हाईकोर्ट ने कहा कि इतनी बड़ी वित्तीय अनियमितताओं को केवल प्रशासनिक त्रुटि बताना न्यायसंगत नहीं है। राज्य सरकार अपने उच्च अधिकारियों को बचाने का प्रयास कर रही है। जांच आधी-अधूरी है। यह मामला केवल दिव्यांगों के अधिकारों से जुड़ा नहीं है, बल्कि करोड़ों रुपए की सार्वजनिक धनराशि के दुरुपयोग का है। निष्पक्ष जांच के बिना दोषियों तक पहुंचना संभव नहीं।
डिवीजन बेंच ने सीबीआई को पहले से दर्ज एफआईआर के आधार पर दस्तावेज जब्त करने और जांच जल्द पूरी करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार और उसके विभाग अब तक मामले की तह तक जाने और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई करने में नाकाम रहे हैं। यह सिस्टमेटिक करप्शन का मामला है, जिसमें उच्च स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं। इसलिए जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी को ही सौंपी जा सकती है।
जानिए आखिर क्या है पूरा मामला?
दरअसल, साल 2004 में छत्तीसगढ़ सरकार ने दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए स्टेट रिसोर्स सेंटर (ARC) नाम से स्वशासी संस्था की स्थापना की। इसका उद्देश्य तकनीकी और प्रशिक्षण सहायता के माध्यम से दिव्यांगों का पुनर्वास करना था। 2012 में इसी के अंतर्गत फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (पीआरआरसी) की स्थापना की गई, जिसका मुख्य कार्य दिव्यांगों को कृत्रिम अंग और अन्य चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना था।
जब सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त दस्तावेजों से यह बात सामने आई कि ये संस्थाएं केवल कागजों में ही मौजूद थीं और इनके माध्यम से सरकार से करोड़ों रुपए का अनुदान लेकर कथित गड़बड़ी की जा रही थी। शिकायतों के अनुसार, कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इन संस्थाओं में पदाधिकारी के रूप में शामिल थे।
याचिकाकर्ता के नाम पर निकाले वेतन, इसलिए HC पहुंचा मामला
रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने साल 2018 में अपने वकील के माध्यम से जनहित याचिका लगाई। जिसमें आरोप लगाया गया कि दोनों संस्थान केवल नाममात्र ही सक्रिय थे। कर्मचारियों की नियुक्ति किए बिना ही उनके वेतन के नाम पर करोड़ों रुपए निकाले गए।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके नाम पर भी पीआरआरसी में काम करने का फर्जी रिकार्ड बनाकर वेतन निकाला गया, जबकि उसने कभी वहां आवेदन या कार्य नहीं किया। कुल मिलाकर इस घोटाले की राशि एक हजार करोड़ रुपए से अधिक बताई जा रही है।
RTI लगाने पर मिली धमकियां
याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि उन्हें कभी नियुक्त ही नहीं दी गई। फिर भी उनके नाम से वेतन आहरित किया गया। जब उन्होंने आरटीआई से जानकारी मांगी, तो उन्हें धमकियां दी गईं। आरोप है कि ये दोनों संस्थान महज कागजों में चल रहे थे। यहां कर्मचारियों की फर्जी नियुक्तियां दिखाई गईं और करोड़ों रुपए वेतन और उपकरण खरीद के नाम पर आहरित कर लिए गए।
जांच में उजागर हुई गड़बड़ियां
वित्त विभाग की आडिट में 31 अनियमितताएं सामने आईं। एसआरसी का 14 साल तक आडिट नहीं हुआ था। फर्जी नामों से वेतन उठाया गया, नकद भुगतान के सबूत मिले। कृत्रिम अंग और मशीनें कभी खरीदी ही नहीं गईं। 2019 में प्रबंधन समिति ने एसआरसी को भंग कर खाते बंद कर दिए।
पहले भी दिए गए जांच आदेश
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए साल 2020 में मुख्य सचिव को जांच के आदेश दिए थे। जांच में 31 वित्तीय अनियमितताएं पाई गईं, जिसमें आडिट का लंबे समय तक न होना भी शामिल था। राज्य सरकार ने इसे केवल प्रशासनिक खामी बताकर मामले को खत्म करने की कोशिश की। सीबीआई ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण जांच रोक दी गई थी। लेकिन, हाईकोर्ट के नए निर्देश मिलने पर जांच फिर से शुरू करने को तैयार है।
हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पणी
जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि, इतनी बड़ी वित्तीय अनियमितताओं को केवल प्रशासनिक त्रुटि बताना न्यायसंगत नहीं है। राज्य सरकार अपने उच्च अधिकारियों को बचाने का प्रयास कर रही है। जांच आधी-अधूरी और असंगत है। यह मामला केवल दिव्यांगों के अधिकारों से जुड़ा नहीं है, बल्कि करोड़ों रुपए की सार्वजनिक धनराशि के दुरुपयोग का है। निष्पक्ष जांच के बिना दोषियों तक पहुंचना संभव नहीं।
इन पर लगे हैं संलिप्तता के आरोप
याचिका में पूर्व महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका सिंह, रिटायर्ड आईएएस विवेक ढांड, एमके राउत, आलोक शुक्ला, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल, सतीश पांडेय, पीपी श्रोती समेत कई नाम शामिल हैं। हाईकोर्ट ने पूर्व मंत्री रेणुका सिंह के खिलाफ कोई आदेश नहीं दिया।
क्योंकि याचिका में उनके खिलाफ स्पष्ट मांग नहीं थी। वहीं, बाकी अधिकारियों पर जांच की तलवार लटकी हुई है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मामले की गंभीरता और उच्चाधिकारियों की कथित संलिप्तता को देखते हुए सीबीआई को स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच जारी रखनी होगी।