आल इंडिया स्टील कान्क्लेव में अनुपम ने दिया मोटिवेशनल स्पीच, बोले : जो करो, दिल से करो, जरूरी नहीं कि सब आपको पसंद करें

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रायपुर। ऐसा नहीं कि सब आपको पसंद ही करें। आप सभी के लिए अच्छा नहीं बन सकते। इंसान को जिंदगी खुलकर जीनी चाहिए। जो दिल करे, वहीं काम करें। यह सोचकर बातें मत करें कि मुझे लगा कि ऐसा हो सकता है या शायद आपने सोचा होगा, यह सब बातें जिंदगी को उलझा देती है। जो आप भीतर से हैं, वहीं बाहर होना चाहिए। यह बातें बालीवुड के जाने-माने अभिनेता अनुपम खेर ने नवा रायपुर स्थित होटल मेफेयर रिसोर्ट में आयोजित आल इंडिया स्टील कान्क्लेव-2023 में मोटिवेशनल स्पीच के दौरान कही।

इसमें देशभर से पहुंचे उद्योगपतियों के बीच उन्होंने अपने बचपन से लेकर फिल्मी सफर तक के एक-एक यादों को रखा, साथ ही बताया कि उन्होंने किस तरह जिंदगी में संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि सारांश से लेकर कश्मीर फाइल्स तक के फिल्मी सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे। आज भी मन करता है कि कश्मीर फाइल्स जैसे फिल्म करूं।

ऐसे रोल के लिए मुझे 32 वर्ष तक का इंतजार करना पड़ा। उन्होंने कहा कि यदि आप किसी के बराबर होना चाहते हैं तो अपेक्षाओं को छोड़ना पड़ेगा। अपेक्षा छोड़कर ही आप व्यक्ति से बराबरी कर सकते हैं। आपको जिंदगी के झमेलों से ऊपर उठना पड़ेगा।

सामान्य छात्र था, पिताजी ने बदल दी किस्मत

पढ़ाई के दौरान असफलताओं के दौर को याद करते हुए अनुपम खेर ने कहा कि मैं सामान्य छात्र था। कक्षा में मेरी गिनती 50वें नंबर के बाद आती थी। यह बात मुझे परेशान करती थी, लेकिन दादाजी ने हौसला बढ़ाया। पिताजी ने फेलियर होने का डर पहले ही निकाल दिया था। वे फारेस्ट में क्लर्क थे। जब रिपोर्ट कार्ड लेकर गया तो उन्होंने कहा कि फेलियर दिमाग से निकाल दो। आप किसी इवेंट में फेल हो सकते हैं। इंसान कभी फेल नहीं होता। इस बात ने मेरी जिंदगी बदलकर रख दी।

जिसका कोई दोस्त नहीं, वह सबसे गरीब

अनुपम खेर ने कहा कि जिसका कोई दोस्त नहीं, वह सबसे गरीब है। मेरा सबसे अच्छा दोस्त सतीश कौशिक आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी अच्छाई आज भी हमारे बीच है। चाहे कितना भी बड़ा व्यक्ति हो, यदि उसके पास दोस्त नहीं तो वह सबसे गरीब व्यक्ति है। एक अच्छे सफल व्यक्ति की जिंदगी में दोस्त की अहम भूमिका होती है। वह दोस्त ही है, जिससे आप जिंदगी की हर गम-खुशी को साझा कर सकते हैं।

संघर्षाें से भरी रही जिंदगी

संघर्षों के दिनों को याद करते हुए अनुपम खेर ने कहा कि तीन जून 1981 को मैं मुंबई पहुंचा। फिल्मी जिंदगी का सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा। जिंदगी के मोड़ ने कुछ ऐसी करवट बदली कि 27 दिन रेलवे स्टेशन में सोना पड़ा। सारांश फिल्म मिलने के छह महीने बाद मुझे फिल्म से निकाल दिया गया, लेकिन बाद में फिर आफर आया। कश्मीर फाइल्स करके अपने फिल्मी करियर पर गर्व होता है। ऐसी फिल्में ही समाज का आइना होती हैं।