भाजपा नेता रसिक परमार दुग्ध महासंघ से दिया इस्तीफा

Chhattisgarh Crimes

रायपुर। भाजपा नेता रसिक परमान छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी दुग्ध महासंघ से अपना इस्तीफा दे दिया है। रसिक परमार इकलौते भाजपा नेता हैं जो सरकार बदलने के बाद भी अभी तक अपने पद पर कायम थे। रसिक परमार के इस्तीफे की प्रति सोशल मीडिया में भी वायरल हो रही है। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने अपना बयान जारी किया है।
उन्होंने कहा कि विगत कुछ समय से छत्तीसगढ़ दुग्ध महासंघ में घाटे की खबरें लगातार प्रकाशित प्रसारित होती आ रही हैं। इन आरोपों की पांच स्तरों पर जांच हो चुकी है और हर जांच में आरोप निराधार पाए गए हैं। इसके बाद भी मेरे खिलाफ सुनियोजित कुप्रचार चल रहा था। जिसके कारण मुझे अपने दायित्व निभाने में काफी तकलीफ आ रही थी। जिसके चलते मुझे त्यागपत्र देने का फैसला करना पड़ा है।
मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि पंजीयक के पत्र में 2016-17 से 2018-19 के बीच 19.09 करोड़ की हानि और मुझ पर कर्तव्य से विमुख होने का आरोप है। दरअसल आंकड़ों में तकनीकी त्रुटियों के कारण यह घाटा इतना दिख रहा है। वास्तव में दुग्ध महासंघ की वर्तमान स्थिति अभी भी मजबूत है। मेरे कार्यकाल में महासंघ को कभी परिचालन घाटा तो हुआ ही नहीं। जो घाटा दिख रहा था वह स्थापना व्यय व पूंजीगत व्यय के कारण दिख रहा था।

पर दुर्भाग्य से सुनियोजित ढंग से यह प्रचारित किया जा रहा था कि दुग्ध महासंघ में करोड़ों का घाटा है और वहां बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हो रही हैं। जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि दूध प्रदायक किसान महासंघ से काफी खुश हैं। और जो लोग इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं उनका दुग्ध महासंघ से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है और न ही वे महासंघ के सदस्य हैं। यहां यह भी स्पष्ट कर देता हूं कि महासंघ में राज्य सरकार का एक रुपया भी नहीं लगा है। केंद्रीय योजनाओं व किसानों से सहयोग लेकर महासंघ चल रहा है। लेकिन चूंकि पंजीयन छत्तीसगढ़ में हुआ है इसलिए सत्ता का हस्तक्षेप हो रहा है।

मेरे कार्यकाल में दूध का कलेक्शन 24000 लीटर से बढ़कर 1.30 लाख लीटर हो गया। मैंने अपने कार्यकाल में निरंतर दुग्ध महासंघ और दुग्ध उत्पादकों के हित को ध्यान में रखते हुए काम किया। इस सिलसिले में कुछ कड़े फैसले भी लिए गए जिनसे कुछ स्वार्थी तत्वों को नाराजगी हुई। और उन्होंने मीडिया में लगातार गलत प्रचार किया। बावजूद इसके लिए उनके आरोप बार बार जांच में खारिज हुए। मुझे विश्वास है कि आगे भी जो जांच होगी उनमें मेरे खिलाफ लगाए गए आरोप असत्य पाए जाएंगे।

आरोपों के संदर्भ में मैं बताना चाहता हूं कि मीठे दूध के निर्माण में भी घाटा दिखाया गया है। इस घाटे का कारण कीमत में वृद्धि को लेकर राज्य सरकार का राजी न होना था। चार वर्षों के विभिन्न पत्राचार के बाद राज्य सरकार ने इस पर अपनी सहमति दी जिसके कारण महासंघ को राशि प्राप्त हुई है। इसी तरह यूएचटी मिल्क के निर्माण में मंडी बोर्ड के साथ अधिक भुगतान को लेकर विवाद चल रहा है जो लगभग निराकृत हो गया है। इन दोनों वजह से यूएचटी मिल्क के निर्माण में घाटे की भरपाई हो चुकी है और घाटे की जगह लाभ दिख रहा है।

घाटे में चलने वाली शासकीय डेयरियों के संचालन का व्यय दुग्ध महासंघ को उठाना पड़ा जो लगभग 3 से 4 करोड़ रुपए है। इसके अतिरिक्त पंजीयक के निर्देश पर महासंघ को छठवां वेतनमान कर्मचारियों को देना पड़ा जिसका अतिरिक्त भार दुग्ध महासंघ पर पड़ा।