हल षष्ठी पर आज भी प्रचलित है कहानी कहने और सुनने की परंपरा, सुहागिनों ने रखी सुखी संतान के लिए व्रत

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नरेन्द्र ध्रुव/ छत्तीसगढ़ क्राइम्स

गरियाबंद। हल षष्ठी व्रत उपवास ग्रामीण और शहरी महिलाओं द्वारा आज अपनी संतान के सुखी जीवन की कामना को लेकर किया जा रहा है। इस विषय पर महंत गोकुल गिरि महराज ने विचार व्यक्त किया है कि श्रीमद भागवत कथा के अनुसार द्वापर युगीय कथा भगवान कृष्ण अवतार के पहले उनके ज्येष्ठ भ्राता बलराम जी का जन्म हुआ था जिसे गोकूल में आनंद उत्सव मनाया गया। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरे भारत सहित छत्तीसगढ़ के सुहागिनें व्रत रखकर भगवान से मंगल कामना करती है ।

इसी तरह भगवताचार्य पं देवेश तिवारी तौरेंगा जतमाई सेवा समिति ने बताया कि इस दिन महिलाएं व्रत रखकर बिना हल चलित चांवल, पसहर ,मुंगेसर , दाल बिना वर्षा हुए जल धान की लाई का प्रसाद भोग के रूप में निर्मित किया जाता है।वहीं महुआ को भूनकर आचार्यों द्वारा निर्मित सगरी और काशी के फूल पर चढ़ाकर मंगल कामना कर उपवास तोड़ती है।

महराज प्रेमशंकर तिवारी गरियाबंद भागवत कथा कार के अनुसार इस दिन भगवान बलराम के जन्मदिवस पर हलषष्ठी अर्थात कमरछठ में ग्रामीण ही नहीं बल्कि शहरी महिलाएं भी व्रत करती है और ग्राम के बुजुर्गो द्वारा प्रचलित कहानियां सुनाई जाती है जिसे व्रतधारी महिलाएं बड़े ही आस्था पूर्वक सुनती है।