वैसे तो आमतौर पर अंतिम यात्रा में जहां सन्नाटा और शोक छाया रहता है, वहीं यहां का माहौल पूरी तरह भक्ति और श्रद्धा से भरा हुआ था। ग्रामीण छत्तीसगढ़ी सेवा भजन गाते रहे। जहां-जहां से शव यात्रा गुजरती, वहां लोग अपने घरों से थाली में फूल और दिया लेकर आरती उतारने लगते।
यह जिले की पहली ऐसी शव यात्रा थी, जिसमें सामाजिक कुरीतियों को तोड़कर महिलाएं-बच्चे भी अंतिम यात्रा में शामिल हुई। पूरा गांव पूजा-अर्चना करता हुआ मुक्तिधाम तक साथ चला। चिता की लपटों के बीच भगवान श्रीकृष्ण और शिव के जसगीत गूंजते रहे। ग्रामीणों ने नारियल और अगरबत्ती अर्पित कर कलाकार को देवता की तरह पूजा और सम्मान दिया।
80 साल के उम्र में ली अंतिम सांसें
दरअसल, गुंडरदेही ब्लॉक के ग्राम फुलझर के 80 साल के बिहारीलाल यादव कुशल नृत्यकार और संगीतकार थे। उन्होंने कई नाटकों में महिला पात्रों की भूमिका निभाई और रामायण, जसगीत सेवा मंडली सहित 100 से अधिक स्वरचित अलिखित गीत लिखे। सैकड़ों मंचीय प्रस्तुतियों के माध्यम से उन्होंने अपनी कला का लोहा मनवाया।
सामाजिक मुद्दों पर लोगों को किया जागरूक
वे गांव के संचालन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले धन्वंतरी समूह के गुरु भी रहे। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने युवाओं को लोककला में प्रशिक्षित करने के साथ-साथ जीवन जीने की सही राह दिखाई और खतरनाक जीव-जंतु के संरक्षण, सुरक्षा जैसे सामाजिक मुद्दों पर लोगों को जागरूक किया।
उनके मार्गदर्शन और प्रयासों से पूरे गांव ने अनुशासन सीखा। बिहारीलाल यादव के योगदान से गांव का नाम भी रोशन हुआ। इसलिए जब उनका निधन हुआ तो ग्रामीणों ने उन्हें भक्ति, गीत और श्रद्धा के बीच सम्मानित किया।
महिला पात्र की भूमिका निभाते बिहारीलाल
गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक गोविंद साहू ने बताया कि बिहारीलाल यादव महिला पात्र की भूमिका में रानी तारामती और मोरजध्वज नाटक में रानी की भूमिका निभाते थे। उनके अभिनय को देखकर दर्शक भावुक हो उठते थे। इसके साथ ही उनका गायन, खासकर जसगीत और फाग गीत लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता था।
उनकी दी गई कला कई लोगों के लिए बनी सहारा
ग्रामीण हरिकिशन साहू ने बताया कि बिहारीलाल यादव उनके गुरु थे। हर गांव में कलाकार होते हैं। लेकिन वे अत्यंत निपुण और समर्पित कलाकार थे। उनके मार्गदर्शन में गांव के युवाओं ने कला सीखी और आज उसका सहारा लेकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
उनके सम्मान में ग्रामीणों ने सेवा गीत के माध्यम से उन्हें अंतिम विदाई देने का प्रयास किया। ताकि जो व्यक्ति जिस जीवन से जुड़ा था। उसे उसी माध्यम से विदाई मिल सके।
यमदूत की कहानी याद कर दी अंतिम विदाई
दिवंगत बिहारी लाल यादव के नाती झम्मन लाल यादव ने बताया कि उनके दादा बिहारी लाल बचपन मे एक कहानी सुनाया करते थे कि जब कोई जीवन त्यागता है तो यमराज और चंद्रगुप्त किस तरह से उसे ले जाते हैं। इसलिए हमनें भी उन्हें उसी तरह से यमदूत के साथ विदाई दी।