
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में वन विभाग ने बाघों के संरक्षण के लिए हाईकोर्ट में शपथपत्र पर जवाब दिया है। इसमें बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के ‘बाघ मित्र’ मॉडल से प्रेरित होकर यहां भी इसे लागू करने पर विचार चल रहा है।
छत्तीसगढ़ के मुख्य वन्यजीव संरक्षण अधिकारियों के नेतृत्व में एक टीम ने बाघ मित्र योजना का अध्ययन किया है। इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश के विभिन्न बाघ अभयारण्यों एवं समीपवर्ती गांवों का दौरा किया गया।
यूपी की तर्ज पर बाघ मित्र योजना
बता दें कि प्रदेश में हाथी और बाघ जैसे वन्य जीवों की मौत पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है। कोर्ट लगातार इस मामले में निगरानी कर रहा है। चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा, जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की बेंच में वन विभाग की ओर पीसीसीएफ ने शासकीय अधिवक्ता के माध्यम से शपथपत्र प्रस्तुत किया।
उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने कोर्ट को सुनवाई के दौरान बताया कि 17 मार्च को एक उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की गई जिसमें बाघों की सुरक्षा के संबंध में विभिन्न कदम उठाने पर चर्चा की गई। कोर्ट ने इस मामले को निगरानी में रखते हुए 14 जुलाई को अगली सुनवाई रखी है।
उद्देश्य : मानव- बाघ संघर्ष को रोकना
वन विभाग ने अपने शपथपत्र में बताया है कि इस योजना का उद्देश्य मानव-बाघ संघर्ष को न्यूनतम करना तथा राज्य में बाघों की प्रभावी सुरक्षा एवं संरक्षण सुनिश्चित करना है। बता दें कि 8 नवंबर 2024 को कोरिया जिले के गुरू घासीदास नेशनल पार्क स्थित नदी किनारे एक बाघ का शव बरामद हुआ था।
शुरुआती जांच में बाघ के नाखून, दांत और आंख जैसे अंग गायब थे। आशंका जताई गई कि बाघ को जहर देकर मारा गया होगा। हालांकि, शपथपत्र में बताया गया था कि बाघ के पीएम में जहर की पुष्टि नहीं हुई है और बीमारी से मौत की संभावना जताई गई है।