आज वामन जयंती, विश्वकर्मा पूजा, कन्या संक्रांति और परिवर्तिनी एकादशी, ब्रह्मा जी की कृपा से प्रकट हुए थे विश्वकर्मा

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शुक्रवार, 17 सितंबर को एक साथ चार खास पर्व मनाए जा रहे हैं। आज वामन जयंती, विश्वकर्मा पूजा, कन्या संक्रांति और परिवर्तिनी एकादशी है। हर साल कन्या संक्रांति की तारीख पर ही विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार प्राचीन समय में कन्या संक्रांति के दिन ही ब्रह्मा जी की कृपा से विश्वकर्मा जी प्रकट हुए थे। विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पी माने गए हैं।

खासतौर पर मशीनरी और निर्माण कार्य से जुड़े लोग विश्वकर्मा पूजा का पर्व बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। विश्वकर्मा ने सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेता युग में सोने की लंका, द्वापर युग में द्वारिका का निर्माण किया था। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की तीन पुत्रियां थीं। ऋद्धि-सिद्धि और संज्ञा। ऋषि-सिद्धि का विवाह गणेश जी से हुआ और संज्ञा का विवाह सूर्य देव से।

ये है वामन अवतार की संक्षिप्त कथा

भगवान विष्णु के अवतार वामन देव की जयंती भी आज ही मनाई जा रही है। प्राचीन समय में वामन देव ने असुर राजा बलि का अहंकार तोड़ा था। वामन ब्राह्मण के रूप में उन्होंने तीन पग भूमि राजा बलि से दान में मांगी थी। राजा बलि ने ब्राह्मण को छोटा जानकर अहंकार के साथ तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। इसके बाद वामन भगवान ने एक पग में धरती और दूसरे पग में आकाश ले लिया। तब राजा बलि को अपनी गलती का अहसास हुआ और तीसरे पग रखने के लिए राजा ने अपना सिर आगे कर दिया। जैसे ही वामन भगवान ने अपना पैर राजा बलि के सिर पर रखा, वह पाताल में चला गया।

बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर विष्णु जी प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब राजा बलि ने विष्णु जी को पाताल लोक ले जाने का वर मांग लिया। विष्णु जी बलि को ये वर दिया और वे भी उसके साथ पाताल लोक चले गए। बाद में देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को भाई बनाकर विष्णु जी को पाताल से मुक्त कराया था।

हर माह आती है संक्रांति

सूर्य जिस दिन एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करता है, उसे संक्रांति कहा जाता है। 17 सितंबर को सूर्य सिंह से कन्या में प्रवेश करेगा, इसलिए इसे कन्या संक्रांति कहा जाता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 12 संक्रांतियां आती हैं। सूर्य एक राशि में करीब एक माह रुकता है और फिर राशि बदल लेता है।

आज है परिवर्तिनी एकादशी व्रत

इस एकादशी के संबंध में मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दौरान विश्राम कर रहे होते हैं और इस तिथि पर करवट बदलते हैं, इस परिवर्तन की वजह से ही इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इसदिन विष्णु जी के लिए व्रत किया जाता है।

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