सवाल इसलिए भी पूछा जा रहा है क्योंकि रसोइया स्टाफ के संक्रमित पाए जाने की खबरें मीडिया में सामने आ चुकी है।

प्रदेश सरकार एक बार अपनी खुली नंगी आँखों से बाजार के हालात और तस्वीर देख ले तो उसके होश फाख़्ता हो जायेंगे कि कोरोना की रोकथाम के नाम पर कितनी भयंकर लापरवाही बरती जा रही है! लोग बिना मास्क पहने गलबँहियाँ करते सड़कों-पार्क पर नज़र आ जायेंगे, बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग दम तोड़ती नज़र आ रही हैं। ऐसे समय में मास्क पहनने के कानून बनाने और उसके पालन कराने चौक-चौराहों पर टीम खड़ी करने और चालानी कार्रवाई करने, जगह-जगह बैनर-पोस्टर के माध्यम से मास्क ज़रूर पहनने, शारीरिक दूरियाँ बनाने की जनजागृति लाने का प्रचार तथा कोरोना वरियास सहित तमाम एजेंसी जागरुकता लाने की दिशा में दिन-रात काम कर रहे हैं, उन तमाम कोशिशों पर पानी फिरता नज़र आता है; ऐसे में यह दावा कैसे किया जा सकता है कि स्कूल खोलने के लिए सरकार द्वारा जो गाइडलाइन जारी की गई है, उसका अक्षरशः पालन होगा। जब बड़े-बड़े, पढ़े-लिखे लोग इस तरह की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना हरकत कर रहे हैं तो बच्चों से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि उनसे लापरवाही नहीं होगी। बच्चे तो निश्चल होते हैं, मस्त-मलंग होते उनकी एक अलग ही दुनिया होती है और वे सही और गलत की पहचान नही कर पाते हैं, उनसे चूक होना स्वाभाविक है और यही चूक किसी अनहोनी और अप्रिय खबर का हिस्सा बन सकती है। अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है। समय रहते हम बड़ी अनहोनी की आशंका को टाल सकते हैं। लेकिन प्रदेश सरकार ने अपने ग़लत फ़ैसलों के प्रतिकूल परिणामों से भी सबक नहीं लेकर ऐसे समय में ख़तरों को न्योता देने का काम किया है, जब कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों के प्रभावित होने की सबसे ज़्यादा आशंका जताई जा रही है।

लगभग चार माह पहले भी प्रदेश सरकार ने एकाएक स्कूल खोलने का फ़रमान जारी किया था और तब राजनांदगाँव में काफी संख्या में शिक्षकों के कोरोना की चपेट में आने के बाद प्रदेश सरकार को अपना वह आदेश वापस लेकर स्कूलों को बंद करना पड़ा था। सरकार को चाहिए कि पहले बच्चों से लेकर बड़ों तक वैक्सीनेशन पूरा हो जाए और जब यह लगे कि अब कोरोना वायरस का खतरा नहीं है तब स्कूलों को खोले तो ज्यादा अच्छा होगा। तब बच्चे भी निश्चल मन से पढ़ाई कर सकेगें, सरकार और पालक भी किसी अनजान खतरे से निश्चित रहेंगे, वर्तमान में जिस डर और भय के माहौल में स्कूल संचालित हो रही है, उसे कतई सही फैसला नहीं कहा जा सकता है।