तुर्की के भारत के गेहूं लौटाने के बाद रूबेला वायरस चर्चा में है। तुर्का का कहना है कि भारत के गेहूं में रूबेला वायरस पाया गया है, इसलिए इसे वापस भेज रहे हैं। ऐसे में आपके मन में सवाल होगा कि आखिर रूबेला वायरस क्या होता है और यह इंसानों में कैसे फैलता है। रूबेला वायरस के लक्षण क्या हैं और इसका उपचार कैसे होता है?
क्या होता है रूबेला वायरस?
रूबेला एक तरह की वायरल बीमारी है। इसे जर्मन खसरा भी कहते हैं। यह वायरस खांसने और छींकने से फैलता है। खांसने और छींकने के दौरान गले और श्वास नली से निकली बूंदें अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकती हैं। एक बार संक्रमित होने के बाद रोगी में संक्रमण 3 से 5 दिनों तक रहता है। हालांकि, अधिकतर संक्रमितों में कोई खास लक्षण नहीं दिखते हैं। ऐसे लोगों के शरीर में एक हफ्ते बाद रूबेला वायरस का असर अपने आप खत्म हो जाता है। मगर कुछ संक्रमितों के शरीर पर चेचक की तरह लाल चकते हो जाते हैं और सिर एवं शरीर में दर्द, हल्का बुखार, सर्दी-जुकाम के हल्के लक्षण भी दिखाई देते हैं।
किसे है रूबेला वायरस से खतरा?
रूबेला वायरस से गर्भवती महिलाओं को सबसे ज्यादा खतरा होता है। ऐसी महिलाओं के गर्भ में विसंगतियां हो सकती हैं। साथ ही उसकी होने वाली संतान के अंदर जन्मजात रूबेला का असर रह सकता है। इससे बच्चे को बहरापन, मानसिक विसंगति, आंखों की रोशनी कम होना जैसी बीमारियों का खतरा रहता है।
रूबेला का इलाज क्या है?
चूंकि रूबेला एक संक्रामक बीमारी है इसलिए इसके इलाज के लिए कोई खास मेडिसिन नहीं बनी है। हालांकि दर्द और बुखार को कम करने के लिए दवाई का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी वैक्सीन भी मौजूद है, जो नवजात बच्चों को लगाई जाती है। इसका बचाव ही सबसे बड़ा उपचार है। रूबेला वायरस अथवा जर्मन खसरा से ग्रसित रोगी से स्वस्थ लोगों और खासकर गर्भवती महिलाओं को दूर रहना चाहिए। संक्रमित व्यक्ति के आसपास साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए। खांसते या छींकते वक्त रूमाल का इस्तेमाल करें। हाथों को साबुन से अच्छी तरह साफ करें। फेस मास्क लगाकर भी इससे बचा जा सकता है।