शिखादास/छत्तीसगढ़ क्राइम्स
पिथौरा। थाना क्षेत्र में रामलाल व ईश्वर खडिया नामक दो मजदूरों ने ईंट भट्टा मालिक सुभाष अग्रवाल पिथौरा पर घर में बंधक बनाकर मारपीट करने व जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया है। जिसके संबंध में बुधवार 16/8/को आदिवासी समाज पिथौरा के नेतृत्व मे थाना में एक आवेदन प्रस्तुत कर कार्रवाई की मांग की गई है।
रामलाल खड़िया पिता ननकी राम खड़िया (60) निवासी ग्राम डूमरपाली ने पुलिस को दिए आवेदन में उल्लेखित किया है कि वह रोजी मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करता है। वर्ष 2020 में अपने परिवार व ग्राम देवीखार निवासी ईश्वर खड़िया पिता दुबराज खड़िया (40) के साथ झारखण्ड के ईंट भट्ठा में मजदूरी करने गया था।
ईंट भट्ठा सरदार सुभाष अग्रवाल निवासी पिथौरा ने दोनों को काम पर जाने के लिए तीस- तीस हजार रुपए एडवांस दिया था। जहां ईंट भट्टे में मिट्टी वाले जगह के बजाय पथरीली जगह में काम करने के लिए बैठा दिया गया। जिसके कारण उन्हें काम करने में बहुत परेशानी हुई।
ठीक से काम नहीं चल पाने की वजह से उक्त एडवांस राशि को वे नहीं दे पाये। उन लोगों ने धीरे-धीरे उक्त राशि को वापस करने की बात कही। कोरोना काल में तबीयत खराब होने के कारण दोबारा उसके भट्टा नहीं जा सके। उस समय भट्ठा सरदार सुभाष अग्रवाल द्वारा मारपीट कर प्रताड़ित करते हुए उसे 130000 रुपए व उसके साथी ईश्वर खड़िया से 120000 रुपए की मांग की जा रही है।
आवेदन में प्रार्थी ने उल्लेखित किया है कि बीते 09 अगस्तको व उसके साथी ईश्वर खड़िया को बलपूर्वक उनके घर से उठाकर सुभाष अग्रवाल ने अपने घर में बंधक बनाकर मारपीट करते हुए जान से मारने की धमकी दिया है। साथ ही जातिसूचक गाली गलौज भी किया है। 4-5 दिन तक बंधक बनाकर अपने घर रखकर मारपीट किया।
किसी तरह बीते 12 अगस्त को यह इस बात की जानकारी सर्व आदिवासी समाज को मिली। समाज के कहने पर पिथौरा पुलिस द्वारा बंधक बनाए दोनों व्यक्ति को छुड़वाया गया।
अब यहां यह सवाल खड़ा होता है कि ईँटा भट्ठा सरदार सुभाष अग्रवाल के हौसले इतने बुलँद कैसे कि उसने 5दिन तक बँधक बनाकर दो गरीब आदिवासी मजदूर को रखा तथा मारपीट कर प्रताड़ित करता रहा ?? किसका सँरक्षण है लेबर सप्लायर सुभाष अग्रवाल को ? मानवीय हिँसा करने वाले मजदुर दलाल पर श्रम विभाग मेहरबान है क्या?? गाँव से श्रमिक पलायन को रोकने हेतु पँचायतो मे इच्छा शक्ति का अभाव परिलक्षित हो रहा। अगर सर्व आदिवासी समाज सँज्ञान नही लेते तो दोनों श्रमिकों की क्या बदहाली होती ?
मानवाधिकार आयोग एसटी एससी आयोग को स्वतः सँज्ञान लेने की आवश्यकता ऐसे मामलों में ??