आरक्षण पर रणनीति बनाने 23 को होगी राजधानी में सर्व आदिवासी समाज की बैठक
बागबाहरा। छ.ग.सर्वआदिवासी समाज के महासमुन्द जिलाध्यक्ष मनोहर ठाकुर ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि बिलासपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य की सेवाओं औऱ शैक्षणिक संस्थाओं में अनुसूचित जनजाति के लिये प्रावधानित 32% आरक्षण को ख़ारिज कर दिया गया है। आदिवासी समाज को झकझोर देने वाली इस निर्णय से आदिवासी समाज जिस संवैधानिक अधिकार को लोकतांत्रिक आंदोलन औऱ संघर्ष से हासिल किया था, उससे अब वंचित हो गये है। लेकिन इसे फिर ले के ही रहेंगे।
इस अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर रणनीति बनाने के लिये छ. ग. सर्व आदिवासी समाज के प्रांताध्यक्ष भारत सिंह के अध्यक्षता में प्रदेश कार्यकारिणी, जिला अध्यक्ष, महिला प्रभाग, युवा प्रभाग औऱ सक्रिय सदस्यों की अतिआवश्यक बैठक 23 सितंबर को 4.00 बजे रानी दुर्गावती आदिवासी प्रगति महिला मंडल भवन, अवंति नगर, रायपुर में रखी गई है।श्री ठाकुर ने कार्यसमिति के सदस्यगण सहित समाज के बुद्धिजीवियों, समाजप्रमुखों, अधिकारी-कर्मचारियों,महिलाओं व युवाओं से आग्रह किया है कि रायपुर में निर्धारित बैठक में उपस्थित होकर रणनीति बनाने में अपनी सहभागिता देवें। उल्लेखनीय है कि इस संबंध में प्रांत अध्यक्ष भारत सिंह को जिलाध्यक्ष मनोहर ठाकुर ने पत्र प्रेषित कर आग्रह किया था कि माननीय हाईकोर्ट बिलासपुर का आरक्षण के निर्णय के संबंध में गौर किया जावे तो राज्य सरकार को चाहिए कि किन परिस्थितियों में आरक्षण 50 प्रतिशत से ऊपर रखा जाना उचित होगा,इसकी व्याख्या की जानी चाहिए।
आश्चर्य की बात तो ये है कि छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी 12 प्रतिशत वाले को आरक्षण 16 प्रतिशत तथा आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति वर्ग की आबादी 32 प्रतिशत वाले को 20 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना क्या न्यायोचित है? क्या अनुसूचित वर्ग को राष्ट्रीय मुख्यधारा से जोड़ने की पहल पर कुठाराघात नहीं है?लगता है तत्त्कालीन डा. रमन सिंह के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार ने आरक्षण को 58 प्रतिशत किये जाने संबंधित कुछ आवश्यक बिन्दुओं के व्याख्या किये बगैर ही कानूनी अमलीजामा पहनाया गया हो तथा इसके विरुद्ध किये गये याचिका पर तथ्यात्मक आधार स्तंभ को मजबूती के साथ न रखा गया हो। ठीक दूसरे पहलु भी यह सोचनीय है कि वर्तमान भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार आरक्षण पालिसी पर अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट में अपील करना चाहिए और तथ्यात्मक ढंग से आदिवासी राज्य में आदिवासी हित में आबादी के अनुपात में आरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए ताकि भारतीय संविधान के मंशानुरूप अनुसूचित वर्ग को राष्ट्रीय मुख्यधारा में जोड़ने की मार्ग प्रशस्त हो सके।
सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार की संरक्षण हर क्षेत्र में होनी चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं हो रहा है।हम आहृवान करते हैं कि आदिवासी हित संरक्षण के लिए आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण प्राप्ति हेतु दलगत भावना से ऊपर उठकर प्रदेश स्तरीय आदिवासी कमेटी बनाकर सुप्रीम कोर्ट की दरवाजा खटखटाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में स्वनिर्भर होकर आदिवासी समाज अपनी हक की लड़ाई लड़े।इसके लिए कानून विद व कानूनी सलाहकार की समिति तथा वित्तीय प्रबंधन समिति की सक्रियता आवश्यक है।अगर हम सब आदिवासी समाज हमारी कदम ताल में जरा भी चूक कर बैठे मतलब अपने आपको,समाज को नेस्तनाबूत करना है।