
उन्होंने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को लिखे पत्र में बताया कि शुगर की बीमारी के कारण उनके पैर में चोट लगी थी, जो ठीक नहीं हो पाई। आखिर में पूरा पैर काटना पड़ा, जिससे वे अपंग हो गए हैं और अब किसी काम के लायक नहीं रहे।
पंथी कलाकार ने सीएम से नकली पैर लगवाने में सहायता का अनुरोध किया है। दुर्ग जिले के जरवाय गांव में जन्मे मिलाप दास बंजारे ने आठ साल की उम्र में पंथी नृत्य सीखना शुरू किया था। उन्होंने अपने गुरु दुकालूराम डहरिया से इस लोककला की बारीकियां सीखीं।
आर्थिक तंगी के बावजूद कला के प्रति उनका जुनून बना रहा। बंजारे के समर्पण का परिणाम यह हुआ कि 1987 में उन्होंने रूस के नौ शहरों में तीन महीने तक पंथी नृत्य की प्रस्तुतियां दी। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति का प्रतिनिधित्व किया।
उन्हें इशुरी सम्मान, कला रत्न, धरती पुत्र और देवदास बंजारे सम्मान सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। वे 250 से अधिक मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। वे कहते हैं, “कला ने मुझे पहचान दी, लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि मैं नकली पैर तक नहीं लगवा पा रहा। बस मुख्यमंत्री से उम्मीद है कि वो मेरी मदद करेंगे।”
संस्कृति का दूत, जो अब मदद का इंतजार कर रहा
मिलाप दास बंजारे ने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को मंच से दुनिया तक पहुंचाया। आज वही कलाकार एक नकली पैर के लिए सहायता का इंतजार कर रहा है। उनका दर्द न केवल एक कलाकार का है, बल्कि उस संस्कृति का भी है।
पंथी नृत्य की पहचान
पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोकनृत्य है, जिसे संत गुरु घासीदास की वंदना में प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य में कलाकार पारंपरिक वाद्ययंत्र- झांझ, मंजीरा और ढोलक की ताल पर थिरकते हैं। मानव पिरामिड जैसी अद्भुत मुद्राओं के जरिए कलाकार सत्य, अहिंसा और मानवता का संदेश देते हैं।