नई दिल्ली. देशभर में अमूल दूध एक रुपए सस्ता हो गया है। गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) के मैनेजिंग डायरेक्टर जयेन मेहता ने कहा है कि अमूल गोल्ड, अमूल शक्ति और अमूल फ्रेश की कीमतें घटाई गई हैं। नई कीमतें आज यानी 24 जनवरी से ही लागू कर दी गई हैं।
आम चुनाव के नतीजों से पहले बढ़ाए थे दाम
पिछले साल लोकसभा चुनाव नतीजे 4 जून को आए थे। इससे 3 दिन पहले ही अमूल दूध की कीमत में बढ़ोतरी की गई थी, जिसमें अमूल गोल्ड दूध में 2 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई थी। वहीं अमूल शक्ति और टी स्पेशल की कीमतों में भी बढ़ोतरी की गई थी।
GCMMF ने कहा था- प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ी
पिछले साल दाम बढ़ाए जाने पर GCMMF ने कहा था कि कंपनी के ऑपरेशन और प्रोडक्शन की कॉस्ट बढ़ने की वजह से कीमतें भी बढ़ाई गई हैं। हालांकि, यह बढ़ोतरी ओवरऑल MRP की 3-4% ही है, जो की खाद्य महंगाई की दरों से काफी कम है। यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि फरवरी 2023 से अब तक कीमतों में कोई इजाफा नहीं किया गया था।
अमूल का मॉडल तीन लेवल पर काम करता है:
1. डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी
2. डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन
3. स्टेट मिल्क फेडरेशन
- दूध का उत्पादन करने वाले गांव के सभी किसान डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी के मेंबर होते हैं। ये मेंबर रिप्रजेंटेटिव्स को चुनते हैं जो मिलकर डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन को मैनेज करते हैं।
- डिस्ट्रिक्ट यूनियन मिल्क और मिल्क प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग करती है। प्रोसेसिंग के बाद इन प्रोडक्ट्स को गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड डिस्ट्रीब्यूटर की तरह काम कर मार्केट तक पहुंचाता है।
- सप्लाई चेन को मैनेज करने के लिए प्रोफेशनल्स को हायर किया जाता है। दूध के कलेक्शन, प्रोसेसिंग और डिस्ट्रीब्यूशन में डायरेक्ट-इनडायरेक्ट रूप से करीब 15 लाख लोगों को रोजगार मिलता है।
- अमूल का मॉडल बिजनेस स्कूल्स में केस स्टडी बन गया है। इस मॉडल में डेयरी किसानों के कंट्रोल में रहती है। यह मॉडल दिखाता है कि कैसे प्रॉफिट पिरामिड के सबसे निचले हिस्से तक पहुंचता है।
अमूल से जुड़े अन्य तथ्य
- अमूल के पिरामिड मॉडल में सबसे नीचे मिल्क प्रड्यूसर्स आते हैं। खर्च होने वाले हर एक रुपए में से करीब 86 पैसे उसके मेंबर को जाते हैं और को-ऑपरेटिव बिजनेस चलाने के लिए 14 पैसे रखे जाते हैं। क्वांटिटी ज्यादा होने से ये रकम बहुत बड़ी हो जाती है।
- डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन का प्रमुख चेयरमैन होता है, जो हर महीने मीटिंग करता है। यहां ये लोग को-ऑपरेटिव बिजनेस का जायजा लेते हैं। इसमें एक्सपेंशन प्लान, नई मशीनरी खरीदने और सदस्यों को बोनस देने जैसे मुद्दों पर चर्चा होती है।
- प्रोडक्टिविटी में सुधार लाने के लिए मवेशियों की सेहत का ध्यान रखा जाना भी जरूरी है। इसलिए, को-ऑपरेटिव मेंबर को मुफ्त ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें मवेशियों की देख-रेख कैसे करें और अन्य चीजें बताई जाती हैं। ट्रेनिंग प्रोग्राम से किसानों की बड़ी मदद होती है।
- मवेशियों को दिन में तीन बार चारा और न्यूट्रिएंट्स दिया जाता है। यहां कैटल फीड प्लांट लगाए गए हैं। प्रोटीन, फैट, मिनरल को मिलाकर मवेशियों के लिए चारा बनता है। चारे बनाने वाले प्लांट की मशीनरी को डेनमार्क से इंपोर्ट किया गया है।
- किसानों के लिए सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की भी सुविधा है। को-ऑपरेटिव नए इक्विपमेंट खरीदने के लिए किसानों को सब्सिडी देती है। जैसे दूध निकालने वाली ऑटोमेटिक मशीन 40,000 की आती है। सब्सिडी से इसका दाम आधा हो जाता है।