मकर संक्रांति पर अयप्पा स्वामी मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़

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रायपुर। रविवार को मकर संक्रांति मनाई जा रही है। इसके ठीक पहले शनिवार शाम को रायपुर के अयप्पा मंदिर में अनोखा नजारा देखने को मिला। यहां लोगों ने हजारों दीपक जलाकर अयप्पा स्वामी का विशेष पूजन किया। नववर्ष में ग्रहों की विपरीत दशाओं के कारण संभावित दोषों से मुक्ति के लिए ये विशेष पूजा की जाती है।

लोग यहां जुटते हैं और पूरे मंदिर प्रागंण को दीपक से सजाया जाता है। भगवान अयप्पा के मंदिर में कार्यक्रम का शुभारंभ ब्रह्ममुहूर्त से हुआ। मंदिर की पवित्र 18 सीढ़ियों के खुलने के साथ ही देर रात तक अनुष्ठान होते रहे।

श्री अयप्पा सेवा संघम के अध्यक्ष विनोद पिल्लई ने बताया कि सुबह साढ़े चार बजे प्रभात फेरी, पौने पांच बजे निर्माल्य दर्शन के साथ ही भगवान अयप्पा का सवा पांच बजे अभिषेक किया गया । इसके बाद सुबह 5.45 बजे गणपति होम एवं सात बजे ऊषा पूजन, भागवत पारायणम् सम्पन्न हुई। केरल की तरह यहां पूजा की जाती है। समाज के लोग जुटते हैं। हजारों दीपक से पूरे मंदिर प्रागंण को हर साल सजाया जाता है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की टाटीबंध रिंग रोड नं. दो के किनारे छत्तीसगढ़ का इकलौता भगवान अयप्पा का मंदिर है। लगभग 36 साल पुराने मंदिर में केरल की तर्ज पर ही पूजा की सभी परंपराएं निभाई जाती हैं। जिस तरह केरल के सबरीमाला मंदिर में साल में दो मर्तबा मंदिर की पवित्र सीढ़ियां खुलती हैं। उसी तरह टाटीबंध के मंदिर में भी दो ही दिन पवित्र सीढ़ियां खोली जाती हैं।

इन सीढ़ियों से चढ़कर भगवान के दर्शन का लाभ केवल उन्हीं भक्तों को मिलता है, जो 41 दिनों की कठोर तपस्या करते हैं। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां साल के बाकी दिनों में भगवान के दर्शन का लाभ मंदिर के पीछे बनी सीढ़ियों से ऊपर जाकर किया जाता है।

कौन हैं स्वामी अयप्पा

मान्यता है कि भगवान अयप्पा जगपालनकर्ता भगवान विष्णु और शिवजी के पुत्र हैं। दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु जब प्रकट हुए, तब शिवजी उनपर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया। इससे भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। भगवान अयप्पा की पूजा सबसे अधिक दक्षिण भारत में होती है। हालांकि इनके मंदिर देश के कई स्थानों पर हैं जो दक्षिण भारतीय शैली में ही निर्मित होते हैं।

इसलिए अयप्पा कहलाते हैं हरिहरन

भगवान अयप्पा को ‘हरिहरन’ नाम से भी जाना जाता है। हरि अर्थात भगवान विष्णु और हरन अर्थात शिव। हरि और हरन के पुत्र अर्थात हरिहरन। इन्हें मणिकंदन भी कहा जाता है। यहां मणि का अर्थ सोने की घंटी से है और कंदन का अर्थ होता है गर्दन। अर्थात गले में मणि धारण करने वाले भगवान। इन्हें इस नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि इनके माता-पिता शिव और मोहिनी ने इनके गले में एक सोने की घंटी बांधी थी।

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