नौकरी गई तो शादियां टूटी, ससुराल में एंट्री हुई बंद:कोर्ट-कचहरी में 2करोड़ से ज्यादा खर्च, अब आचार संहिता के बीच फंसे B.Ed. शिक्षक

Chhattisgarh Crimes
रायपुर। आज मेरा बच्चा एक साल का हुआ है। लेकिन घर से दूर, खुशियों से दूर ये मेरे साथ यहां प्रोटेस्ट पर है। इसके जन्मदिन पर मेरे घर का माहौल ऐसा बन रखा है कि मानो कोई मर गया हो। 42 साल की उम्र में मुझे नौकरी मिली। एक साल सर्विस लेने के बाद 1 जनवरी को मुझे सरकार ने टर्मिनेशन लेटर थमा दिया। क्या यही न्याय है?

ये कहते हुए गायत्री देवी मिंज की आंखें डबडबाने लगती हैं। इसी बीच उनके बच्चे की रोने की आवाज आती है। अपना दर्द वहीं छोड़कर, बगल में लेटे बच्चें को वो गोद में लेती हैं। सीने से लगाती है, और बच्चा शांत हो जाता है। गायत्री देवी इसके आगे कुछ नहीं कहतीं। लेकिन उनके चेहरे पर आई शिकन सारी कहानी बतला जाती है…..

अपने दुधमुंहे बच्चे के साथ गायत्री देवी मिंज।
गायत्री देवी मिंज केवल बानगी हैं। लगभग ऐसा ही हाल उनके जैसे 2,896 और शिक्षकों का है। ये बीएड कैंडिडेट्स हैं। नए साल के मौके पर सरकार ने इनके घरों में तोहफे के रूप में टर्मिनेशन लेटर भेजा। जो नौकरी हाथ से गई, वो किसी का सपना थी, किसी की जरूरत और किसी के शादी की गारंटी।

ये लोग लगभग एक महीने से छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में शहर की भीड़ से करीब 25 किलोमीटर दूर तूता गांव में धरने पर बैठे हुए थे। लेकिन नगरी निकाय चुनाव की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लग गई। जिसके चलते इन बी.एड कैंडिडेट्स को अपना धरना बंद करना पड़ा।

हालांकि इनका कहना है कि आचार संहिता खत्म होते ही ये सभी लोग फिर से धरने पर बैठेंगे। इन शिक्षकों का दर्द जानने हम कुछ दिन पहले रात दो बजे तुता पहुंचे। जहां ये खुले आसमान के नीचे, ठंडी हवाओं के बीच 12 डिग्री टेम्प्रेचर में दिन भर की थकान के बाद गहरी नींद में सोए हुए थे। कुछ जमीन पर पड़े थे और कुछ एक बड़े से चबूतरे पर।

हमारे कैमरे के फ्लैश और पैरों की थाप ने इनकी नींद तोड़ी। इसके बाद एक–एक कर हमने इनकी कहानी पूछी। यहां पता चला कि नौकरी जाने के बाद कई लोगों की शादी टूट गई है। कुछ के ससुराल वालों ने उनकी एंट्री बंद कर दी है। महिलाएं दुधमुंहे बच्चों को साथ लेकर प्रदर्शन पर बैठी हुई हैं। वहीं कोर्ट और प्रदर्शन में अब तक दो करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हो चुके हैं।

पिछले एक महीने से बी.एड. कैंडिडेट्स प्रदर्शन कर रहे थे।

शिक्षकों का दर्द

IT इंजीनियर की जॉब छोड़कर टीचर बने, अब बेरोजगार

जो नींद से सबसे पहले जगे उन्होंने अपना नाम धनश्याम पटेल (39 साल) बताया।। घनश्याम कहते हैं कि वो आईटी इंजीनियर थे। 60–70 हजार महीने के आ रहे थे। लेकिन जॉब सिक्योरिटी के चक्कर में सरकार नौकरी के झांसे में आ गए। घर पर एक बच्चा और पत्नी हैं, जिन्हें वो सब कुछ ठीक हो जाने की दिलासा भर दे पाते हैं।

टर्मिनेशन लेटर मिलते ही शादी भी टूट गई

धनश्याम की आवाज सुनकर उनके बगल में लेटे हुए साथी हेमचरण की नींद खुली। 31 साल के हो चुके हेमचरण ने बताया इसी नौकरी के बेस पर उनका रिश्ता तय हुआ था। इस महीने शादी होने वाली थी, लेकिन टर्मिनेशन लेटर आने के बाद शादी टल गई।

40 हजार की सैलरी में 30हजार किस्त जा रही थी

आगे बढ़े तो जीतराम साहू से बात हुई। जीतराम ने बताया वो डीएवी रायगढ़ से नौकरी छोड़कर सरकारी नौैकरी में आए थे। जिसमें उन्हें महीने के 40 हजार मिल रहे थे। इसमें से 30 हजार रूपए किस्त में जा रहे थे। मुझ पर छह से सात लाख का कर्जा है। अब समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या होगा, कैसे होगा?

रिफ्यूजी कैंप सी जगह पर ठहरी हुई हैं महिलाएं

इस बीच हमें एक शिक्षक ने बताया कि रात के वक्त धरना स्थल पर केवल पुरूष कैंडिडेट्स ही रुकते हैं। कुछ दूरी पर तीन सामुदायिक भवन बुक हैं। जिनमें करीब 500 महिलाओं के ठहरने का इंतजाम अलग से किया गया। इसके बाद हम एक शिक्षक को अपना गाइड बना, सामुदायिक भवन की ओर चल पड़े।

यहां पहुंचकर दरवाजा खटखटाया तो अंदर से आवाज आई– कौन है? हमने अपना परिचय दिया। जिसके बाद कुछ और सवाल–जवाब हुए। पूरी तसल्ली होने के बाद ही महिलाओं ने दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही हमारे सामने करीब 30 फीट लंबा और 20 चौड़ा हाल था। इस हाल में 60 से ज्यादा महिलाएं थी। जगह इतनी कंजस्टेड कि कोई करवट भी न बदल सके।

कैंपस के बाहर भी सीढ़ी पर कुछ महिलाएं सोई हुईं थी। ये जगह पहली नजर में ये जगह किसी रिफ्यूजी कैंप सी लगी। बातचीत के दौरान महिलाओं ने हमें बताया कि पिछले कुछ दिनों से यहां चोरी हो रही है। इसलिए एहतियातन सवाल–जवाब करना पड़ा। इसके बाद हम सीधे मुद्दे पर आए…

खुशी देने के समय पर, मैं परिवार को दर्द दे रही हूं

निशा लकड़ा नाम की एक आदिवासी शिक्षक ने बताया कि उनके साथ उनकी मां भी एक महीने से प्रोटेस्ट कर रही हैं। मुझे जब मेरे परिवार को खुशी देनी चाहिए थी, मैं तब उन्हें दर्द दे रही हूं। हमारी क्या गलती है, मुझे समझ नहीं आ रही है।

ससुराल वालों ने बोला- जब तक नौकरी न मिले, घर मत आना

वहीं अपने ढाई साल के बेटे के साथ प्रोटेस्ट पर बैठीं वर्षा ठाकुर ने बताया कि बमुश्किल से यहां खाने–पीने की व्यवस्था हो पाती है। मेरे बच्चे के लिए दूध नहीं मिल पाता। अब ये पानी को ही दूध समझकर पीता है। दूसरी ओर । ससुराल वालों ने बोल दिया है, जब तक समायोजन नहीं हो जाता घर मत आना।

मेरे साथ–साथ पति की नौकरी भी चली गई

इसी लाइन में आगे बैठी हुईं विद्या चंद्राकर ने बताया– वो फौज में जाना चाहती थी। लेकिन मेडिकल आउट हो गईं। इसके बाद टीचिंग लाइन आई। उनके पति की भी इसी भर्ती में नौकरी लगी थी, उनकी भी जाॅब चली गई।

टीचर बनना बचपन का ख्वाब था, पल भर में उजड़ गया

हम बाकी लोगों से बात कर रहे थे। तभी 27 साल की यशोदा बरिहा के रोने की आवाज आई। यशोदा ने बताया उसकी तबियत पिछले 4–5 दिनों से खराब है। लेकिन फिर भी वो प्रोटेस्ट पर बैठी है। फ्लैश लाइट जलाकर एक्जाम की तैयारी की गई थी। बचपन से टीचर बनने का ख्वाब था। जो पूरा तो हुआ लेकिन पूरी तरह से नहीं।

अब तक दो करोड़ से ज्यादा खर्च हुए

B.Ed. शिक्षकों ने हमें बताया कि केस लड़ने से लेकर अब तक उनके दो करोड़ से ज्यादा का खर्च हो चुके हैं। प्रोटेस्ट में ही हर दिन लगभग 70 हजार का खर्च हो रहा है। जिसमें खाने–पीने से लेकर रहने तक का खर्च शामिल है। सिर्फ वकीलों की फीस देने में ही डेढ़ करोड़ से ज्यादा का खर्च हो चुका है।