इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई थी। बहुचर्चित दोहरे हत्याकांड में हाईकोर्ट ने ट्रॉयल कोर्ट के फैसले सही ठहराते हुए आरोपी मां की अपील खारिज कर दी है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह केस परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है, लेकिन ये सभी सबूत आपस में जुड़कर एक ऐसी कड़ी बनाते हैं जो संदेह से अलग अपराध साबित करते हैं।
8 साल पहले की घटना
महासमुंद के लमकेनी निवासी शिक्षक जनकराम साहू ने 20 दिसंबर 2017 को पुलिस को बताया कि उनके किराएदार ईश्वर पांडे की पत्नी और बेटियां घर के अंदर खून से लथपथ पड़ी हैं।
जब पुलिस मौके पर पहुंची तो दोनों लड़कियां मृत मिलीं। उनकी मां यमुना गंभीर रूप से घायल थी। घटनास्थल से चाकू, ब्लेड, मोबाइल, सुसाइड नोट और खून से सना सामान बरामद किया गया था।
ट्रॉयल कोर्ट ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा
पुलिस ने घायल महिला को अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां उसका बयान लिया गया। उसने बताया कि उसका वैवाहिक जीवन पिछले 6 साल से ठीक नहीं चल रहा था। पति और बेटियां एक- दूसरे से प्यार करते थे। उसे ताना मारते थे, इस वजह से वह डिप्रेशन में चल रही थी। इसके चलते उसने यह कदम उठाया था।
पुलिस ने जांच के बाद कोर्ट में चार्ज शीट प्रस्तुत किया। जिसके बाद महासमुंद के प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश ने 18 मार्च 2021 को दिए गए फैसले में महिला को आईपीसी की धारा 302(2) और धारा 309 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
बयान में स्वीकार किया था- दोनों बेटियों की हत्या की
पुलिस की जांच में सामने आया कि आरोप महिला ने डिप्रेशन और पारिवारिक तनाव के चलते वारदात को अंजाम दिया था। अस्पताल में भर्ती के दौरान उसने डॉक्टरों के सामने अपने बयान में इस बात को स्वीकार भी किया कि उसने ही अपनी बेटियों की हत्या की। इसके बाद आत्महत्या की कोशिश की।
मानसिक स्थिति ठीक नहीं, कहा- कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं
हाईकोर्ट अपील की सुनवाई के दौरान आरोपी महिला की तरफ से तर्क दिया कि वह खुद भी पीड़िता है। सालों से मानसिक रूप से अस्थिर थी। इसके अलावा उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है।
जबकि राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि घटनास्थल पर बरामद सामान, सुसाइड नोट, मेडिकल रिपोर्ट और महिला के बयान से स्पष्ट है कि वारदात उसने ही की थी।
हाईकोर्ट ने कहा- फैसला सही, हस्तक्षेप की जरूरत नहीं
हाई कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है। लेकिन ये सभी साक्ष्य आपस में जुड़कर एक ऐसी श्रृंखला बनाते हैं जो संदेह से परे अपराध को साबित करते हैं।
हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रॉयल कोर्ट का निर्णय सही है और इसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विभू दत्त गुरु की डिवीजन बेंच ने ये फैसला सुनाया।