पत्नी ने पति की चिता को दी मुखाग्नि

Chhattisgarh Crimes

कोरिया। छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में पत्नी ने ही अपने पति की अर्थी को कंधा देकर मुखाग्नि दी। वो तेरहवीं तक अंतिम संस्कार की सभी रस्में भी पूरी करेगी। पति की मौत के बाद बाकी परिजनों ने अंतिम संस्कार के लिए एक लाख रुपए या पांच डिसमिल जमीन मांगी थी। उनकी शर्तें पूरी नहीं होने पर अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया।

दरअसल, पटना तहसील के ग्राम करजी निवासी कतवारी लाल राजवाड़े (47) को दो साल से मुंह का कैंसर था। करीब 6 महीने पहले हालत ज्यादा खराब हो गई। पैतृक संपत्ति का कुछ हिस्सा बेचकर उसकी पत्नी श्यामपति ने इलाज कराया। इसी बीच कतवारी की सोमवार रात मौत हो गई।

दोनों की नहीं थी कोई संतान

कतवारी लाल राजवाड़े और श्यामपति की 25 साल पहले शादी हुई थी। लेकिन उनका कोई बच्चा नहीं हुआ। इसलिए कतवारी के निधन के बाद यह समस्या आ गई कि, मुखाग्नि कौन देगा। हिंदू रीति-रिवाज के साथ क्रिया कर्म कौन करेगा।

अंतिम संस्कार के लिए चचेरे भाई ने मांगे पैसे या जमीन

राजवाड़े समाज के लोगों ने कतवारी के बड़े पिता के बेटे संतलाल राजवाड़े को मुखाग्नि देने और क्रिया कर्म करने के लिए कहा। लेकिन संतलाल ने अंतिम संस्कार के बदले एक लाख रुपए या 5 डिसमिल जमीन देने की मांग की। श्यामपति 15 हजार रुपए देने को तैयार थी, लेकिन वे नहीं माने।

खुद अंतिम संस्कार करने का लिया फैसला

नजदीकी रिश्तेदार संतलाल राजवाड़े और उसके परिवार ने जो शर्त रखी, उसके बाद श्यामपति ने पति का अंतिम संस्कार खुद ही करने का निर्णय लिया। श्यामपति ने कहा कि, उसके पास जीवन यापन के लिए मात्र 15 से 20 डिसमिल जमीन बची है। पांच डिसमिल जमीन देने के बाद उसके पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचेगा।

अर्थी को दिया कंधा, मुखाग्नि भी दी

समाज की मौजूदगी में घर से अर्थी निकाली गई। जिसे पत्नी श्यामपति ने कंधा दिया। करजी के मुक्तिधाम में श्यामपति ने रीति-रिवाज के साथ नम आंखों से पति की चिता को मुखाग्नि दी। यह दृश्य देखकर अंतिम संस्कार में शामिल हुए लोगों की आंखें नम हो गई।

ग्राम पंचायत करजी के पूर्व उप सरपंच चैतमणी दास वैष्णव ने कहा कि, इस तरह का मामला पटना क्षेत्र में पहली बार देखने को मिला है, जहां एक महिला ने अपने पति की चिता को मुखाग्नि दी हो। यह विडंबना भी है।

चैतमणी दास वैष्णव ने कहा कि, हिंदू समाज में परंपरा है कि महिलाएं मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होती हैं। लेकिन श्यामपति का यह निर्णय दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा भी है।