महासमुंद। छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरूवा एवं बाड़ी के अंतर्गत महासमुन्द जिले की बात करें तो यहां पहले चरण में 65 गौठान निर्माण की अनुमति दी गयी थी। जिसकी संख्या बढ़कर अब 554 हो गयी है। जिसमें से वर्तमान में 305 पूर्ण, 202 प्रगतिरत् और 44 गौठान अप्रारम्भ है। जिले में 17 से अधिक आदर्श गौठान बन गए है।
गरवा कार्यक्रम के तहत् महासमुन्द जिले के ग्राम पंचायत में गौठान बनने से मवेशियों को आश्रय मिला है और अब सड़कों पर मवेशियों का विचरण कम हुआ है। गौठानों में ग्रामीणों द्वारा चारे के दाने के साथ-साथ मवेशियों के उचित प्रबंधन, देखरेख के लिए ग्राम स्तर पर गौठान प्रबंधन समिति का चयन किया गया है। जिनके द्वारा गौठान का संचालन किया जा रहा है।
नरवा के तहत् जिले को तीन सेक्टर में बांटा गया है। इसके अंतर्गत 84 नरवा का डिटेल्स प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) लिया गया। जिसमें नालों की मरम्मत की गयी। जिसके अंतर्गत 1,33,681 हेक्टेयर केचमेन्ट एरिया आता है। उक्त नरवा उपचार क्रियान्वयन हेतु 70 नरवा का डीपीआर तैयार किया गया। अब नरवा में वर्षा के बाद भी दो माह तक पानी भरा रहता है। जिससे जल संरक्षण एवं जल संवर्धन भी बढ़ा है। इन कार्य से आसपास के क्षेत्र में हरियाली है।
गौठानों में पशु अवशेषों का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन कर गोबर से वर्मी कम्पोस्ट खाद के साथ ही विभिन्न प्रकार के आर्थिक गतिविधियां संचालित है। ग्राम गौठान प्रबंधन समिति के सदस्यों द्वारा गौठान का संचालन करने से अब मवेशियों से फसल सुरक्षित होने से किसान भी निश्चिंत है। साथ ही दुर्घटनाओं में भी कमी आयी है। मवेशियों के चराई हेतु जिले में कुल 1115 एकड़ में 296 चारागाह के लिए राशि स्वीकृत की गयी है। इनमें 112 पूर्ण, वही 88 प्रगतिरत् है, शेष अप्रारम्भ है। जिले के 139 गौठानों में पशुओं के पौष्टिक हरे चारे के लिए 6,32,400 नेपियर रूट की व्यवस्था की गयी है। जो चयनित गौठानों में उपलब्ध जमीन उपलब्धता के आधार पर कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा 22 गौठानों में 1,36,000 नेपियर रूट चारा उत्पादन की व्यवस्था की गयी है।
इसके अलावा स्वयं की व्यवस्था से 7 गौठानों में 46,400 नेपियर रूट लगाया गया। तो वही पशुधन विभाग द्वारा 110 गौठानों में 4,50,000 नेपियर रूट चारा उत्पादन की व्यवस्था की गयी है। इसके साथ ही मनरेगा अंतर्गत 122 नवीन चारागाह रकबा 256 एकड़ स्वीकृत किया गया है। जिसमें 13 लाख नेपियर रूट लगाने की कार्ययोजना है। ताकि मवेशियों को पूरे वर्ष हरे चारे की उपलब्धता हो सके। यह योजना पूरें प्रदेश में लागू है। बाड़ी लगाने के लिए मनरेगा से सहायता दी जा रही है। तो वही स्व-सहायता समूहों को महिला एवं समाज कल्याण की ओर से मदद दी जा रही है। ग्रामीण खुद ही आगे बढ़कर मदद कर रहें हैं। गांवों में आवारा मवेशियों की समस्या कम हो गयी है। इसलिए किसान दूसरी एवं तीसरी फसल लगाने को लेकर उत्साहित और ललाइत है।
इस योजना कार्य से गांव के महिला स्व-सहायता समूहों और युवाओं को जोड़ा गया है। इस योजना से किसानों को जैविक खाद उपलब्ध हो रहा है। तो वही कृषि लागत भी कम हुई है। लोगों को रोजगार के अवसर भी मिले हैं। योजना के तहत् गरवा के आसपास के ग्रामों के किसानों द्वारा गौठानों के लिए स्वेच्छा से पैरादान भी किया जा रहा है। किसानों की इस कार्य की सराहना भी की गयी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती आ रही है। बाड़ी योजना में किसानों के घरों की बाड़ी में सब्जियों और मौसमी फलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे पौष्टिक आहार उपलब्ध हो रहा है। वहीं शाला-आश्रमों, ऑगनबाड़ी केन्द्रों की खाली पड़ी जमीन पर किचन गार्डन बच्चों द्वारा तैयार कर हरी-सब्जी भाजी का उपयोग किया गया है। इस योजना के माध्यम से भू-जल रिचार्ज, सिंचाई और ऑर्गेनिक खेती में मदद, किसान को दोहरी फसल लेने में आसानी हुई है।