राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वे में रायपुर 2017 से नंबर वन आ रहे इंदौर से काफी पीछे है। दो साल पहले रायपुर इस रैकिंग में इंदौर के बेहद करीब 6 रैंकिंग तक पहुंच गया था। इसके बाद रैकिंग ऐसी फिसली कि रायपुर सीधे टॉप-10 से ही बाहर हो गया। रैंकिंग सुधारने के तमाम प्रयासों के साथ संसाधानों में भी इजाफा करने के दावे किए जा रहे हैं।
हालांकि स्वच्छता सर्वे के अधिकांश पैरामीटर्स पर रायपुर खरे उतर रहा है। इसके बावजूद भास्कर ने बेसिक खामियों की पड़ताल की तो पता चला कि इंदौर और रायपुर की आबादी में दोगुने से ज्यादा का अंतर है लेकिन निगम के बजट और सफाई के संसाधनों में 4 गुने से ज्यादा फासला है। इसलिए सफाई में नंबर-1 इंदौर को चुनौती नहीं दे पा रहा रायपुर। यहां तक कि प्रतियोगिता में टॉप-3 में पहुंचने से भी दूर है।
भय जागे या भावना, तभी सुधरेगी व्यवस्था
सरकारी एजेंसियों के अलावा शहर को स्वच्छ और साफ-सुथरना बनाने में आम लोगों का भी बड़ा योगदान रहता है। लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक होना होगा। जानकारों का कहना है कि इसके दो उपाए हैं। एक भय और दूसरा भावना। कचरा, गंदगी फैलाने पर लोगों में कार्रवाई का भय होना चाहिए। गाड़ी में चलाते हुए गुटखा खाकर थूकने वाले को जुर्माने का भय होना चाहिए। सड़क पर कचरा फेंकने और डस्टबिन नहीं रखने वाले दुकानदारों को भी कार्रवाई का डर होना चाहिए। आम लोग हो या वीआईपी, कार्रवाई सभी पर हो तभी लोगों में भय रहेगा और व्यवस्था सुधरेगी। नगर निगम, जनप्रतिनिधियों और शासकीय तंत् को आम लोगों के मन में स्वच्छता के प्रति एक भावना पैदा करनी होगी। लोगों में यह भावना तब जागेगी जब सिस्टम स्वच्छ (भ्रष्टाचार मुक्त) हो।