बिलासपुर। बिलासपुर से करीब 25 किमी दूर आदिशक्ति महामाया देवी नगरी रतनपुर में महालक्ष्मी देवी की प्राचीन मंदिर है। धन वैभव, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी का ये प्राचीन मंदिर करीब 843 साल से ज्यादा पुरानी है। कहते हैं कि राजा रत्नदेव का जब राज्याभिषेक हुआ, तब अकाल और महामारी से प्रजा परेशान थी और राजकोष भी खाली हो चुका था। ऐसे में राजा रत्नदेव ने धन, वैभव और खुशहाली की कामना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया और विधि विधान से मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की। इसके बाद उनके शासनकाल में खुशहाली लौट आई।
इस मंदिर को लखनी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। रतनपुर की पहचान ऐतिहासिक और प्राचीन धरोहर के रूप में है। राजा रत्नदेव की राजधानी की इस नगरी में देश के 51 शक्तिपीठों में से एक आदिशक्ति महामाया देवी की प्राचीन मंदिर यहां की प्रमुख पहचान है। खूंटाघाट डेम के साथ ही आसपास कई पिकनिक स्पॉट भी है, जिसके कारण अब यह पर्यटन स्थल के रूप में भी पहचान बना चुका है।
जिस पर्वत पर लखनी देवी मंदिर की स्थापना की गई है, इसके भी कई नाम है। इसे इकबीरा पर्वत, वाराह पर्वत, श्री पर्वत और लक्ष्मीधाम पर्वत भी कहा जाता है। ये मंदिर कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के विद्वान मंत्री गंगाधर ने 1178 में बनवाया था। उस समय इस मंदिर में जिस देवी की प्रतिमा स्थापित की गई उन्हें इकबीरा और स्तंभिनी देवी कहा जाता था।
प्राचीन मान्यता के मुताबिक महालक्ष्मी देवी की मंदिर का निर्माण शास्त्रों में बताए गए वास्तु के अनुसार कराया गया है। यह मंदिर पुष्पक विमान जैसे आकार का है। मंदिर के अंदर श्रीयंत्र भी बना है, जिसकी पूजा-अर्चना करने से धन-वैभव और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
लखनी देवी का स्वरूप अष्ट लक्ष्मी देवियों में से सौभाग्य लक्ष्मी का है। जो अष्टदल कमल पर विराजमान है। सौभाग्य लक्ष्मी की हमेशा पूजा-अर्चना से सौभाग्य प्राप्ति होती है, और मनोकामनाएं भी पूरी होती है।