क्राइम करने से बचने मन को शांत कर क्रोध पर पाएं काबू : IG रतन लाल डांगी

Chhattisgarh Crimes

रायपुर. देखने में आया है कि समाज में ज्यादातर क्राइम क्रोध के कारण होते हैं. यदि व्यक्ति कुछ समय के लिए अपने क्रोध पर काबू पा ले तो बहुत बड़े क्राइम को करने से बच जाता है. देखने में आता है कि परिवारों में आपसी रिश्तों में खटास का कारण भी क्रोध ही होता है. छोटी-छोटी बातों पर व्यक्ति क्रोधित होकर मारपीट पर उतर जाते है. कई बार तो क्रोधित व्यक्ति हत्या जैसे जघन्य अपराध भी कर बैठता है.

आजकल युवाओं के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर आपसी विवाद भी हत्या/हत्या का प्रयास /अपहरण जैसे अपराध घटित कर देते हैं. इसका एक ही कारण हैं उनमें क्रोध का उपजना. लोगों में सहन शक्ति खत्म सी हो गई है. इसके साथ चाहे आपसी झगड़े हो, कॉलेज-स्कूलों में होने वाले झगड़े हो, पड़ोसी के साथ झगड़ा हो, पार्किंग को लेकर, साइड नहीं देने के कारण, किसी कमेंट्स को लेकर आए दिन घटनाएं घटित होने की रिपोर्ट थानों में होती हैऔर इन सबका भी कारण लोगों में क्षणिक गुस्सा आना है.

क्रोध के कारण पता नहीं कितने घर, कितने परिवार नष्ट हो चुके हैं, क्योंकि क्रोध के समय बुद्धि का विनाश हो जाता है. पता नहीं इंसान क्या कर दे. इसने पता नहीं कितने घर जला दिए, कितनी खुशियां जला दी, अब तो हम इसे छोड़ ही दें. ऐसा कुछ ना करे, जिससे किसी का क्रोध बढ़े, हम किसी की कमजोरी का नाजायज लाभ ना उठाएं. जो भूल एक बार हो चुकी हो उसे न दोहराएं. वातावरण को शांत बनाने सहयोग दें. इंसान है, तो इंसान ही बने रहे ,हैवान न बने ,क्रोध इंसान को हैवान बना देता है.

वैसे भी जहां क्रोध होता है वहां कभी सुख नहीं होता. जितना हो सके इससे बचें. क्रोध घर में कभी सुख-शांति नहीं आने देता. क्रोध से दूसरों को तो कष्ट पहुंचता ही है, हमें भी अंदर से खोखला कर देता है. क्रोध में मानव कई बार ऐसा अनर्थ कर देता है जिससे उसे जीवन पर्यंत पछताना पड़ता है. क्यों न इस क्रोध रूपी हानि अथवा कष्ट से बचने का प्रयास किया जाए, जिसके रहते शांति और तनाव बढ़ता है और कभी शांति प्राप्त नहीं हो सकती. जब भी क्रोध आता है वह किसी न किसी पर तो उतरता ही है. इससे हमारा हमारे अपनों का मन दुखी तो होता ही है. साथ में घर का वातावरण भी खराब हो जाता है. यदि उस क्षण स्वयं को संभालने और सही समय पर उस मुद्दे को उठाए तो बात का वजन बढ़ जाएगा.

यदि आप सचमुच क्रोध को स्वयं से दूर रखना चाहते हैं तो इसके लिए प्रयत्न भी स्वयं ही करने पड़ेंगे. क्रोध पर नियंत्रण पाना कठिन है परंतु असंभव नहीं. यदि हमने अपना शेष जीवन सुख शांति से व्यतीत करना है तो एकांत में बैठकर सोचे कि अपने क्रोध पर कैसे नियंत्रण पाया जाए, कौन से तरीके अपनाए, क्योंकि अपने आपको अपने आप से अधिक कौन जानता है ? आपके सोचने पर इसका उपाय अवश्य मिल जाएगा. इसी प्रकार हमें अपने त्रुटियों तथा कमजोरियों का भी पता चल सकता है.

छोटी-छोटी बातों पर क्रोध कर हम अपने बहुमूल्य क्षण नष्ट ना करें. समय और स्थिति को समझते हुए स्वयं पर नियंत्रण करना सीखें. अभी क्रोध करने की आदत बनी हुई है कल इसे छोड़ने की आदत भी बनते बनते बन जाएगी. क्रोध पर नियंत्रण कैसे किया जाए इसके लिए भगवान बुद्ध की एक कहानी प्रासंगिक है. एक बार भगवान बुद्ध अपने प्रिय शिष्य आनंद के साथ वन गमन कर रहे थे. रास्ते में एक बहुत बड़ा तालाब दिखाई दिया जिसमें बहुत सारे जानवर पानी पी रहे थे और कुछ जानवर उस पानी में अंदर तक जाकर नहा भी रहे थे. भगवान बुद्ध ने अपने आनंद को बोला कि मुझे प्यास लगी है क्यों ना पास के पेड़ के नीचे बैठ कर पानी पिया जाए. इसके लिए तुम जो सामने तालाब दिखाई दे रहा है उससे पानी लेकर आ जाओ.

आनंद भगवान बुद्ध के आदेशानुसार तालाब के पास पानी लेने के लिए पहुंचता है, वहां देखता है कि तालाब का पानी बहुत ही गंदा हो रखा है, क्योंकि उसे जानवरों ने गंदा कर दिया है. गंदे पानी को देखकर आनंद खाली पात्र लेकर लौटता है और बोलता है तथागत इस तालाब का पानी पीने लायक नहीं है, क्योंकि जानवरों ने इस को गंदा कर दिया है.

कुछ समय इंतजार करने के बाद भगवान बुद्ध पुनः आनंद को बोलते हैं कि अब फिर से जाकर पानी लेकर आ जाओ. आनंद आज्ञा अनुसार तालाब के किनारे जाकर देखता है कि पानी अभी भी गंदा लग रहा है जो कि पीने लायक नहीं है, फिर लौटकर आ जाता है. कुछ समय बाद भगवान आनंद फिर से पानी लेने के लिए भेजते हैं. अब आनंद देखता है कि तालाब का पानी अब साफ सुथरा दिखाई दे रहा है. आनंद पानी को पात्र में भरकर तथागत को पीने के लिए देते हैं. तथागत पानी को देखकर आनंद से पूछते हैं की क्या यह वही पानी है, जिसको तुमने पहली बार जाकर के तालाब में देखा था. आनंद कहता है हां तथागत पानी तो वही है, लेकिन उस समय यह बहुत ही गंदा था और पीने लायक भी नहीं था.

तथागत पूछते हैं तो अब यह साफ कैसे हो गया ? आनंद जवाब देते हैं जो गंदगी पानी के साथ मिली हुई थी वह अब नीचे बैठ गई है, जिससे यह पानी साफ सुथरा हो गया है.

इसी बात पर तथागत आनंद को कहते हैं ऐसे ही जब कोई व्यक्ति क्रोध से भरा रहता है उस समय उसके मस्तिष्क में एक तरह की गंदगी जमा हो जाती है और उस समय वह व्यक्ति किसी भी प्रकार का कोई निर्णय लेता है तो वह गलत ही होता है या यूं कह सकते हैं कि उसके सोचने की क्षमता कम हो जाती है. कई बार इस क्रोध में वह कोई अपराध भी घटित कर देता है, लेकिन यदि वह व्यक्ति कुछ समय के लिए चुप हो जाए या कोई बात ना करें, कोई काम ना करें तो उसका दिमाग शांत हो जाता है.

जैसे कि उस गंदे पानी में मिली हुई गंदगी कुछ समय के बाद नीचे बैठ जाती है और पानी साफ हो जाता है. वैसे ही दिमाग को कुछ समय देने पर दिमाग में फैली हुई गंदगी यानी क्रोध/ आक्रोश शांत हो जाता है और वह व्यक्ति कोई भी गलत निर्णय लेने से बच जाता है. कहने का मतलब यह है कि यदि क्रोध आए तो कुछ समय के लिए अपने दिमाग को समय दो एवं शांत हो जाओ. किसी से कोई बात ना करें. ऐसा करके हम ना तो किसी का नुक़सान कर पाएंगे और ना ही अपना खुद का भी नुक़सान कर पाएंगे.

– रतन लाल डांगी, आईजी, बिलासपुर रेंज छत्तीसगढ़