किशन सिन्हा/छत्तीसगढ़ क्राइम्स
छुरा. छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्योहारों में से एक त्यौहार है कमरछठ (हलषष्ठी) जो मंगलवार को मनाया गया। भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष के षष्ठी तिथि के दिन यह पर्व मनाया जाता है। इस मौके पर महिलाएं संतान प्राप्ति तथा बच्चों की लंबी आयु एवं सुख समृद्धि के लिए दिनभर निर्जला उपवास रखती हैं शाम को लाई, पसहर चावल, महुआ, दूध-दही आदि का भोग लगाकर सगरी की पूजा अर्चना करती हैं।
नगर व गांवों में जगह जगह मंदिर और शीतला मंदिर के प्रांगण में ग्राम प्रमुखों के सहयोग से सार्वजनिक रूप से सगरी बनाया गया । जिसमें नगर के सभी मोहल्ले की माताएं ,बहनें एक जगह इकट्ठा हो कर सगरी और मां हलषष्ठी की पूजा अर्चना कर पसहर चावल, भैंस का दूध, दही, घी, फूल, बेलपत्ती, काशी,खमार, बांटी भौरा सहित अन्य सामग्रियां अर्पित करती हैं।
नगर के बड़े बुजुर्गो की मानें तो संतान सुख एवं बच्चों की लंबी उम्र के लिए माताओं द्वारा किया जाने वाला यह ऐसा पर्व है जिसे हर जाति और वर्ग के लोग मनाते हैं।
मंगलवार को इस पर्व पर माताओं ने सुबह से महुआ पेड़ की डाली का दातून कर, स्नान कर व्रत धारण किये। दोपहर बाद सार्वजनिक रूप से बनाई गई सगरी में पानी भरा गया। मान्यता है कि पानी जीवन का प्रतीक है। बेर, पलाश, आदि पेड़ों की टहनियों और काशी के फूलों से सगरी की सजावट की गई। इसके सामने गौरी-गणेश, मिट्टी से बनी हलषष्ठी माता की प्रतिमा और कलश की स्थापना कर पूजा की गई, और मां हलषष्ठी की कथा पढ़ी और सुनी गई। पूजन पश्चात माताएं घर पर बिना हल के जुते हुए अनाज पसहर चावल, छह प्रकार की भाजी को पकाकर प्रसाद के रूप में भोग लगाकर वितरण कर अपना उपवास तोड़ी।
कमरछट में भाजियों का अपना महत्व है। इस व्रत में छः तरह की ऐसी भाजियों का उपयोग किया जाता है। जिसमें हल का उपयोग ना किया हो। जिसमें चरोटा भाजी,खट्टा भाजी,मुनगा भाजी, कुम्हड़ा भाजी,लाल भाजी,चेंच भाजी,चौलाई भाजी शामिल हैं।
यह पर्व छुरा नगर सहित अंचल के ग्राम पाटसिवनी, हीराबतर, रसेला, सिवनी,कामराज, पेंड्रा, सहित लगभग सभी गांवों में बड़े हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया।