साथ ही कहा कि उद्गम स्थलों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज कर चिन्हांकित किया जाए। कोर्ट ने शासन को इसके लिए शपथपत्र के साथ जानकारी देने कहा है। वहीं, अरपा नदी में अवैध खुदाई से जगह-जगह बने गड्ढों और इसमें डूबने से हो रही मौतों पर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई की है।
अवैध खनन पर कठोर कदम उठाने की याचिका
अरपा नदी के संरक्षण को लेकर एडवोकेट अरविंद शुक्ला और रामनिवास तिवारी द्वारा अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें अरपा नदी के उद्गम स्थल के संरक्षण, प्रदूषण की रोकथाम और अवैध खनन पर कठोर कदम उठाने की मांग की गई है।
इसके साथ ही अरपा अर्पण महा अभियान समिति ने भी याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि शासन के प्रतिबंध के बावजूद अरपा नदी में कई स्थानों पर खुलेआम अवैध खनन किया जा रहा है। केस की अगली सुनवाई सितंबर में होगी।
अवैध खनन से बने मौत के गड्ढे, हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान
बता दें कि 3 साल पहले अरपा नदी में सेंदरी के पास गड्ढे में डूबने से तीन लड़कियों की मौत हो गई थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह भी बताया गया कि बारिश के दिनों में खनन से बने गहरे गड्ढे में डूबने से लड़कियों की जानें गई थीं। इस मामले में भी हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है।
शासन ने कहा- उद्गम स्थल संरक्षित करने नहीं बनी है कमेटी
चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में केस की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से बताया गया कि पूर्व में अरपा नदी के संरक्षण के लिए भागवत कमेटी का गठन किया गया था, जो उद्गम स्थल को सुरक्षित रखने के लिए सक्रिय थी।
इस पर शासन ने माना कि अरपा नदी के लिए कमेटी का गठन किया गया है। लेकिन, अन्य नदियों के लिए ऐसी कोई समिति नहीं बनाई गई है। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सभी नदियों के उद्गम स्थलों को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए और उनके संरक्षण हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएं।
उद्गम स्थलों को बताया नाला, हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से यह भी बताया गया कि शासन के रिकार्ड में अधिकांश नदियों के उद्गम स्थलों को नाले के रूप में दिखाया गया है, जो कि असंगत और आपत्तिजनक है। कोर्ट ने इस पर भी कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि यह स्थिति तुरंत सुधारी जानी चाहिए।
सुनवाई में यह भी बताया गया कि जीपीएम (गौरेला-पेंड्रा-मरवाही) जिले के कलेक्टर द्वारा अरपा नदी के उद्गम स्थल की पहचान के लिए लायडर सर्वे का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, जिसकी लागत करीब 2 करोड़ 60 लाख रुपए थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है। साथ ही कहा कि ऐसे कार्यों के लिए अत्यधिक खर्च की बजाय स्थानीय और व्यावहारिक समाधान खोजे जाने चाहिए।