भाई की जिंदगी बचाने को आईवीएफ से पैदा की गई बहन, भारत में पहली बार ऐसा ‘चमत्कार’

Chhattisgarh Crimes

नई दिल्ली। भारत की पहली ‘सेवियर सिबलिंग’ काव्या सोलंकी एक साल की हो गई हैं। काव्या वो बच्ची है जिसे अपने बड़े भाई अभिजीत की जान बचाने के लिए आईवीएफ के जरिए बनाया गया था। थैलीसीमिया से जूझ रहे अभिजीत को काव्या से बोन मैरो मिली और पिछले छह महीन से उसकी हालत ठीक है। भारत में अपनी तरह का यह पहला मामला है। ‘सेवियर सिबलिंग’ वो बच्चे होते हैं जिन्हें अपने बड़े भाई/बहन को अंग, बोन मैरो या कोशिकाएं दान करने के लिए बनाया जाता है। सेवियर सिबलिंग के खून या कॉर्ड ब्लड से स्टेम सेल्स निकालकर उनसे थैलीसीमिया जैसे डिसआॅर्डर्स का इलाज हो सकता है। उन्हें आईवीएफ के जरिए बनाया जाता है ताकि पहले ही जांच करके जेनेटिक डिसआॅर्डर दूर किए जा सकें। दुनिया की पहली सेवियर सिबलिंग 2000 में अमेरिका में पैदा हुई थी।

बड़ी बहन से मैच नहीं हुआ था भाई का बोन मैरो

काव्या को नोवा आईवीएफ ने तैयार किया था। उसने अपने बड़े भाई, अभिजीत की जान बचाई जिसे जन्म के कुछ महीनों बाद ही थैलीसीमिया हो गया था। छह साल के अभिजीत को 80 बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन से गुजरना पड़ा है। इसके अलावा चेलेशन थिरेपी (आयर्न ओवरलोड कम करने के लिए दवाएं इंजेक्ट करना) भी दी गई। बोन मैरो ट्रीटमेंट से ही उसका इलाज संभव है। इसके बिना वह 30 साल से ज्यादा नहीं जी सकेगा। अभिजीत की एक बड़ी बहन है लेकिन उसका बोन मैरो मैच नहीं कर रहा था। जब सारे विकल्प खत्म हो गए तो अभिजीत के माता-पिता सहदेव और अपर्णा ने उसके लिए सेवियर सिबलिंग बनाने का फैसला किया।

पिछले छह महीने से नहीं पड़ी ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत

नोवा आईवीएफ के डॉ मनीष बैंकर ने कहा कि आईवीएफ के पहले साइकिल में 18 भ्रूण तैयार किए गए थे और फिर उनकी जेनेटिक टेस्टिंग और बोन मैरो मैचिंग हुई। सिर्फ एक को ही पूरी तरह ठीक पाया गया और उस भ्रूण को अपर्णा के गर्भाशय में इम्प्लांट किया गया। साल भर पहले उन्होंने स्वस्थ्य ‘काव्या’ को जन्म दिया था। आमतौर पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए कॉर्ड ब्लड से स्टेम सेल्स ली जाती हैं लेकिन इस केस में वो पर्याप्त नहीं थीं। घंटे भर चली कवायद में काव्या से 20 से 200 एमएल मैरो ही निकाला जा सका जो बाद में अभिजीत को दिया गया। अभिजीत को पिछले छह महीनों में ट्रांसफ्यूजन की जरूरत नहीं पड़ी है और काव्या भी स्वस्थ्य है।

पिछले महीने, मुंबई के जसलोक अस्पताल में आईवीएफ के जरिए एक और सेवियर सिबलिंग का जन्म हुआ। अस्पताल के आईवीएफ और जेनेटिक्स सेंटर की हेड डॉ फिरोजा पारिख ने कहा कि अभी डोनर और रेसिपिएंट दोनों काफी छोटे हैं इसलिए ट्रांसप्लांट अभी नहीं किया गया है।

ऐसा करना ठीक है या नहीं, इसपर सवाल

हालांकि यह प्रक्रिया एथिकल है या नहीं, इसे लेकर चिंताएं हैं। 2004 में जर्नल आॅफ मेडिसिनल एथिक्स में कहा कहा था कि लोगों मन डर जताया है कि सेवियर सिबलिंग्स को केवल ‘कुछ हासिल करने का तरीका’ समझा जाएगा। इसके अलावा इनसे ‘डिजाइनर बेबीज’ का चलने बढ़ने का भी डर है। ऐसे बच्चे शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का भी शिकार हो सकते हैं।