बघेल ने PMLA की धारा 44 को ‘रीड डाउन’ करने की मांग की थी और कहा था कि पहली शिकायत दर्ज होने के बाद ED को सिर्फ विशेष परिस्थितियों में, अदालत की अनुमति और जरूरी सुरक्षा उपायों के साथ ही आगे जांच करने का अधिकार होना चाहिए।
गलत कानून में नहीं, उसके दुरुपयोग में
जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि इस प्रावधान में कोई खामी नहीं है। अगर इसका दुरुपयोग हो रहा है, तो पीड़ित व्यक्ति हाईकोर्ट जा सकता है। जस्टिस बागची ने कहा -“The devil is not in the law but in the abuse” (गलती कानून में नहीं, उसके दुरुपयोग में है)।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इस प्रावधान में कुछ भी गलत नहीं है। अगर इसका दुरुपयोग हो रहा है, तो हाईकोर्ट जाएं।
सिब्बल का तर्क- बार-बार सप्लीमेंट्री शिकायत, ट्रायल में देरी
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि ED हर कुछ महीनों में पूरक शिकायत दर्ज करती है, जिससे ट्रायल में देरी होती है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आगे की जांच आरोपी के हित में भी हो सकती है, बशर्ते इसका दुरुपयोग न हो।
ED को अनुमति लेनी चाहिए, लेकिन…
जस्टिस बागची ने कहा कि आगे की जांच के लिए ED को विशेष PMLA कोर्ट से पूर्व अनुमति लेनी चाहिए, लेकिन अगर एजेंसी ऐसा नहीं कर रही, तो समस्या प्रावधान में नहीं, उसके पालन में है।
याचिका खारिज हाईकोर्ट जाने की छूट
सुप्रीम कोर्ट ने बघेल की याचिका खारिज करते हुए उन्हें हाईकोर्ट जाने की छूट दी। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि विजय मदनलाल चौधरी केस में पहले ही कहा गया है कि कोर्ट की अनुमति से आगे के सबूत रिकॉर्ड पर लाए जा सकते हैं। अगर ED ने इन दिशा-निर्देशों के खिलाफ काम किया है, तो आरोपी हाईकोर्ट का रुख कर सकता है।