रायपुर के लोगों की इंसानियत और दरियादिली ने 25 लाख रुपए के इलाज को बिल्कुल मुफ्त करा दिया। कुछ पुलिस अफसर और मंत्री इसके ठीक होने का अहम जरिया बने। एक बच्ची के दिल के छेद को इंसानियत के दिल से भरने की ये एक खूबसूरत हकीकत है।
बीजापुर के छोटे से गांव वरदल्ली में 11 साल की शांभवी रहती है। उसके दिल में सुराख था और वॉल्व पूरी तरह से खराब हो चुका था। उसके पिता विक्कू (40) की छोटी सी किसानी है। वे घर चलाने के लिए बमुश्किल 2500 रुपए महीना कमा पाते हैं। मां विजयलक्ष्मी गृहिणी हैं। जमीन से इतनी पैदावार हो जाती है कि घर में खाने-पीने की दिक्कत नहीं होती।
सालभर पहले सांसें फूलना शुरू हुई
शांभवी पढ़ने वाली लड़की थी। गांव के स्कूल में पढ़ रही थी। पिछले साल अचानक उसे सीने में दर्द होना शुरू हुआ। घरवालों को लगा कि ज्यादा खेलकूद के कारण ऐसा हो रहा होगा। अचानक ये दर्द बढ़ने लगा और फिर शांभवी ने बताया कि वो ज्यादा खेल ही नहीं पाती।
माता-पिता शहर आए। एक निजी अस्पताल में दिल के डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने जांच की और बताया कि इसके दिल में तो सुराख है। ये यहां ठीक नहीं होगा। इसे रायपुर ले जाना होगा। माता-पिता के होश फ़ाख्ता हो गए। गांव से निकलने के लिए 10 बार सोचना पड़ता था कि पैसे इकट्ठे होंगे तो जाएंगे।
ऐसे में रायपुर में बेटी के इलाज के लिए रुपए कहां से लाएंगे। डॉक्टर ने रायपुर में एम्स और सत्यसाईं हास्पिटल का पता बताया, जहां इलाज मुफ्त और अच्छे से हो जाएगा। गांववालों तक बात पहुंची, तो सब परिवार के साथ आ गए। छोटी-छोटी रकम जोड़ने लगे और तकरीबन 10 हजार रुपए इकट्ठा कर पिता विक्कू को दिए।
परिचित चंदू ने मदद की, जिसके पिता खुद कैंसर से जूझ रहे
विक्कू को रायपुर शहर के बारे में कुछ भी नहीं पता था। ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाते ये लोग। एक परिचित चंदू रायपुर में रहते थे। उनके पास आए। पूरे हालात बताए। इधर, रायपुर में चंदू के पिता भी कैंसर से जूझ रहे हैं, जो अंबेडकर अस्पताल में भर्ती हैं।
चंदू के लिए भी दुविधा की स्थिति थी, लेकिन उस बच्ची के लिए वो अपने पिता को भी संभालता और बच्ची शांभवी के लिए भी भटकता। करीब-करीब ये लोग सालभर तक भटकते रहे, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
कहीं 20-25 लाख खर्च बताते, तो कहीं कहते मुंबई ले जाओ
चंदू ने बताया कि रायपुर में जब एम्स और सत्यसाईं अस्पताल में मदद नहीं मिली, तो निजी अस्पतालों के चक्कर काटने लगे। यहां कोई इन्हें 20-25 लाख का खर्च बताता तो कोई कहता कि आप मुंबई चले जाइए। 2500 रुपए महीना कमाने वाले इतनी बड़ी रकम कहां से लाते। बेटी के दिल में तो सुराख था, इन सबके दिल टूटते चले गए।
…फिर लॉज वाले ने की मदद
थक हारकर कुछ दिन पहले जयस्तंभ चौके के पास मल्टीलेवल की पार्किंग वाली गली में एक पुराने लॉज में ये लोग रुकने गए। बच्ची की स्थिति बहुत खराब लग रही थी। लॉज वाले ने पूछा- क्या हुआ है इन्हें। चंदू ने उसे पूरी कहानी बताई।
लॉज वाले ने एक कमरा उनके लिए बुक किया और कहा कि जब तक रहना है, आराम से रहो। ईश्वर से प्रार्थना की कि बच्ची ठीक हो जाए। ठीक उस दौरान कुछ पुलिस अधिकारी वहां आए। ये पुलिस अधिकारी अपने किसी काम से आए होंगे।
लॉज वाले ने पुलिसवालों को सुनाई बच्ची की कहानी
इस दौरान पुलिसवालों ने लॉज संचालक से पूछा कि ये कौन लोग हैं। लॉज वाले ने इन पुलिस अफसरों को बच्ची की कहानी सुनाई। पुलिसवालों ने बच्ची से बात की, चंदू से बात की और फिर आपस में बात की। एक दूसरे से कह रहे थे- “कुछ भी हो जाए। इस बच्ची को ठीक करना ही है।”
चंदू कहते हैं कि इन्हें देखकर अंधेरे में रोशनी की उम्मीद जागी। अब चंदू और बच्ची को रहने का ठिकाना मिल गया था और एक उम्मीद भी। उन्हीं पुलिस अफसरों में से एक ने अगले दिन उस बच्ची को स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल से मिलवाया।