महुआ फूल के आस में झुलस रहे हैं बेशकिमती सागोन
किशन सिन्हा/ छत्तीसगढ़ क्राइम्स
अप्रैल और मार्च महीना लगने के साथ ही देश में लग जाता है पतझड़ का सीजन जहां वृक्षों की लताएं अपने पुराने पत्तियों को त्याग कर नये कोपलों को धारण कर मानो सिंगर कर लेती है, इस मौसम में विशेष प्रकार के नये फूल नए फल वृक्षों में आक्षादीत होने लगते हैं। इन्हीं फूलों में एक फूल है महुआ का, गरियाबंद जिला मुख्य स्वरूप से अपने वनांचल क्षेत्रों के के लिए जाना जाता है जहां के जंगलों में बहुताए मात्रा में महुआ के पेड़ हमें देखने को मिलते हैं।
यहां के निवासी इस महुआ के फूल को इकट्ठा कर इस सीजन में अच्छी खासी आमदनी अर्जित करते हैं, जहां महुआ का फूल एक विशेष मौसम में मार्च से फरवरी व अप्रैल के माह के बीच अपने पुराने पत्तों को त्याग कर नए पत्तों को धारण करने से पहले खिलती है उसके बाद उन पेड़ों में लगती है। उनके फल वनांचल से प्राप्त इन पुष्पों का बाजार में वह आम दैनिक जीवन में उपयोग किया जाता है यही कारण है कि महुआ की फूलों का बाजार में अच्छा खासा दाम संग्रहण कर्ताओं को मिल जाता है। इसके लिए ग्रामीण सुबह-सुबह महुआ के पेड़ के निचे से उन्हें उठाकर संग्रहित कर लगभग एक से दो दिन सुखाकर बाजार में 30 से ₹40 प्रति किलो के हिसाब से भेज कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित करते हैं और इसी मुनाफे के आस में शुरू होता है। वन विनाश का सिलसिला महुआ के वृक्ष में पत्तियां पतझड़ के कारण झड़ने लगती है जो की पेड़ के नीचे गिरकर जमा हो जाता है जिससे महुआ के फूल गिरने पर उसे ऊठाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, पतझड़ में तो जंगलों में बहुत आए मात्रा में पत्तियों का देर लग जाता है इन पत्तों को रोज-रोज साफ करने के बजाय ग्रामीण माचिस की एक तीली सूखे पत्तों में दिखाकर अपना काम बड़े आसानी से कुछ मिनट में निपटा लेते हैं लेकिन यही कुछ मिनट में अपना काम निपटाना का आस और चांद रूपयों का उनका प्यास वन विनाश और प्रकृति के नए पौधों को पनपना से वंचित कर देता है।
गर्मी के इस मौसम में घने वनों में सुबह और शाम के वक्त होने पर एक बार से उठता नजर आता है जो इस बात का परिचायक है की महुआ के आस में लोग उसके पेड़ के पास लगाए दावागग्नि पूरे वनांचल में फैला रहे हैं जिससे नए-नए पौधे उगने से पहले ही गर्त में चले जा रहे हैं बिते दिनो छुरा के समीपस्थ कामराज व पेन्ड्रा के बीच वन विभाग द्वारा लगाए गए सागोन के जंगल में था आग तमाम पेड़ पौधो को अपने साथ झुलसा रही है और यही कमोबेस स्थिति पुरे वनांचल क्षेत्र की है।
जंगली जानवरों को है दावाग्नि से जान माल के हानि का भय
पतझड़ का मौसम होने के कारण जंगलों में आमतौर पर सूखे हुए पत्तों का एक मोटा सा परत सतह पर बिछा हुआ नजर आता है जो वक्त के साथ-साथ परिवर्तन सील मौसम के अलग-अलग रूपों से खाद रूप में परिवर्तित हो जाता है लेकिन यही पत्ते जब आग की चपेट में आते हैं तो खाद बनने के बजाय प्रकृति को वरदान देने के अपेक्षा अभिशाप रूप में अपने साथ-साथ हरे-भरे पत्तों पेड़ों को भी जलने लगते हैं जिससे वनों में रहने वाले छोटे-बड़े वन्य प्राणी जो चारों तरफ से उठने आज के लपटों से गिरकर असहाय महसूस करते हुए अपना दम तोड़ देते हैं क्योंकि इस प्रकार की दवा अग्नि कुछ मिनट में अपना रौद्र रूप ले लेती है जिससे जंगलों में निवास करने वाले जीव जंतु एकाएक अपने लिए सुरक्षित स्थान नहीं ढूंढ पाए जो उनके प्राण घात का कारण बन जाती है।
हर साल होती है वनांचल क्षेत्र में बिट क्षेत्रों के सीमानुसार फायर वाचर की अस्थाई नियुक्ति मगर नजर नहीं आते हैं कहीं भी ऐसे फायरवाचटर
प्रशासन द्वारा पतझड़ के मौसम में जंगलों में किन्हीं कारणो से लगने वाले आग से वनों के बचाव के लिए हर एक फॉरेस्ट क्षेत्र में उनके आवश्यकता के हिसाब से फायरवाचर की नियुक्ति की जाती है जो कि इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि जंगलों में लगने वाले दावाग्नि से किस प्रकार से जंगल और जंगल में निवास रन वन्य प्राणियों को बचाया जाए लेकिन जब वनों में इस प्रकार की घटना देखने को मिलती है तो फायर वॉचर मौका-ए-वारदात में कहीं भी नजर नहीं ही आते हैं हां मगर आते हैं तो वह केवल ऑफिस के फाइलों में और वहां से निकलने वाली तनख्वाहों की राशि में यह कितना सही और कितना गलत इसकी गवाही तो हरे भरे पेड़ पौधे न होकर जंगलों में बिखरी सुखी काली रख गवाही देता है।
आइए जानते हैं इसके लिए बने कानून के बारे में
वनों में आग लगाना व जलता छोड़ देना आरक्षित वन्य भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 (1) ख, ग एवं संरक्षित वन्य भारतीय वन अधिनपिम 1927 की धारा 33 (1) प, इ के तहत दंडनीय अपराध है जिसके अंतर्गत 3 वर्ष से 7 वर्ष की सजा हो सकती है या 25000 रूपये तक आर्थिक दंड या दोनों हो सकता है।
कुछ उपाए जिन्हें अपनाया जा सकता है:- महुआ, तेंदू, चार, साल बीज एवं अन्य वन उपज उपज इकट्ठा करने के लिए पेड़ के नीचे झाडू से सूखे पत्ते अलग करें। जिससे आसानी से इकट्ठा किया जा सके। तेंदूपत्ता को बूटा कटाई विधि के माध्यम से संग्रहण करें, इस विधि से पत्ते साफ मिलेंगे और बाजार में अधिक कीमत मिलेगी।
जहाँ तक हो सके जंगल में खाना ना पकाए यदि खाना बनाना आवश्यक हो तो साफ और खुली जगह में बनाएं और खाना बनाने के बाद आग पूरी तरह बुझा दे।जंगल में आग देखते ही बुझाने का प्रयास करें, अधिक हो तो वन विभाग को सूचित करें।आग बुझाने में वन्य कर्मचारियों व ग्राम वासियों की सहायता करें।आग लगने की स्तिथि में आग से कुछ दूरी में पतली पंक्ति में सूखे पत्तों की सफाई करते फायर लाइन निर्मित करें। ताकि आग आगे न फैल सके।