बच्‍चों को नैतिक शिक्षा सिखाने स्‍कूलों में दादी-नानियों से कहानियां सुनवा रही छत्‍तीसगढ़ सरकार

Chhattisgarh Crimes

रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार स्कूली बच्चों को उनकी ही दादी-नानी से कहानी और लोकगीत सुनवा रही है। छत्तीसगढ़ी बोली-भाषा में स्वजन स्कूल आकर बच्चों को कहानी सुना रहे हैं और सरकार इनकी लाइव रिकार्डिंग व इन कहानियों और लोकगीतों का दस्तावेजीकरण करवा रही है। भविष्य में इसे पठन-पाठन कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। स्कूल शिक्षा विभाग इसे डिजिटल फार्म में सुरक्षित करके इसे धरोहर के रूप में रखेगा। कुछ जगहों पर उपलब्धता के आधार पर स्थानीय स्तर पर लोक-कलाकार भी शामिल हो रहे हैं। कहानियों के दस्तावेजीकरण के बाद इन्हें स्कूलों में किताब के रूप में भी उपलब्ध कराया जाएगा।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय मातृभाषा में बच्चों को शिक्षा दी जानी है। प्रदेश में 16 स्थानीय बोली-भाषा में प्राइमरी स्तर के स्कूलों में पढ़ाई शुरू हो चुकी है। इनमें छत्तीसगढ़ी (रायपुर, दुर्ग, बस्तर संभाग), छत्तीसगढ़ी (बिलासपुर एवं सरगुजा संभाग), दोरली, हल्बी, भतरी, धुरवी, गोंडी (कांकेर क्षेत्र ), गोंडी (दंतेवाड़ा क्षेत्र), गोंडी (बस्तर क्षेत्र), सादरी, कमारी, कुडुख, बघेली, सरगुजिहा, बैगानी और माडिया शामिल हैं।

स्कूलों में शुरू हुआ कहानी त्योहार

स्थानीय कहानियों और लोकगीतों को सहेजने के लिए सरकार ने विश्व कहानी दिवस के मौके पर कहानी त्योहार शुरू किया है। 20 से 26 मार्च तक एक सप्ताह प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में यह त्योहार चलेगा। प्रदेश के दंतेवाड़ा, सुकमा, नारायणपुर जैसे अंचलों में भी शिक्षक और गांव के बजुर्ग रोचक ढंग से शिक्षाप्रद और प्रेरक कहानियां सुना रहे हैं। कहानी सुनाने का अभ्यास बच्‍चों को भी कराया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ स्‍कूल शिक्षा मंत्री डा. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा, सरकार की मंशा है कि कम से कम एक सप्ताह तक विद्यार्थी समुदाय के साथ मिलकर कहानी सुने। ऐसे बुजर्गों को कहानी सुनाने के लिए स्कूलों में आमंत्रित किया जा रहा है जिन्हें रोचक और ज्ञानवर्धक कहानियां सुनाने का अनुभव है। उन्हें कुछ बेहतरीन स्थानीय कहानी का संकलन कर इसे बच्चों के बीच सुनाने का मौका दिया जाएगा। बच्चों को नैतिक और प्रेरक कहानियां सुनाई जा रही है।

स्कूल शिक्षा विभाग ने दिए ये निर्देश

– कहानी त्योहार में अभिभावकों की मदद लेकर कहानियां सुनवाएं
– बुजुर्गों की ओर से सुनाई कहानियों का संकलन किया जाए
– स्थानीय गीत-कहानियों को अभ्यास कर उनकी रिकार्डिंग कराएं
– रिकार्डिंग सामग्री को राज्य स्तर पर पोडकास्ट के माध्यम से भेजें
– स्थानीय बोली-भाषा में कहानियों का अनुवाद भी कराएं