अब श्रद्धालुओं को खल्लारी दर्शन के लिए नहीं होगी परेशानी, जल्द बनेगा रोप-वे

Chhattisgarh Crimes

महासमुंद। छत्तीसगढ़ का प्रमुख पर्यटन स्थल मां खल्लारी के दर्शन के लिए अब नहीं चढ़नी पड़ेगी 981 सीढ़ी। यहां जल्द ही रोप-वे का निर्माण होने जा रहा है। बतादें अधिक सीढ़ी होने के कारण कई श्रद्धालु खल्लारी दर्शन नहीं कर पाते। खासकर रोप-वे बजुर्गो और दिब्यागों के लिए अब यह वरदान साबित होगा। बताया जा रहा है 9 मार्च 2021 को इसके लिए आधारशिला रखा जाएगा।

मंदिर समित से मिली जानकारी के अनुसार, तकनीकी स्वीकृति मिलने के बाद निर्माण कार्य जल्द ही प्रारंभ हो जाएगा। यह रो-वे 300 मीटर लंबे इसमें चार ट्रॉली के साथ इसमें 4 लोग बैठ उपर खल्लारी दर्शन को जा सकेंगे। बतादें यह छत्तीसगढ़ का दूसरा रोप-वे है, इससे पहले डोंगरगढ़ में 650 मीटर लंबा रोपवे लगा है। इस रोप-वे में एक घंटे के भीतर 200 लोग खल्लारी पहाड़ी के उपर जाकर दर्शन कर पाएंगे।

जानिए इतिहास

छत्तीसगढ़ के प्राचीन एवं ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल है खल्लारी इसका उल्लेख द्वापर युग से होता आ रहा है। द्वापर युग में हिडिम्ब नायक राक्षस का राज्य था जिसकी राजधानी सिरपुर थी हिडिम्ब ने एक वाटिका खल्लारी में बनवाया था जहां समय-समय में वह घुमने आता था इसी वाटिका के कारण इस स्थान का नाम खल्लवाटिका अर्थात राक्षस की वाटिका के रू में जाना जाता था हिडिम्ब की बाहन हिडिम्बनी थी जो अपने भाई के साथ वाटिका घुमने आती थी और इस स्थान में स्थित देवीशक्ति की पूजा अर्चना करती थी।

द्वापर युग में ही पांडव अपना राज्य छोड़कर 12 वर्ष का निर्वासन कर रहे थे इसी निर्वासनकाल में पांडव इस क्षेत्र से गुजरे महाराज धृतराष्ट के पुत्र दुर्योधन, शकुनी और अन्य कॉरवों ने मिलकर पांडवों की हत्या करने के लिए षड़यंत्र रचा था इस षडयंत्र के अंतर्गत उन सभी ने मिलकर लाख और मांश आदि से लाक्षागृह बनाया और उसमें आग लगा दी

पांडवों का जुड़ा है इतिहास

परंतु पाण्डव ने गुप्त मार्ग से निकलकर दक्षिण की ओर इसी जगह में भटकते-भटकते पहुंचे और स्वयं को सुरक्षित महसुस कर कुछ देर इसी जगह पहाड़ में विश्राम करने का निर्णय लिया तभी राक्षसों के राजा हिडिम्ब ने मनुष्य की गंध महसुस कर लिया जारा हिडिम्ब ने अपनी बहन हिडिम्बनी को बुलाया और उसे उन सभी मनुष्यों को अपने निवास स्थान तक लाने का काम सौंपा जब राक्षसी हिडिम्बनी पांडवों के पास पहुंची तो देखा कि सभी पांडव तो विश्राम कर रहे थे परंतु उनमें से एक जागकर पहरा दे रहा था वे पांडु पुत्र भीम थे।

राक्षसी हिडिम्बनी ने भी को देखते ही उन पर मंत्र मुग्ध हो गई और उनसे प्रेम करने लगी और सुंदर सा रूप धारण कर उनके समीप जाकर उसे विवाह करने का प्रस्ताव रखी परंतु हिडिम्बनी को अपने भाई के समान ही अत्यंत बल शाली वर चाहिये था इस के लिए उसने भीम की परीक्षा ली और भीम ने अपनी वीरता का परिचय खल्लारी पहाड़ी के ऊपर चट्टान में दिया, भीम ने अपना पैर चट्टान पर पुरी शक्ति के साथ दबाया जहां-जहां पैर पर बल दिया गयसा वहां-वहां उसका पैर चट्टान पर धस गया।

रायपुर और रतनपुर के कुल्चुरी शासकों पर मराठों का अधिपत्य हो जाने के बाद खल्लारी का इतिहासा अंधकारमय हो जाता है। परंतु प्राचीन परिपाटी के अनुसाार मां खल्लारी की पूजा अर्चना में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आया जो निरंतर जारी है।

बेमचा महासमुंद से जुड़ी इतिहास

खल्लारी को कालांतर में खल्लवाटिका के नाम से जाना जाता रहां खल्लारी का एक मतलब खल्ल+अरी अर्थात दुष्टों का नाश करने वाली होता है संभवतया इसी कारण देवी माता का नाम खल्लारी हुआ ऐसा मानना है कि यहां का बाजार (हाट) काफी प्रसिद्ध था देवी मां नवायुवती का रूप धारण कर बेमचा (महासमुंद) सो यहां हाट में आया करती थी मां के इस लाावण्य रूप को देखकर एक बंजारा उन पर मोहित हो गया और मां का पिछा करने लगा बार-बार चेतावानी के बाद भी जब वह नहीं माना तब देवाी ने उसो श्राप देकर पत्थर का बना दिया जो आज भी गोड पत्थर के नाम से जाना जाता है।

इधर खल्लारी माता ने पाषाण रूप धारण कर पहाड़ को अपना निवास बना लिया और यहां के ग्रामीण को सपना देकर कहा कि मैं यहां के पहाड़ी में पत्थरों के बीच निवाास हूं। प्रकाश पूंज निकल रहा है। तब उस ग्रामीण व्यक्ति ने ग्रामवासियों के साथ उस स्थान पर गए तो वाहां देखा कि मां के पाषाण रूप में उनकी ऊंगली स्वष्ट रूप से दिखाई दे रहां था तब से ग्रामवासियों ने वहां पूजा अर्चना प्रारंभ किया जो आज भी निरंतर जारी है। क्षेत्र के लोग मां खल्लारी को अपना रक्षक मानते है प्राकृतिक विपदा के पूर्व माता पहाड़ी सो आवाज देकर पूजारी को सजग कर दिया करती थी।