नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानिए पूजा विधि, मंत्र और भोग के बारे में

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रायपुर। शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र 17 अक्टूबर, शनिवार से आरंभ हो रहा है। पहले दिन मां शैलपुत्री का पूजन होता है। मां शैलपूत्री सौभाग्य का प्रतीक होती हैं। वह नौ दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। उनका यह नाम पर्वत राज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण हुआ। नवरात्र के पहले दिन योगी अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करके योग साधना करते हैं। मां शैलीपुत्री की पूजा करने के लिए सबसे पहले चौकी पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर रखकर उसे गंगा जल से शुद्ध करें। कलश में जल भरकर उस पर नारियल रखकर चौकी पर कलश स्थापना करें। चौकी पर ही श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सात सिंदूर की बिंदी लगाएं।

इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, अघर््य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। अंत में प्रसाद बांटकर पूजन पूर्ण करें।

मां शैलपुत्री की पूजा स्त्रियों के लिए विशेष फलदायी

मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। मां शैलपुत्री का आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।

मां शैलपुत्री के दाएं हाथ में डमरू और बाएं हाथ में त्रिशूल है। देवी का वाहन बैल है। मां शैलपुत्री के मस्तक पर अर्ध चंद्र विराजित है। माता शैलपुत्री मूलाधार चक्र की देवी मानी जाती हैं। माता शैलपुत्री योग की शक्ति द्वारा जागृत कर मां से शक्ति पाई जा सकती है। दुर्गा के पहले स्वरूप में शैलपुत्री मानव के मन पर नियंत्रण रखती हैं। चंद्रमा पर नियंत्रण रखने वाली शैलपुत्री उस नवजात शिशु की अवस्था को संबोधित करतीं हैं जो निश्चल और निर्मल है और संसार की सभी मोह-माया से परे है।

मां शैलपुत्री महादेव की अर्धांगिनी पार्वती ही हैं। ज्योतिषी मान्यता के अनुसार, मां शैलपुत्री चंद्रमा के दोष को दूर करती हैं। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है, मन अशांत रहता है वैसे लोगों को माता के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना करनी चाहिए। देवी शैलपुत्री की उपासना से चंद्रमा के दोष दूर होते हैं। शैलपुत्री का अर्थ होता है पर्वत की बेटी। सती के देह त्यागने के बाद उन्होंने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं।

इन नामों से भी हैं प्रचलित

हिमालय के राजा का नाम हिमावत था और इसलिए देवी को हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हेमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। मां शैलपुत्री वृष की सवारी करती हैं, अत: उनका एक नाम वृषारुढ़ा भी है।

स्तुति: या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

स्रोत पाठ:

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान।

सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम॥

चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।

मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम॥

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