काछनदेवी ने राजपरिवार को दी बस्तर दशहरा मनाने की अनुमति

7 साल की पीहू पर सवार हुईं देवी, कांटों से बने झूले पर झूलकर दी इजाजत

Chhattisgarh Crimes

जगदलपुर। बस्तर दशहरा के सबसे अनोखे काछनगादी रस्म शनिवार देर शाम अदा की गई है। पनका जाति की 7 साल की पीहू पर काछनदेवी सवार हुईं। बेल के कांटों से बने झूले पर झूलकर देवी ने बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव को दशहरा मनाने और रथ परिक्रमा की अनुमति दी।

पर्व मनाने माता से अनुमति लेने की यह परंपरा पिछले 615 सालों से चली आ रही है। माता से अनुमति मिलने के बाद अब दशहरा की अन्य रस्में भी अदा की जाएगी। रविवार को कलश स्थापना के साथ ही जोगी बिठाई सम्पन्न होगा।

जगदलपुर के भंगाराम चौक में स्थित काछनगुड़ी में यह परंपरा निभाई गई है। दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली पनका जाति की पीहू करीब 9 दिनों तक देवी की आराधना की थी। इस दौरान इसने उपवास भी रखा था। पीहू ने दूसरी बार इस परंपरा को निभाया। इससे पहले पनका जाति की ही अनुराधा ने करीब 5 से 6 सालों तक इस परंपरा को निभाया था।

22 पीढ़ियों से इसी जाति की कन्या निभा रही रस्म

बस्तर दशहरा में अधिकांश जाति के और गांव के लोगों का कुछ न कुछ दायित्व है। जिस तरह से सिर्फ झारउमर और बेड़ाउमर गांव के ग्रामीणों को ही रथ निर्माण करने की अनुमति है। ठीक इसी तरह पिछले 22 सालों से पनका जाति की ही कन्या काछनगादी रस्म निभाती आ रही हैं।

बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने कहा कि, माटी पुजारी होने के नाते मैं इस रस्म को पूरी करने के लिए उपस्थित होता हूं। दशहरा मनाने माता से अनुमति मांगा हूं। माता आशीर्वाद दीं हैं, बस्तर दशहरा निर्विघ्न और बिना किसी बाधा के हो।
देवी से अनुमति लेते राज परिवार के सदस्य।