छग क्राईम महासमुन्द पिथौरा : महान क्रांतिकारी कथाकार प्रेमचंद अन्याय भ्रष्टाचार शोषकों के खिलाफ एक बुलन्द कलमकार : शिखा दास (साहित्यकार/वरिष्ठ पत्रकार) 

Chhattisgarh Crimes 31जुलाई

कथा सम्राट प्रेमचंद जयंती पर विशेष लेख साहित्य सन्दर्भ छग क्राईम्स रायपुर/महासमुन्द /पिथौरा

शिखा दास (साहित्यकार/वरिष्ठ पत्रकार)

महान क्रांतिकारी कथाकार प्रेमचंद अन्याय भ्रष्टाचार शोषकों के खिलाफ एक बुलन्द कलमकार होने के कारण युगों तक हमेशा प्रासंगिक रहेंगे/

एक यथार्थवादी लेखक थे प्रेमचंद

 

उनके कथा पात्र शोषक शोषित दोनों जीवन्त है आज भी!

 

 

 

 

मुंशी प्रेमचंद (जन्म- 31 जुलाई, 1880 – मृत्यु- 8 अक्टूबर, 1936) भारत के उपन्यास सम्राट माने जाते हैं जिनके युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंज़िलों से गुजरा।

 

 

प्रेमचंद का प्रभाव

प्रेमचंद के लेखन ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। उन्होंने यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी और आम आदमी की समस्याओं को अपनी रचनाओं का विषय बनाया। उनके लेखन में सामाजिक न्याय, समानता और स्वाधीनता के विचार प्रबल हैं।

 

अध्ययनशील लोगों के लिए

किताबें आज भी पहली पसंद

 

कथा सम्राट

प्रेमचंद की रचनाएं समाज की सच्चाइयों का आइना हैं.

 

उनकी प्रमुख पुस्तकें जो आज भी खूब पढ़ी और खरीदी जाती हैं, उनमें शामिल हैं:

 

– गोदान: किसान की पीड़ा और वर्ग संघर्ष पर आधारित यह उपन्यास प्रेमचंद की अंतिम और सबसे सशक्त कृति मानी जाती है.

–गबन: महिलाओं की स्थिति और मध्यमवर्गीय समाज की हकीकत को उजागर करता यह उपन्यास आज भी बहुत लोकप्रिय है.

–निर्मला: बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसे ज्वलंत मुद्दों पर लिखी गयी यह रचना आज के समाज के लिए भी बेहद प्रासंगिक है.

–कफन: गरीबी, लाचारी और मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली यह कहानी हिंदी कथा साहित्य की सबसे मार्मिक रचनाओं में से एक है.

–ईदगाह: मासूम हामिद की कहानी जो हर उम्र के पाठक के दिल को छू जाती है.

पूस की रात, ठाकुर का कुआं, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा जैसी कहानियां स्कूल-कॉलेजों में भी पढ़ाई जाती हैं और किताबों की दुकानों पर सबसे अधिक बिकने वाली सूची में लगातार बनी रहती हैं.

 

 

: आज, मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर, उनके कार्यों में वर्णित सामाजिक समस्याएं, विशेष रूप से कालाबाजारी और शोषण, आज भी प्रासंगिक हैं। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों और उपन्यासों में सामाजिक अन्याय, गरीबी, और भ्रष्टाचार को उजागर किया, जो आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं। उनकी रचनाएँ, जैसे “नमक का दारोगा” और “गोदान”, आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे हमें दिखाती हैं कि कैसे सत्ता और धन का दुरुपयोग किया जाता है।

 

 

 

प्रेमचंद की रचनाएँ और कालाबाजारी:

 

• नमक का दारोगा: यह कहानी ईमानदार वंशीधर और भ्रष्ट अलोपीदीन के बीच नैतिकता और धन के संघर्ष को दर्शाती है। यह कहानी कालाबाजारी और रिश्वतखोरी के खिलाफ एक मजबूत संदेश देती है।

• गोदान: यह उपन्यास भारतीय ग्रामीण जीवन का एक मार्मिक चित्रण है, जिसमें गरीबी, शोषण, और साहूकारों द्वारा किसानों का उत्पीड़न दिखाया गया है। यह उपन्यास आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह दिखाता है कि कैसे गरीब लोग कर्ज और शोषण के जाल में फंस जाते हैं।

 

प्रेमचंद की रचनाओं की प्रासंगिकता:

 

• सामाजिक अन्याय: प्रेमचंद की रचनाएँ सामाजिक अन्याय, गरीबी, और शोषण के खिलाफ आवाज उठाती हैं।

• नैतिकता और ईमानदारी: उनकी कहानियाँ नैतिकता और ईमानदारी के महत्व को दर्शाती हैं।

• सामाजिक सुधार: प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक सुधार की वकालत की।

• यथार्थवाद: उनकी रचनाएँ यथार्थवादी हैं और समाज की वास्तविकताओं को दर्शाती हैं।

 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य:

 

• कालाबाजारी: आज भी कालाबाजारी एक बड़ी समस्या है, खासकर आवश्यक वस्तुओं की।

• शोषण: गरीब और वंचित लोग आज भी विभिन्न रूपों में शोषित होते हैं।

• भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार आज भी एक बड़ी चुनौती है, जो विकास में बाधा डालता है।

• सामाजिक असमानता: सामाजिक असमानता आज भी मौजूद है, और प्रेमचंद की रचनाएँ इसे उजागर करती हैं।

 

मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे हमें सामाजिक समस्याओं के बारे में सोचने और उनके समाधान के लिए प्रेरित करती हैं।

 

 

उनकी कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि हमें अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और एक बेहतर समाज के लिए प्रयास करना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

 

आख़िर प्रेमचंद आज भी क्यों प्रासंगिक हैं?

 

 

हमें आज़ाद हुए 78 साल हो गए और हिन्दी के कालजयी लेखक प्रेमचंद को गुज़रे 83 साल बीत गए। जन्म बेशक उनका 31 जुलाई 1880 को हुआ हो, लेकिन उनका लेखन युग तकरीबन चार – साढ़े चार दशकों का रहा।

 

आज दुनिया भर में आतंकवाद को लेकर इतनी हाय तौबा मची हुई है, तमाम देशों के लिए आतंकवाद एक बड़ी चुनौती बन गया है लेकिन प्रेमचंद ने 1930 में ही इस ख़तरे से आगाह किया था और इस पर एक टिप्पणी लिखी थी – आतंकवाद का उन्मूलन।

 

तब उन्होंने लिखा था ‘आज भारतवर्ष के द्वारा समस्त यूरोप अपने अपने ख़जाने भर रहा है, जापान अपनी जेबें गरम कर रहा है। सभी मालामाल हो रहे हैं और भारतीय बच्चे भूख से तड़प रहे हैं।‘वहीं हिटलर के बारे में भी उन्होंने तभी लिख दिया था कि हिटलर ने जर्मनी के पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली बनकर यहूदियों पर अत्याचार किया और इतनी ख्याति पाई।

 

प्रेमचंद ने साफ कह दिया था कि हिटलर जैसे प्रतीक भारत जैसे देश के उद्धारक नहीं हो सकते।’

 

 

 

इन संदर्भों की चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं कि प्रेमचंद को महज एक कहानीकार या कथा सम्राट मानकर उनकी जयंती मना लेना या याद करना शायद उचित नहीं है।

 

 

दरअसल कोई कहानीकार या लेखक क्यों महान होता है या उसके लेखन में वे कौन से तत्व होते हैं जो उसे अमर या कालजयी बनाते हैं, इन जानकारियों को उसी संदर्भ में देखना चाहिए।

 

महज 56 साल के अपने जीवन काल में प्रेमचंद ने आने वाली कई शताब्दियों के हिन्दुस्तान को देख लिया।

 

उनके वक्त में देश आजाद नहीं हुआ था, लेकिन उन्होंने तभी महसूस कर लिया था कि जिस आज़ादी की बात की जा रही है, वह वैसी नहीं होने वाली

 

किताब ‘प्रेमचंद और उनका युग’ में उनके एक लेख के हिस्से का ज़िक्र किया है – ‘इस समाज व्यवस्था ने व्यक्ति को यह स्वाधीनता नहीं दी है कि वह जनसाधारण को अपनी महत्वाकांक्षाओं की तृप्ति का साधन बनाए और तरह तरह के बहानों से उनकी मेहनत का फायदा उठाए, या सरकारी पद प्राप्त करके मोटी मोटी रकमें उड़ाए और मूंछों पर दाव देता फिरे’।

प्रेमचंद उस आज़ादी के विरोधी थे जिसके ज़रिये मुट्ठी भर लोग जनता को ठगकर अपना घर भरते हैं और जब जनता असंतुष्ट होकर अपनी मांगें पूरी कराने के लिए संगठित होती है तब उसे शांति और अहिंसा का उपदेश देते हैं।

ज़ाहिर है आज जब हम प्रेमचंद की 139वीं जयंती पर उन्हें याद करते हैं तो उनके इन तमाम संदर्भों को देखना ज़रूरी लगता है जो उन्हें आज भी प्रासंगिक बनाते हैं। उनकी कहानियों और उपन्यासों में बेशक समाज और सियासत के साथ साथ रिश्तों की जटिलताओं, सामाजिक ताने बाने और अपनी व्यवस्था में जड़ जमा चुके भ्रष्टाचार के तमाम रूप देखने को मिलते रहे हों, लेकिन इससे इतर प्रेमचंद ने खुद को एक चिंतक और पत्रकार के तौर पर भी स्थापित किया था।

उनके लेखों, टिप्पणियों के संदर्भ बहुत गहरे होते थे और अगर उन्होंने उस दौर में हंस जैसी पत्रिका निकाली तो वह सिर्फ़ कहानी की पत्रिका के तौर पर नहीं जानी गई।

ज़रा 1936 में प्रकाशित हंस के आख़िरी अंक में प्रेमचंद के लेख – ‘महाजनी सभ्यता’ को याद कीजिए। इसमें उन्होंने इंसानियत का व्यापार करने वालों पर तीखा हमला बोला है।

प्रेमचंद लिखते हैं – ‘समाज का बड़ा हिस्सा तो मरने और खपने वालों का है और बहुत ही छोटा हिस्सा उन लोगों का जो अपनी शक्ति और प्रभाव से बड़े समुदाय को अपने बस में किए हुए है। उन्हें इस बड़े भाग से ज़रा भी हमदर्दी नहीं, ज़रा भी रू-रियायत नहीं।

उसका अस्तित्व केवल इसलिए है कि अपने मालिकों के लिए पसीना बहाए, खून गिराए और एक दिन चुपचाप इस दुनिया से विदा हो जाए।‘

आज प्रेमचंद के इन संदर्भों को फिर से याद करते हुए हमें आज के हिन्दुस्तान की दशा और दिशा पर गौर करने की ज़रूरत है।

जो लोग प्रेमचंद के युग को एक अलग युग समझकर उनके लेखन को उस दौरान की स्थितियों की अभिव्यक्ति मानकर देखते हैं, उन्हें ये समझना ज़रूरी है कि चाहे ‘पूस की रात हो’ या ‘नमक का दारोगा’ – सब आज भी वही है। बेशक उनके चेहरे बदल गए हों।

शहरों की चकाचौंध, मॉल्स की संस्कृति, उदारीकरण के दौर और तकनीकी क्रांति के साथ साथ मंगल और चांद पर अपना परचम फहराने वाले हिन्दुस्तान को आज भी आप अपने ड्रोन कैमरे से देख लें, उसकी तस्वीर कमोबेश वही नज़र आएगी और इसीलिए 1936 में ही गुज़र गए प्रेमचंद आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं।

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी साहित्य की चेतना रूपांतरण के बड़े लेखक हैं।

उन्होंने अपने परवर्ती लेखकों का मानस विस्तार कर सर्वाधिक प्रभावित किया।

अकारण नहीं कि कथा साहित्य में उनके नाम की परंपरा कायम हुई।

क्यों साहित्य की इतनी विविधता और विस्तार के बावजूद प्रेमचंद ही बार-बार याद आते हैं?

यह सवाल अक्सर किया जाता है। प्रेमचंद का लेखन स्वाधीनता के बुनियादी सरोकारों से सूत्रबद्ध है। उनकी राष्ट्रीयता और पराधीन देश की मुक्ति के आशय अपने समकालीनों से सर्वथा भिन्न हैं। उसमें जाति, धर्म, संप्रदाय या किसी भेदभाव के बिना भारतीय समाज की बहुलता के मद्देनजर सभी वर्गों की सहभागिता निहित है। उनकी स्वाधीन भारत की संकल्पना भावुक और रूमानियत से परे भारतीय परिवेश में सच्चाइयों की समझ से उपजी है।

इसीलिए उनके ‘स्वराज’ का स्वप्न महात्मा गांधी के विचारों के काफी निकट है। क्रांतिकारी भी है कालाबाजारी अन्याय के खिलाफ

प्रेम, त्याग और बलिदान के उच्च आदर्श उनके आरंभिक लेखन में भी दिखते हैं, पर उनका दायरा व्यापक और यथार्थपरक होता गया।

वे आजादी की लड़ाई को केवल राजनीतिक सत्ता हस्तांतरण नहीं, साधारण जनों के आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक सवालों से जोड़ना चाहते थे।

किसान, स्त्री और दलितों को समाज की सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था के शोषण और उत्पीड़न से मुक्त कराना चाहते थे।

इसलिए उन्होंने इन वर्गों की वास्तविकता को अपनी कहानियों और उपन्यासों में दिखा कर, उनकी मुक्ति के सवाल बार-बार उठाए।

हिंदू-मुस्लिम सहअस्तित्व की जरूरी चिंताएं भी उनके लेखन से अछूती नहीं हैं।

कविता में, प्रेमचंद ने जीवन की दौड़ और इसके अजीब पहलुओं का भी उल्लेख किया है।

वे कहते हैं कि जीवन एक दौड़ है, जिसमें जीतने पर कई अपने पीछे छूट जाते हैं और हारने पर अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।

वे मिट्टी पर बैठने और अपनी औकात को याद रखने की बात करते हैं, जो उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति का अहसास कराता है।

✴️78वर्ष आज़ादी के हुए

2025 में मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती मनाई जाएगी।

प्रेमचंद की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे सामाजिक न्याय, समानता, और सशक्तिकरण जैसे शाश्वत मानवीय मुद्दों पर प्रकाश डालती हैं।

उनकी कहानियाँ और उपन्यास, जैसे “गोदान”, “कर्मभूमि”, और “ईदगाह”, आज भी गरीबी, शोषण, और सामाजिक असमानता के खिलाफ संघर्ष को दर्शाते हैं।

प्रेमचंद की रचनाएँ, विशेष रूप से प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन में उनके भाषण, आज भी सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को प्रेरित करती हैं।

प्रेमचंद की रचनाओं की प्रासंगिकता:

✴️सामाजिक न्याय और समानता:

प्रेमचंद की रचनाएँ, विशेष रूप से “गोदान” और “कर्मभूमि”, किसानों, मजदूरों, और वंचित वर्गों के संघर्ष को दर्शाती हैं।

ये रचनाएँ आज भी सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को प्रेरित करती हैं।

शोषितों के प्रति सहानुभूति:

प्रेमचंद ने हमेशा शोषितों, गरीबों, और वंचितों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।

उनकी रचनाएँ आज भी हमें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और पीड़ितों के साथ खड़े होने के लिए प्रेरित करती हैं।

सामाजिक सुधार:

प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से दहेज प्रथा, बाल विवाह, और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया। उनकी रचनाएँ आज भी सामाजिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

राष्ट्रीयता और देशभक्ति:

प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना को भी उजागर किया है।

“कर्मभूमि” और “रंगभूमि” जैसी रचनाएँ आज भी हमें देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत करने के लिए प्रेरित करती हैं।

कलात्मकता:

प्रेमचंद की भाषा, शैली, और पात्रों का चित्रण आज भी पाठकों को आकर्षित करता है। उनकी रचनाएँ न केवल सामाजिक संदेश देती हैं, बल्कि कलात्मक रूप से भी उत्कृष्ट हैं।

 

✴️आज के संदर्भ में प्रेमचंद की रचनाओं की प्रासंगिकता:

आज जब हम गरीबी, असमानता, और सामाजिक अन्याय जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तब प्रेमचंद की रचनाएँ हमें इन समस्याओं से लड़ने और एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करती हैं। उनकी रचनाएँ आज भी हमें सामाजिक न्याय, समानता, और सशक्तिकरण के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देती हैं।

निष्कर्ष यह कि

प्रेमचंद की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे मानवीय मूल्यों, सामाजिक न्याय, और समानता जैसे शाश्वत मुद्दों पर प्रकाश डालती हैं। उनकी रचनाएँ हमें अन्याय के खिलाफ लड़ने, शोषितों के साथ खड़े होने, और एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करती हैं।

: इन्हीं के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने साहित्य सृजन किया हैं, विचार किया हैं। प्रेमचन्द एक तरह से सामाजिक लेखक हैं, वैयक्तिक जीवन का चित्रण बहुत कम किया हैं।

किताबें आज भी लोगों की पहली पसंद

प्रेमचंद की रचनाएं समाज की सच्चाइयों का आइना हैं. उनकी प्रमुख पुस्तकें जो आज भी खूब पढ़ी और खरीदी जाती हैं, उनमें शामिल हैं:

– गोदान:

किसान की पीड़ा और वर्ग संघर्ष पर आधारित यह उपन्यास प्रेमचंद की अंतिम और सबसे सशक्त कृति मानी जाती है.

–गबन:

महिलाओं की स्थिति और मध्यमवर्गीय समाज की हकीकत को उजागर करता यह उपन्यास आज भी बहुत लोकप्रिय है.

निर्मला:

बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसे ज्वलंत मुद्दों पर लिखी गयी यह रचना आज के समाज के लिए भी बेहद प्रासंगिक है.

कफन:

गरीबी, लाचारी और मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली यह कहानी हिंदी कथा साहित्य की सबसे मार्मिक रचनाओं में से एक है.

ईदगाह: मासूम हामिद की कहानी जो हर उम्र के पाठक के दिल को छू जाती है.

पूस की रात, ठाकुर का कुआं, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा जैसी कहानियां स्कूल-कॉलेजों में भी पढ़ाई जाती हैं और किताबों की दुकानों पर सबसे अधिक बिकने वाली सूची में लगातार बनी रहती हैं.📝🖊️

: हाँ, गोदान मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध उपन्यास है। यह हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है।

गोदान, प्रेमचंद का अंतिम पूर्ण उपन्यास है और इसे उनके सर्वश्रेष्ठ कार्यों में से एक माना जाता है। यह उपन्यास भारतीय ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति का एक मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।

नमक का दारोगा

कहानी का मुख्य पात्र:

मुंशी वंशीधर:

कहानी का नायक, एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ नमक निरीक्षक।

पंडित अलोपीदीन:

एक धनी और प्रभावशाली व्यक्ति, जो नमक के व्यापार में भ्रष्टाचार करता है।

कहानी का सारांश:

नमक का नया कानून लागू होने के बाद, वंशीधर को नमक विभाग में दरोगा के पद पर नियुक्त किया जाता है। एक रात, वह यमुना नदी के पुल पर कुछ गाड़ियां रोकते हैं, जो पंडित अलोपीदीन की होती हैं। गाड़ियों की तलाशी लेने पर पता चलता है कि उनमें नमक की तस्करी हो रही है। वंशीधर अलोपीदीन को गिरफ्तार कर लेते हैं, जिससे अलोपीदीन स्तब्ध रह जाता है।

अदालत में, अलोपीदीन अपने धन और प्रभाव का उपयोग करके बरी हो जाता है, और वंशीधर को नौकरी से निकाल दिया जाता है।

कहानी का संदेश:

ईमानदारी का महत्व:

कहानी ईमानदारी और धर्मनिष्ठा के महत्व को उजागर करती है, भले ही इसके लिए व्यक्ति को कठिनाइयों का सामना करना पड़े।

धन पर धर्म की जीत:

कहानी दर्शाती है कि अंततः धर्म और सच्चाई की ही जीत होती है, भले ही धन और प्रभाव अस्थायी रूप से हावी हो जाएं।

भ्रष्टाचार का विरोध:

कहानी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश देती है।

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हाँ, गोदान मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध उपन्यास है।

यह हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है।

गोदान, प्रेमचंद का अंतिम पूर्ण उपन्यास है और इसे उनके सर्वश्रेष्ठ कार्यों में से एक माना जाता है। यह उपन्यास भारतीय ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति का एक मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।

नमक का दरोगा कहानी का मुख्य पात्र:

मुंशी वंशीधर:

कहानी का नायक, एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ नमक निरीक्षक।

पंडित अलोपीदीन:

एक धनी और प्रभावशाली व्यक्ति, जो नमक के व्यापार में भ्रष्टाचार करता है।

कहानी का सारांश:

नमक का नया कानून लागू होने के बाद, वंशीधर को नमक विभाग में दरोगा के पद पर नियुक्त किया जाता है। एक रात, वह यमुना नदी के पुल पर कुछ गाड़ियां रोकते हैं, जो पंडित अलोपीदीन की होती हैं।

गाड़ियों की तलाशी लेने पर पता चलता है कि उनमें नमक की तस्करी हो रही है। वंशीधर अलोपीदीन को गिरफ्तार कर लेते हैं, जिससे अलोपीदीन स्तब्ध रह जाता है।

अदालत में, अलोपीदीन अपने धन और प्रभाव का उपयोग करके बरी हो जाता है, और वंशीधर को नौकरी से निकाल दिया जाता है।

कहानी का संदेश:

ईमानदारी का महत्व:

कहानी ईमानदारी और धर्मनिष्ठा के महत्व को उजागर करती है, भले ही इसके लिए व्यक्ति को कठिनाइयों का सामना करना पड़े।

धन पर धर्म की जीत:

कहानी दर्शाती है कि अंततः धर्म और सच्चाई की ही जीत होती है, भले ही धन और प्रभाव अस्थायी रूप से हावी हो जाएं।

भ्रष्टाचार का विरोध:

कहानी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश देती है।

लेखिका शिखा दास देश की जानी-मानी पत्रकार लेखिका कवियित्री हैं कई राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य मीडिया सम्मेलन में काव्य पाठ व व्याख्यान दे चुकी है

छग क्राईम्स अखबार /पोर्टलकी महासमुन्द जिला सहित राष्ट्रीय विशेष प्रतिनिधि हैं अनेक राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान अवार्ड प्राप्त कर छग का अपने नगर जिला को गौरवान्वित कर चुकी हैं।

मारीशस भूटान थिम्पू श्रीलंका नेपाल काठमांडू कोलम्बो बैंकाक वियतनाम कम्बोडिया में इंटरनेशनल साहित्य समारोह में प्रतिभागी बनकर व्याख्यान कविता पाठ कर चुकी है साथ ही सम्मानित होकर छग का नाम रोशन कर चुकी है 📝✴️

छगक्राईम्स की ओर से

आज साहित्य सन्दर्भ मे

महान क्रांतिकारी उपन्यास कार कथाकार

प्रेमचंद को कोटि-कोटि नमन सलाम के साथ यह आलेख प्रस्तुत है 31जुलाई विशेष

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