नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर राज्यपालों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संबोधित कर रहे हैं। पीएम ने कहा कि शिक्षा नीति की जिम्मेदारी से केंद्र, राज्य और स्थानीय निकाय जुड़े होते हैं, लेकिन यह भी सच है कि शिक्षा नीति में सरकार का दखल कम से कम होना चाहिए। शिक्षा नीति से जितना शिक्षक, अभिभावक और छात्र-छात्राएं जुड़े होंगे, उसकी प्रासंगिकता उतनी ही रहती है।
नई शिक्षा-नीति पर 4-5 साल से कम चल रहा था। लाखों लोगों ने अपने सुझाव दिए थे। इसका ड्राफ्ट जो तैयार हुआ था उसके अलग-अलग पॉइंट पर 2 लाख से अधिक लोगों ने सुझाव दिए थे। इतना गहरा इतना व्यापक, विविधिता के बाद जो अमृत निकला है उसकी वजह से हर ओर इसका स्वागत हो रहा है। सबको राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनी शिक्षा नीति लग रही है। सभी के मन में यह भावना है कि यही सुधार तो मैं होते हुए देखना चाहता था।
पीएम मोदी ने कहा- राष्ट्रीय शिक्षा नीति सिर्फ पढ़ाई के तौर तरीकों में बदलाव के लिए ही नहीं है। ये 21वीं सदी के भारत के सामाजिक और आर्थिक पक्ष को नई दिशा देने वाली है। ये आत्मनिर्भर भारत के संकल्प और सामर्थ्य को आकार देने वाली है।
पीएम मोदी ने कहा- आज दुनिया भविष्य में तेजी से बदलते जॉब्स, नेचर आफ वर्क को लेकर चर्चा कर रही है। नई शिक्षा नीति देश के युवाओं को भविष्य की आवश्यकताओं के मुताबिक शिक्षा और स्किल्स दोनों मोर्चों पर तैयार करेगी।
नई शिक्षा नीति में फाउंडेशनल लर्निंग और लैंग्वेज पर फोकस है। इसमें लर्निंग आउटकम और टीचर ट्रेनिंग पर भी फोकस है। इसमें एक्सेस और असेसमेंट को लेकर भी व्यापक रिफॉर्म्स किए गए हैं। इसमें हर स्टूडेंट को एम्पावरकरने का रास्ता दिखाया गया है। लंबे समय से ये बातें उठती रही हैं कि हमारे बच्चे बैग और बोर्ड एग्जाम के बोझ तले, परिवार और समाज के दबाव तले दबे जा रहे हैं। इस पॉलिसी में इस समस्या को प्रभावी तरीके से अड्रेस किया गया है।