मांदर पर नन्हें हाथों की थाप देती है बड़े-बड़ों को टक्कर, गांव का नन्हा प्रतिभा

Chhattisgarh Crimes

प्रतिभा उम्र का मोहताज नहीं होती है। इस बात को प्रदेश के महासमुंद जिला अंतर्गत बागबाहरा ब्लाक के ग्राम गांजर के कुबेर ने सच साबित कर दिखाया है। महज 9 वर्ष का यह बच्चा पुरी कुशलता के साथ ढोलक, नॉल, मांदर बजाता है। 4 वर्ष की उम्र में जब खिलौनों से खेलने की थी तब वह गरीबी के चलते टीन के डिब्बों पर थाप देकर इसे ही अपना खिलौना समझता था, तब उसकी थाप को घरवालों ने इसे बचपना समझा लेकिन 5 वर्ष बाद आज 9 साल का यह मासूम किसी उस्ताद की तरह अपने गांव की सेवा मंडली में ढोलक, नॉल, मांदर जैसे वाद्य यंत्रों को बजा वाहवाही बटोर रहा है।

रायपुर। बागबाहरा ब्लाक के छोटे से गांव गांजर का यह 9 वर्षीय आदिवासी कलाकार कुबेर जब गांव की मंडली में पुरी तन्मयता से लय और ताल के साथ ढोलक, नॉल व मांदर बजाना शुरू करता है तो देखने और सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि नौ साल के कुबेर ने अभी तक किसी से कोई तालीम नहीं ली है, बावजूद इसके ढोलक, नॉल व मांदर पर नन्हें हाथों की थाप किसी बड़े उस्ताद से कम नहीं है।

कहते हैं ना पूत के पांव पालने में ही पहचाने जाते हैं। जी हां बच्चे जिस उम्र में खिलौना से खेलते हैं उसी उम्र में खिलौनां के बजाए कुबेर टीन के डिब्बों पर थाप देना शुरू किया तब घरवालों ने इसे बचपना समझा पर आज 9 साल का मासूम गांव की सेवा मंडली में उस्तादों की तरह वाहवाही बटोर रहा है। कुबेर की नन्हीं अंगुलियां की थापे किसी मंझे संगीतकार के हुनर से टक्कर लेती है। कुबेर के घर में किसी के पास संगीत की शिक्षा या कला नहीं है। कुबेर के पिता रिखीराम बेशक संगीत प्रेमी हैं। गांव की सेवा मंडली में वे भजन-कीर्तन के कार्यक्रम में शामिल होते हें। उनके इसी संगीत प्रेम से प्रेरणा लेकर कुबेर आज उस्तादों की तरह वाद्ययंत्रों पर अपनी थाप बिखेर रहे हैं।

इस नन्हें कलाकार तक हम वेटलिफ्टिंग नेशनल खिलाड़ी चंद्रकात सेन की मदद से पहुंचे। दो भाईयों में छोटा कुबेर कक्षा पांचवीं का छात्र है तथा गरीब आदिवासीी परिवार से संबंधित है। कुबेर की इच्छा तो किसी अच्छे संगीत प्रशिक्षण केंद्र में जाकर प्रशिक्षण लेने की है पर गरीबी के चलते वह कभी प्रशिक्षण ले पायेगा या नहीं यह समय के गर्भ में है।

बहरहाल हमारे प्रदेश के गांवों में एक एक से एक प्रतिभा है। जरुरत है तो समय पर इन्हें पहचान कर आगे लोने की है। सरकार हर दिशा में काम कर रही है। दिशा-निर्देश बना रही है। ग्रामीण प्रतिभाओं को उभारने की दिशा में भी ध्यान देने की आवश्यकता है। आज ग्रामीण प्रतिभाओं को समय पर सही मार्गदर्शन, सही मंच, मदद नहीं मिल पाने के कारण तंगहाली, बदहाली में उनकी प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं। कुबेर की प्रतिभा गांव तक ही सिमट कर ना रह जाए क्या इसके लिए क्षेत्र के सांसद व विधायक जो खुद ग्रामीण परिवेश में पढ़े लिखे हैं वे आगे आकर उसका हाथ थामेंगे, यह एक बड़ा सवाल है।