बैंक आफ महाराष्ट्र, बैंक आफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक होंगे प्राइवेट

छह महीने में प्रोसेस शुरू होगा, अब तक 23 सरकारी बैंकों में से कई को बड़े बैंकों में मिला दिया गया

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मुंबई। सरकार ने बजट में 2 बैंकों में हिस्सा बेचने की बात कही थी, लेकिन मोदी सरकार देश में कुछ बड़े सरकारी बैंकों को ही चलाने के पक्ष में है। देश में बड़े सरकारी बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक आफ बड़ौदा और कैनरा बैंक हैं। कुल 23 सरकारी बैंकों में से कई बैंकों को बड़े बैंकों में मिला दिया गया है। इसमें देना बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, अलाहाबाद बैंक और सिंडीकेट बैंक भी शामिल हैं।

हालांकि, सरकारी बैंकों को निजी बैंक बनाने से राजनीतिक दल बचते रहे हैं, क्योंकि इसमें लाखों कर्मचारियों की नौकरियों पर भी खतरा रहता है। हालांकि सरकार यह पहले ही कह चुकी है कि बैंकों को कम करने या निजी करने की स्थिति में कर्मचारियों की नौकरी नहीं जाएगी।

देश में छठवें नंबर पर है बैंक आफ इंडिया

देश में बैंक आफ इंडिया छठे नंबर का बैंक है, जबकि सातवें पर सेंट्रल बैंक है। इनके बाद इंडियन ओवरसीज और बैंक आफ महाराष्ट्र का नंबर आता है। बैंक आफ इंडिया का मार्केट कैपिटलाइजेशन 19 हजार 268 करोड़ रुपए है, जबकि इंडियन ओवरसीज बैंक का मार्केट कैप 18 हजार करोड़, बैंक आफ महाराष्ट्र का 10 हजार 443 करोड़ और सेंट्रल बैंक का 8 हजार 190 करोड़ रुपए है। इंडियन ओवरसीज बैंक की स्थापना 10 फरवरी 1937 को हुई थी। इसकी कुल 3800 शाखाएं हैं। बैंक आफ इंडिया 7 सितंबर 1906 को बना था। यह एक प्राइवेट बैंक था। 1969 में 13 अन्य बैंकों को इसके साथ मिलाकर इसे सरकारी बैंक बनाया गया। 50 कर्मचारियों के साथ यह बैंक शुरू हुआ था। इसकी कुल 5,089 शाखाएं हैं। बैंक आफ महाराष्ट्र 1840 में शुरू हुआ था। उस समय इसका नाम बैंक आफ बॉम्बे था। यह महाराष्ट्र का पहला कमर्शियल बैंक था।

यूनियन के विरोध का डर

सरकार को डर है कि बैंकों को बेचने की स्थिति में बैंक यूनियन विरोध पर उतर सकती हैं, इसलिए वह बारी-बारी से इन्हें बेचने की कोशिश करेगी। बैंक आफ इंडिया के पास 50 हजार कर्मचारी हैं जबकि सेंट्रल बैंक में 33 हजार कर्मचारी हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक आफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी हैं। इस तरह कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा कर्मचारी इन चारों बैंकों में हैं। बैंक आफ महाराष्ट्र में कम कर्मचारी हैं, इसलिए इसे प्राइवेट बनाने में आसानी रहेगी।

बड़े बैंकों पर सरकार अपने पास ही रखेगी नियंत्रण

सरकार बड़े बैंकों में अपनी ज्यादातर हिस्सेदारी रखेगी, ताकि उसका नियंत्रण बना रहे। सरकार कोरोनाकाल के बाद काफी बड़े पैमाने पर बैंकों में सुधार करने की योजना बना रही है। सरकार इन बैंकों को एनपीए से भी निकालना चाहती है। अगले वित्त वर्ष में सरकारी बैंकों में 20 हजार करोड़ रुपए डाले जाएंगे, ताकि ये बैंकिंग रेगुलेटर के नियमों को पूरा कर सकें। कुछ ऐसे सरकारी बैंक हैं जो अभी भी पीसीए के दायरे में हैं। रिजर्व बैंक किसी बैंक को पीसीए में तब लाता है जब बैंक की स्थिति खराब हो और नियमों को पूरा न करता हो। फिर जब बैंक नियमों को पूरा कर लेता है तो पीसीए से बाहर हो जाता है। पीसीए के दौरान बैंक नई शाखाएं नहीं खोल सकता और नया लोन नहीं दे पाता है।

बजट भाषण में वित्त मंत्री सीतारमण ने बताई थी योजना

बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2021 को पेश करते हुए अपने भाषण में भी घोषणा की थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों और एक सामान्य बीमा कंपनी का निजीकरण करने की योजना है क्योंकि इस समय केंद्र सरकार विनिवेश पर अधिक ध्यान दे रही है।