भिलाई। पापा आटो चलाकर घर का गुजर-बसर करते। किसी तरह मुझे पढ़ाया। 12वीं के बाद जॉब करना था। आर्मी में जाने का मन बनाया। रनिंग के लिए जूते तक नहीं थे। मोजे पहनकर ग्राउंड में रोज दौड़ लगाता। दोस्त मोजे कहकर मजाक बनाते, लेकिन हार नहीं मानी। पंपलेट की रफ कॉपी बनाकर पढ़ाई की। इसी दौरान कांकेर में आर्मी का भर्ती कैंप लगा। ज्वाइनिंग हो गई। वे राजपूत रेजिमेंट में सिपाही बन गए। इसके बाद इंडियन मिलिट्री का एग्जाम फाइट कर अभिषेक लेफ्टिनेंट बन गए। अभिषेक ने बताया कि राजपूत रेजिमेंट के इतिहास का पहला सिपाही हूं जो सीधे सैन्य अफसर बना है।
अभिषेक बताते हैं कि जब मैं पांच साल का था, तभी मां का निधन हो गया। मां कहती थी कि बेटा बड़ा अफसर बनेगा। उनके सपने को पूरा करने के लिए पिता उमेश सिंह ने जीतोड़ मेहनत की। आज उनकी कही बात सच हो गई। पिता ने ही माता-पिता दोनों का फर्ज निभाया।
ये कहानी है, भिलाई खुर्सीपार जोन-2 के रहने वाले अभिषेक सिंह की। अभिषेक के पिता उमेश सिंह आटो चालक हैं। उन्होंने अपने बेटे को पढ़ा लिखाकर सेना में काबिल अफसर के लिए तैयार किया। 12 दिसंबर 2020 को ही अभिषेक ने अपनी चार साल की कड़ी ट्रेनिंग पूरी की। पासिंग आउट परेड में शामिल होने के बाद उन्हें पठानकोट में पहली पोस्टिंग मिली है। जनवरी के पहले सप्ताह में ज्वाइनिंग देने पठानकोट जाएंगे।
बाइबिल की एक लाइन ने हार को जीत में बदल दिया
अभिषेक बताते हैं, घर की स्थिति ठीक नहीं थी, तो पहले यही सोचता था कि कोई सरकारी नौकरी मिल जाए। राजस्थान के गंगानगर में पोस्टिंग के दौरान मैंने पहली बार सैन्य अफसर विजय पांडेय को देखा। उनसे ही अफसर बनने के लिए जानकारी ली। साल 2013 से लेकर 2015 तक पूरी मेहनत-लगन के साथ तैयारी की। ड्यूटी के साथ-साथ एग्जाम की तैयारी काफी टफ था। 2015 के रिटर्न एग्जाम में सलेक्शन हो गया, लेकिन पहले ही इंटरव्यू में मैं फेल हो गया। फिर भी हार नहीं मानी। लेफ्टिनेंट अभिषेक बताते हैं कि इंटरव्यू में फेल हुआ तो टूट सा गया। फिर उन्होंने बाइबिल पढ़ना शुरू किया। जिसमें लिखे एक वचन-मैं तुझे पूछ नहीं, सिर पर ठहराऊंगा। तुम नीचे नहीं, हमेशा ऊपर ही रहोगे ने हार को जीत में बदल दिया। दूसरी बार फिर दोगुनी मेहनत से एग्जाम की तैयारी की। साल 2016 में एग्जाम के लिए बंगलुरू जाने से पहले सर्जिकल स्ट्राइक हुआ। तब जम्मू-कश्मीर में पोस्टिंग थी। छुट्टी नहीं मिल रही थी, लेकिन रेजिमेंट के अफसरों ने साथ दिया और इंडियन मिलिट्री एकेडमी में सिलेक्ट हो गया।
मां का फर्ज पिता ने निभाया, उनका सपना पूरा किया
अभिषेक बताते हैं कि जब मैं पांच साल का था, तभी मां का निधन हो गया। मां कहती थी कि बेटा बड़ा अफसर बनेगा। उनके सपने को पूरा करने के लिए पिता उमेश सिंह ने जीतोड़ मेहनत की। आज उनकी कही बात सच हो गई। पिता ने ही माता-पिता दोनों का फर्ज निभाया। एक पिता के परिश्रम ने बेटे को ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। अभिषेक अपनी सफलता के पीछे पत्नी मनीषा का बड़ा हाथ मानते हैं। वे बताते हैं कि मनीषा गर्भवती थी, तब वे ट्रेनिंग कर रहे थे। बेटी के जन्म से लेकर ट्रेनिंग पूरी होने तक मनीषा ने पूरे परिवार की देखभाल की।