हरेली पर विशेष लेख

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रायपुर. छत्तीसगढ़ में अपनी मेहनत से उपजी हरियाली को हरेली के रूप में मनाने का संस्कार है। कृषि युग की शुरूआत के बाद से हरियाली ने हमारे शरीर और दिमाग को ढक लिया है। प्रकृति चक्र जेठ-बसाख के तेज गर्मी, आषाढ़ की बूंद पर, मिट्टी की सुंगध और हरियाली कल्पना को याद करने के लिए सारा ज्ञान मन में समा जाता है। यह हमारे किसानेां और पौनी- पसारियों भाईयों, बैसाख की अक्ती, आषाढ़ की रथयात्रा और सावन की हरेली की तरह लगता है, जहां वे भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए मेहनत करते है। हर समय, कड़ी मेहनत के बाद किसान उत्साह की कामना करते है। मंगल का उत्साह समृद्धि लाता है। तन और मन में खुशहाली लाती हैं। खेती जीवन का सार है। जो मेहनतकश है, वह अपने मातृत्व में एक अलग स्थान का आनंद लेता है। खेती करते हुए किसान जीवन भर जमीन की जुताई करते रहेंगे। हरेली का दिन अमावस्या के अंधेरा मिटाकर प्रकाश में जाने का संदेश देता है। सब कुछ सबके मन में हरियाली लाता है। मवेशी हमारी कृषि संस्कृति का आधार हैं। हमें बुवाई के लिए धान रखने और खलिहान में सम्मान के साथ भंडारण करने की परंपरा को जीवित रखना है।

(1) हरेली में गौधन की पूजा करने की रस्म के साथ चावल आटे की लोंदी एवं जड़ी-बूटियों को मिलाकर मवेशियों को खिलाया जाता है, ताकि बारिश के मौसम में मवेशियां बीमार न हो। अंडे के पौधे की पत्तियों में नमक रखकर मवेशियों को चटाई जाती है।
(2) जीवन का आधार है किसानी और पशुधन- कृषि और पशुधन जीवन का आधार है, जहाँ पृथ्वी है, वहाँ हवा है, वहाँ पानी है, वहाँ हरियाली है, तभी हरी मिट्टी में नए अंकुरों की पूजा एक रस्म बन गई।
(3) कृषि उपकरण- हल, रापा, कुदाल, कांटा को तालाब में धोते हैं, फिर तेल लगाकर तुलसी चौरा के सामने सजाकर रखा जाता है। पूजन के लिए चीला प्रसाद बनाया जाता है। पूजा में सादगी छत्तीसगढ़ की संस्कृति की पहचान है। चंदन का तिलक लगाते हैं और पूजा करते हैं।
(4) पांच पर्वों का महत्व- राउत, नाई, लोहार, धोबी और कोटवार का महत्व हरेली त्योहार में बढ़ जाता है। नीम पत्ते को घर के सामने लगाकर हरियाली का संदेश देते है। लोहार घर के मुख्य दरवाजे पर किला ठोककर घर में किसी प्रकार के विपदा न आए करके पूजा करते है।
(5) वर्षा ऋतु की बीमारी से बचाने के लिए घर और गौठान में गोबर से घेरे बनाए जाते है।

(6) हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला कार्यक्रम होता। गेड़ी के पीछे एक महत्वपूर्ण पक्ष है जिसका प्रचलन वर्षा ऋतु में होता है। वर्षा के कारण गांव के अनेक जगह कीचड़ भर जाती है, इस समय गाड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है।

(7) हरेली के दिन विभिन्न खेलकूद का आयोजन किया जाता है, जिसमें नारियल फेंक बड़ों का खेल है इसमें बच्चे भाग नहीं लेते। प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है। खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा। प्रतिभागी शर्त स्वीकारते हैं, जितनी बात निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है। यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है। नारियल फेंकना कठिन काम है इसके लिए अभ्यास जरूरी है। पर्व से संबंधित खेल होने के कारण बिना किसी तैयारी के लोग भाग लेते है।
(8) हरियाली के दिन घरों में चीला चौंसेला, बोबरा जैसे पकवान तैयार किए जाते है।
(9) छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के बाद से प्रदेश सरकार हमारे संस्कृति और संस्कार को फैला रहे हैं, तभी गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ के कल्पना को सकार कर सकते है।

साभार – श्री मीर अली मीर
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कवि