दीपावली की पूजा करके आधी रात करेंगे गौरी-गौरा की स्थापना, सूतक से पहले रातभर करेंगे जागरण

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रायपुर। छत्तीसगढ़ी परंपरा में दीपावली की रात गौरी-गौरा की प्रतिमा स्थापित करके पूरी रात पूजा की जाती है। दूसरे दिन भक्तिभाव से जसगीत गाते हुए विसर्जन यात्रा निकाली जाती है। इस साल दीपावली के दूसरे दिन सूर्य ग्रहण होने से ब्रह्ममुहूर्त से पहले ही पूजा संपन्न कर ली जाएगी। सूर्य ग्रहण समाप्त होने के बाद विसर्जन किया जाएगा।

महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में गौरी-गौरा पर्व श्रद्धा-उल्लास से मनाया जाता है। तालाब से मिट्टी लाकर गौरी-गौरा यानी शंकर-पार्वती की प्रतिमा बनाई जाती है। दीपावली की रात को गांव के चौक पर जिसे गौरी-गौरा चौक ही कहा जाता है, वहां प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है।

पूरे गांव के लोग उत्सव मनाने जुटते हैं। बुजुर्ग विधि-विधान से पूजा करते हैं। युवक, युवतियां, बच्चे गड़वा बाजा की धुन पर नृत्य करके खुशियां मनाते हैं। रातभर पूजा के बाद अगले दिन गोवर्धन पूजा पर प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। यह पर्व भगवान शंकर और पार्वती के विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

बरात निकालने की परंपरा

बुजुर्ग, महिलाएं छत्तीसगढ़ी लोकगीत गाते हुए तालाब से मिट्टी लेकर आते हैं। उस मिट्टी से दो अलग-अलग पीढ़ों पर गौरी (पार्वती) तथा गौरा (शिव) की मूर्ति बनाकर उसे सजाकर प्रतिष्ठापित किया जाता है। प्रतिष्ठापित करने से पहले मूर्तियों को सिर पर रखकर पूरे गांव में भ्रमण कराया जाता है। गौरी-गौरा के विवाह की प्रथा निभाने के दौरान गाजे-बाजे के साथ बरात निकाली जाती है। पूजन संपन्न होने के बाद गांव के तालाब में प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है।

गोबर से बनाएंगे गोवर्धन पर्वत

गोवर्धन पूजा के दिन घर-घर में गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतिरूप बनाकर पूजा की जाती है। इस साल सूर्य ग्रहण होने से गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को की जाएगी। मंदिरों में 56 भोग लगाकर अन्नकूट का प्रसाद वितरण किया जाएगा।

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