
इनकी साजिश में त्योहार के दौरान धमाका शामिल था। दोनों का ब्रेनवॉश किया गया था और वे सुसाइड बॉम्बर बनने तक को तैयार हो गए थे। मंगलवार को गिरफ्तारी के बाद दोनों को बाल न्यायालय में पेश किया गया। वहां से एटीएस रिमांड लेकर पूछताछ कर रही है। एटीएस थाने के गठन के बाद यह पहली बड़ी कार्रवाई है।
पहले एटीएस संदिग्धों को थानों को सौंपती थी, लेकिन अब वह स्वयं एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई कर रही है। एडीजी गुप्तवार्ता अमित कुमार ने कहा- तकनीकी जांच के बाद देश विरोधी गतिविधियों में शामिल दो नाबालिगों को पकड़ा गया है। उनसे पूछताछ की जा रही है।
एटीएस अफसरों ने बताया कि रायपुर का 16 वर्षीय किशोर छात्र है। उसके पिता फोर्स में हैं। भिलाई के 15 वर्षीय किशोर के पिता ऑटो चलाते हैं। दोनों तीन साल से सोशल मीडिया के माध्यम से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया से जुड़े और वीडियो देखते थे।
उससे प्रभावित होकर आतंकी पोस्ट वायरल करने लगे, फिर खुद भी ऐसे पोस्ट और भारत-विरोधी कमेंट करने लगे। इसी दौरान दोनों आईएसआईएस के पाकिस्तानी मॉड्यूल के संपर्क में आए और उनसे चैटिंग शुरू कर दी।
ऑपरेशन सिंदूर समेत गुप्त जानकारी, मैप पाक भेजे
प्रमोद साहू की रिपोर्ट
एटीएस की जांच में सामने आया है कि दोनों ने सोशल मीडिया के जरिए आईएसआईएस से संपर्क साधा था। वे ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी जानकारी, छत्तीसगढ़ के कई अहम इलाकों के नक्शे और लोकेशन पाकिस्तानी मॉड्यूल को भेज चुके थे। मोबाइल से कई आपत्तिजनक कंटेंट बरामद हुए हैं, जिनमें त्योहार के दौरान बड़ा धमाका करने के निर्देश भी मिले हैं।
दोनों तक पहुंचने के लिए एटीएस ने इंस्टाग्राम, फेसबुक और एक्स की 2000 से अधिक आईडी खंगाली। कई फर्जी आईडी बनाकर वे आईएसआईएस के वीडियो व संदेश वायरल करते थे। दोनों नाबालिग खुद भड़काऊ वीडियो और कंटेंट बनाते थे और उन्हें 14-18 साल के लड़के-लड़कियों को भेजते थे।
उनके पास पाकिस्तान से सीधे भेजे गए जिहादी कंटेंट और वीडियो भी मिले हैं। यही नहीं पाकिस्तान में बैठे आतंकी नाबालिगों का ब्रेन वॉश करने के लिए ऑनलाइन गेम का सहारा ले रहे हैं। दोनों नाबालिगों के मोबाइल में ऐसे गेम्स मिले हैं। इसी के जरिए आतंकी बच्चों को अपने संगठन में जोड़ने का प्रयास कर रहे थे।
भास्कर एक्सपर्ट – अन्वेष मंगलम, रिटायर्ड स्पेशल डीजी
पता लगाना होगा- नाबालिगों के पीछे कोई और तो नहीं सोशल मीडिया का नाबालिगों पर बेहद गहरा असर पड़ता है, पर किसी का ब्रेनवॉश करने में कम से कम 3-4 साल लगते हैं। रायपुर-भिलाई के जिन नाबालिगों को पकड़ा गया है, उनके पीछे किसी और व्यक्ति या नेटवर्क की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
एजेंसी को यह भी जांचना चाहिए कि नाबालिगों को मोबाइल और लैपटॉप कैसे मिले? उनका सोर्स ऑफ इनकम क्या था? क्या किसी शिक्षक, बड़े-बुजुर्ग या उनके आसपास के किसी व्यक्ति ने उन्हें प्रभावित किया? क्या मोबाइल-लैपटॉप का इस्तेमाल वास्तव में वे ही कर रहे थे या कोई और उनके नाम का इस्तेमाल कर रहा था?