नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई है. इस संबंध में लोकसभा सचिवालय की तरफ से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया है. राहुल केरल के वायनाड से सांसद थे. एक दिन पहले ही गुजरात के सूरत की सेशन कोर्ट ने चार साल पुराने मानहानि केस में राहुल को दोषी पाया था और दो साल जेल की सजा सुनाई थी. इसके साथ ही कोर्ट ने निजी मुचलके पर राहुल को जमानत देते हुए सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया था. इस बीच, संसद सदस्यता रद्द होने से राहुल गांधी के राजनैतिक भविष्य को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. आईए जानते हैं राहुल के सामने आगे क्या कानूनी विकल्प के रास्ते खुले हैं.
दरअसल, जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक, अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई हो तो ऐसे में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाती है. इतना ही नहीं सजा की अवधि पूरी करने के बाद छह वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी होते हैं. राहुल को एक दिन पहले ही कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई और दूसरे दिन लोकसभा सचिवालय की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में राहुल की संसद सदस्यता रद्द करने की सूचना दे दी गई है.
क्या कहता है जनप्रतिनिधि कानून…
– साल 1951 में जनप्रतिनिधि कानून आया था. इस कानून की धारा 8 में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है, तो जिस दिन उसे दोषी ठहराया जाएगा, तब से लेकर अगले 6 साल तक वो चुनाव नहीं लड़ सकेगा.
– धारा 8(1) में उन अपराधों का जिक्र है जिसके तहत दोषी ठहराए जाने पर चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती है. इसके तहत, दो समुदायों के बीच घृणा बढ़ाना, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म जैसे अपराधों में दोषी ठहराए जाने पर चुनाव नहीं लड़ सकते. हालांकि, इसमें मानहानि का जिक्र नहीं है.
सजा मिलते ही चली जाती है सदस्यता
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म हो गई है. हालांकि, राहुल को अपनी सदस्यता को बचाए रखने के सारे रास्ते बंद नहीं हुए हैं. राहुल को सजा की चुनौती देने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है. इन दिनों के भीतर वो सजा में राहत के लिए हाईकोर्ट में चुनौती दे सकते हैं, जहां अगर सूरत सेशन कोर्ट के फैसले पर स्टे लग जाता है तो सदस्यता बच सकती है. हाईकोर्ट अगर स्टे नहीं देता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से अगर स्टे मिल जाता है तो भी उनकी सदस्यता बच सकती है. हालांकि, जानकार इसकी उम्मीद कम ही बता रहे हैं. क्योंकि राहुल के मामले में दोषसिद्ध हो गया है. अगर ऊपरी अदालत से उन्हें राहत नहीं मिलती तो राहुल गांधी 8 साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ पाएंगे.
2024 में चुनाव लड़ना भी मुश्किल!
राहुल गांधी की मुसीबतें और बढ़ सकती हैं. बताया जा रहा है कि अगर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट राहुल के दोषी पाए जाने पर रोक नहीं लगाता तो वे 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. अगर राहुल की याचिका पर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट सजा पर रोक भी लगा देती है, तब भी उनकी सदस्यता बहाल नहीं होगी. दरअसल, इसके लिए राहुल गांधी के दोषी पाए जाने पर भी रोक जरूरी है.
क्या कहता है कानून…
– आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) में दी गई कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, दोषसिद्धि के आदेश को उसी उच्च कोर्ट के समक्ष चुनौती दी जा सकती है, जहां अपील निहित है.
– सीआरपीसी की धारा 374 सजा के खिलाफ अपील का प्रावधान देती है. इसलिए राहुल गांधी अभी सजा के खिलाफ सेशंस कोर्ट के समक्ष ही चुनौती दे सकते हैं. – यदि सेशंस कोर्ट द्वारा कोई राहत नहीं दी जाती है, तो इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.
– जैसा कि मामला कोर्ट के समक्ष लंबित है, वह अपनी सजा पर अंतरिम स्टे और जमानत के रूप में कोर्ट से अंतरिम राहत भी मांग सकते हैं.
– धारा 389 में अपील लंबित रहने तक सजा के निलंबन और अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान है.
– इसमें कहा गया है कि किसी सजायाफ्ता व्यक्ति द्वारा किसी भी अपील को लंबित रखते हुए अपीलीय कोर्ट यह आदेश दे सकती है कि जिस सजा या आदेश के खिलाफ अपील की गई है, उसका निष्पादन निलंबित किया जाए.
– राहुल के पास संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का विकल्प भी है. अनुच्छेद 136 के तहत, सुप्रीम कोर्ट का भारत में सभी कोर्ट्स और ट्रिब्यूनल्स पर व्यापक अपीलीय क्षेत्राधिकार भी है.
– सुप्रीम कोर्ट अपने विवेक से संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत भारत के क्षेत्र में किसी भी कोर्ट या ट्रिब्यूनल द्वारा पारित या दिए गए किसी भी कारण या मामले में किसी भी निर्णय, डिक्री, निर्धारण, वाक्य या आदेश से अपील करने के लिए विशेष अनुमति दे सकता है.
– हालांकि, ऐसे मामलों में जहां अपील अदालतों के समक्ष होती है और सजा के निलंबन का प्रावधान है, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की संभावना कम ही रहती है.
– वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा कहते हैं कि राहुल गांधी को अपनी अपील के साथ सीआरपीसी की धारा 389 के तहत एक आवेदन भी दाखिल करना होगा, जिसमें सजा और दोषसिद्धि को निलंबित करने की मांग की गई हो.
क्या कहते हैं कानूनी जानकार?
अयोग्यता के बाद राहुल गांधी के पास अपनी सीट बहाल करने के लिए क्या उपाय हैं, इसे लेकर पूर्व ASG और संविधान विशेषज्ञ सिद्धार्थ लूथरा ने कानूनी राय दी. उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले में जनप्रतिनिधि अधिनियम को लेकर स्थिति स्पष्ट की गई है. अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई हो तो ऐसे में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाती है. इस संबंध में अयोग्यता को लेकर लोकसभा स्पीकर की तरफ से एक नोटिफिकेशन जारी किया जाता है. हालांकि, संबंधित सांसद उसी समय लोकसभा स्पीकर के पास जा सकता है और नोटिफिकेशन रिकॉल की अपील कर सकता है. हवाला दे सकता है कि फिलहाल सजा पर रोक लगाई है. इसके साथ ही 2024 के चुनाव का हवाला दे सकता है. राहुल के पास अन्य विकल्प हैं. वो सजा पर रोक लगाने के लिए सेशंस कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं.
अयोग्यता को लेकर पहले क्या थे नियम
जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(4) के प्रावधानों के अनुसार, एक मौजूदा सांसद/विधायक, दोषी ठहराए जाने पर, 3 महीने की अवधि के भीतर फैसले के खिलाफ अपील या पुनरीक्षण आवेदन दायर करके पद पर बना रह सकता था. इसे 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. 2013 के फैसले के अनुसार, अब यदि एक मौजूदा सांसद/विधायक को किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तो उसे दोष सिद्ध होने पर तुरंत अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा (सजा दिए जाने पर नहीं) और सीट को खाली घोषित कर दिया जाएगा.
जानिए किस मामले में राहुल को मिली सजा
राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार में 13 अप्रैल 2019 को चुनावी रैली में कहा था, ”नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?” राहुल के इस बयान को लेकर बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ धारा 499, 500 के तहत आपराधिक मानहानि का केस दर्ज कराया था. शिकायत में बीजेपी विधायक ने आरोप लगाया था कि राहुल ने 2019 में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए पूरे मोदी समुदाय को कथित रूप से यह कहकर बदनाम किया कि सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है? पूर्णेश मोदी ने राहुल के बयान के खिलाफ केस कर दिया. केस मानहानि का था और सूरत की कोर्ट में किया गया था.